घबराना क्यूँ
मजबूत है इरादे जब मेरे फिर घर लौट जाना क्यूँ निकल गए जब घर से पग मेरे कठिनाई से फिर घबराना क्यूँ। चाहत है जब आसमा छूने का रुक के
मजबूत है इरादे जब मेरे फिर घर लौट जाना क्यूँ निकल गए जब घर से पग मेरे कठिनाई से फिर घबराना क्यूँ। चाहत है जब आसमा छूने का रुक के
अखबार की हेडलाइन पर कितने ही दिनों से एक विषण्ण मृत्यु उतर आती है जैसे समय की पीठ पर सो जाती कोई चिरंतनी ड्रेसिंग टेबुल पर दिन-रात का अंतहीन खेल
ख़ामोश रह कर सब की बात ये सुनता है जोभी आए इसको राय दे जाता है यह सुन लेता है। कभी किसी के कठोर शब्द को सुन के अन्दर ही
ये बारिश की बूंदे न अब तुम्हारे जैसी होती जा रही है ना आ रही ना जा रही वह तुम्हारी तरह तडपा रही है। क्या तुम्हें बारिश पसंद नहीं है,
उम्मीद है तुमसे लौट जरुर आओगे मगर ये डर जो है मुझे रोज सता जाता है तुम मुझे भूल तो नहीं जाओगे। बेचैनी हर वक़्त होती है आँखे भी मेरी
लेने हेतु राशन मुफ्त सरकार से कुछ गरीब आते लग्जरी कार से कुछ अमीर बैठ टूटी झोपड़ी में जख्म धोते आंसुओं की धार से
इस धरा पर ईश्वर को किसने देखा है मगर यह सत्य है खुदा सबके संग है हर इंसान के लिए मां के रूप में है। कठिनाइयों से लड़ना मां हमे,
ऐसा संविधान भारत का दुनियां करती है गुणगान मानवता हो पूज्य धरा पर राष्ट्र धर्म हो ऊपर जाति- पांति का भेद नहीं पर सेवा सबसे बढ़कर समाज का हर प्राणी
ऋतुवन के राजा बसंत बाटे आइल पीयर पीयर सरसो के फूल बा फुलाइल बड़ बूढ़ लइकन के जोश लागल जागे पीछे कलियन के भौरा लागल भागे मटर के
उत्कल के उगते सूरज का, बंगाल में किरणें आई किलकारी गूंजी आंगन में, परिवार
उत्कल के उगते सूरज का, बंगाल में किरणें आई किलकारी गूंजी आंगन में, परिवार