
विवेकानंद और महर्षि महेश योगी
स्वामी विवेकानंद और महर्षि महेश योगी दोनों अपने-अपने समय के महान चिंतक और आध्यात्मिक विचारक थे। उन्होंने भारतीय दर्शन, योग और आध्यात्मिकता को वैश्विक परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत किया। उनके विचारों
स्वामी विवेकानंद और महर्षि महेश योगी दोनों अपने-अपने समय के महान चिंतक और आध्यात्मिक विचारक थे। उन्होंने भारतीय दर्शन, योग और आध्यात्मिकता को वैश्विक परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत किया। उनके विचारों
आध्यात्मिक दर्शन कैसा होना चाहिए? मनुष्य सर्वावस्था में सुख – शान्ति में रहना चाहता है।यह चाहत असीम है।अनन्त सुख का पिपासु है। अनन्त सुख ही आनंद है।” सुखम् अनन्तम् आनन्दम्
प्रयागराज-गंगा,यमुना और अदृश्य सरस्वती के त्रिवेणी के संगम तट पर 13 जनवरी 2025 में विश्व के सबसे बड़े धार्मिक और आध्यात्मिक मेले का आयोजन होने जा रहा है।संगम नगरी सांस्कृतिक
छठ पर्व सनातन धर्मों का सबसे अधिक आस्था वान और प्रभावशाली पर्व है। यह पर्व हमारे जीवन में सुख – शान्ति और सौहार्द को लाता है। इस पर्व में सूर्य नारायण भगवान
दीपावली, रोशनी का त्यौहार,परंपरागत खुशी और उत्सव का समय है,,, लेकिन इसकी जीवंत सतह के नीचे एक गहन दार्शनिक सार छिपा है।दीपावली अंधकार पर प्रकाश, अज्ञानता पर ज्ञान और निराशा
बुद्ध के विचारों पर आधारित साहित्यिक-सांस्कृतिक ‘चरथ भिक्खवे यात्रा’, 15 से 25 अक्टूबर, 2024 तक आयोजित हो रही है। यह नालंदा में 16 अक्टूबर को पहुँचेगी। नव नालंदा महाविहार, नालंदा
“मातापितु उपट्ठानं, पुत्तदारस्स सङ्गहो। अनाकुला च कम्मन्ता, एतं मङगलमुत्तमं।।” श्रावस्ती के अनाथपिंडिक के द्वारा बनाए गए जेतवन विहार मेंभगवान ने कहा- “माता-पिता की सेवा करना, पुत्र-स्त्री(पत्नी)का पालन-पोषण
ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या वट सावित्री अमावस्या तथा बरगदही कहलाती है, जो कल दिनांक 06 जून 2024 को सुहागिन महिलाओं द्वारा वट सावित्री व्रत रहकर व बरगद
ॐ अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनुमांश्च विभीषणः। ॐ कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरंजीविनः ।। हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार सात देवता अमर हैं, जिसमें हनुमान जी महाराज श्री है। कलयुग के ऐसे देवता
“सब्बपापस्स अकरणं,कुसलस्स उपसम्पदा। सचित्त परियोदपनं,एतं बुद्धान सासनं।” अर्थात सभी पापों का न करना, कुशल कर्मों का संचय करना और अपने चित् को परिशुद्ध करना यही बुद्धों की शिक्षा है।
“सब्बपापस्स अकरणं,कुसलस्स उपसम्पदा। सचित्त परियोदपनं,एतं बुद्धान सासनं।” अर्थात सभी पापों का न करना, कुशल कर्मों का संचय करना और अपने चित् को परिशुद्ध करना यही बुद्धों की शिक्षा है।