” परवाह “
परवाह हमेशा उसकी करो जो तेरी परवाह करे फिक्र तुम सदा उसकी करो जो तुझे कभी तन्हा ना करे । जान
परवाह हमेशा उसकी करो जो तेरी परवाह करे फिक्र तुम सदा उसकी करो जो तुझे कभी तन्हा ना करे । जान
प्रभु , तेरी ये कैसी रीति है कैसा तेरा है न्याय , कि सीधे सच्चे लोग को ही सहना पड़े अन्याय । झूठे की आंख में शर्म नहीं पर
लक्ष्मीबाई नाम था जिसका झांसी जिसका वास था दुश्मनों के छक्के छुड़ाना हरदम जिसका काम था। वो झांसी की रानी थी वीर थी और मर्दानी थी इसीलिए इतिहास में
आओ मिलकर दीप जलाएं। जगमग करे कोना – कोना। किला, कुटिया कंदराएं आओ मिलकर दीप जलाएं। लोभ, लालच, द्वेष, दुष्टता और अपनी – अपनी धृष्टताएं। जलते दीपों के उजियारों
” ये हैं बचपन की सुनहरी यादें जो अब स्वप्न बन कर रह गया हम तो आज भी वही हैं , पर
दिल में हमारे ये अरमान जागे हो अपना सबसे हिन्दुस्तान आगे। राष्ट्रप्रेम हो हमारे रगों रगों में रहे अपना इतिहास अमर युगों युगों में। तिरंगा की शान
अधूरे ख्वाब सा तू ने अंधेरी राह में छोड़ा बहुत उम्मीद थी तुमसे मगर तू
स्याह हो गयी रात किधर जायेगा अक्स मेरा होगा तू जिधर जायेगा हिफ़ाजतन रखा है दिल के झरोखे मे देखकर मुझको फिर तू सवर जायेगा मिरे आगोश से निकलकर
जैसे मैना अपने बच्चों को, कुडा -कचड़ा में बिखरा हुआ दाना चुगना सिखलाती है। तुम वैसे ही अपने बच्चों को नेता चुनना सिखलाना बिखरे पुष्ट दानों को देखते ही
दुनिया के आगे इक योद्धा बनकर खड़े रहते हो तुम मगर भीतर से सुकोमल बच्चे जैसे हो तुम… ग़म सारे अपने भीतर छुपाए रखते हो तुम मगर सभी से
दुनिया के आगे इक योद्धा बनकर खड़े रहते हो तुम मगर भीतर से सुकोमल बच्चे जैसे हो तुम… ग़म सारे अपने भीतर छुपाए रखते हो तुम मगर सभी से