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Category: कविता

13 Jan

बेटियाँ

घर का स्वाभिमान होती है बेटियाँ पिता का गुमान होती है बेटियाँ जिस घर में जन्म वही छोड जाती बेटो से ज्यादा धैर्यवान होती है बेटियाँ घर की लक्ष्मी होती

10 Jan

माही मेरा

    तुझे देखके बदला नज़ारा अब तू ही मेरा सहारा की सुध बुध भुल गया में।   माही मेरा सबसे है प्यारा हर अदा पे हैं जीवन वारा की

1 Jan

नया वर्ष

नया वर्ष हो मंगलमय आप सबका मधुमय पवन में चमन झूमता है यशगान का परचम लहरे हमेशा आज पाताल धरती गगन झूमता है खुशियों से पूरा चमन झूमता है सुरभित

31 Dec

आवत – विगत वर्ष

साल पुरान बिदा करके अब नूतन रूप लिए फिर आया नाचत गावत स्वागत में हमने खुशियाँ हर साल मनाया लेकिन रोवत गावत साल बितावत नैनन पोछ न पाया मूर्ख बने

28 Dec

तुम आ जाते

ये उदास लम्हे मेरे फिर से खिल जाते दिन जो ,वर्ष के समान बीत रहे हैं यू नही बीतते कटते अगर तुम आ जाते। ठंडी की ये शामे याद तुम्हारी

19 Dec

समाचार-पत्र

दूर दूर शहर, नगर देश दुनिया की खबर हमें मिल जाता है जब सुबह अखबार वाला हमारे हाथ में पेपर देकर जाता है। समाचार पत्रों में अनेक अंजान खबरो से

6 Dec

श्रद्धा सुमन हम चढ़ाएं

गेंदा, गुलाब, जूही, चंपा- चमेली परिजात, रातरानी, रजनी – सुबेली बनाकर माला महामानव को  पहिनाएं, श्रद्धा सुमन हम चढ़ाएं अपमान का जहर पीके, अमृत दिया हमको जीवन में बदलाव स्वाभिमान

25 Nov

शरद ऋतु

शरद ऋतु आपन रंग देखावे लागल गीत द्वारे द्वारे आ के गावे लागल पानी सिकुड़ल नदियन के चमक नया भइल रहल बादल उतपाती कहीं हेरा गइल गॅवे गॅवे जब डेग

14 Nov

तन्हाईयां

यादों के समन्दर में डुबाती हैं तन्हाईयां ख्वाबों को सितारों से सजाती हैं तन्हाईयां प्रतिकूल फिज़ाओं के बादलों की बरसात से तरबतर भींगने से भी बचाती हैं तन्हाईयां   शहर

11 Nov

खेती किसानी

शहर में  मिलइ नाहीं  शुद्ध हवा पानी चल करी गउआं में खेती किसानी चूना गारा काम कइले पड़ि जालें छाला दवाई होये ना पावइ घर में रहइ ठाला समझइं बगल

11 Nov

खेती किसानी

शहर में  मिलइ नाहीं  शुद्ध हवा पानी चल करी गउआं में खेती किसानी चूना गारा काम कइले पड़ि जालें छाला दवाई होये ना पावइ घर में रहइ ठाला समझइं बगल