माँ
मां होती है कोई भी उपमा इसके लिए छोटी है मां जीने का अंदाज़ है जो कल थी और होगी कल वही आज है कभी डाँटना कभी गले से
मां होती है कोई भी उपमा इसके लिए छोटी है मां जीने का अंदाज़ है जो कल थी और होगी कल वही आज है कभी डाँटना कभी गले से
बदलतीं फिजाएं कुछ और कह रही हैं ये कैसी हवा बेरुखी बह रही है | सहमी समा है और सहमा आसमां गुलशन की रौनक खुद कह रही है
कवनी नगरिया हमरे संवरिया छोड़ि के बाग तड़ाग रे गइले लिहले सुहाग रे घरवा लियाइ के हमें बइठवले हथवा के मेंहदी कबो ना छुटले, डंसलस यमराजी नाग रे
गुनहगारों को अब बचाया जा रहा है बेटियों को न्याय दिलाया जा रहा है लूटकर अस्मत जान भी छीन ली है दोनों का बस दाम लगाया जा रहा है।
आये मेरी याद तुझको प्रिय तब सोचना आँख मेरी भरने लगी हो तब सोचना। हसरतों के पंख लगा के उड़ने लगी हूँ ख़ुदी से में बातें हरपल करने
गांधी जी दुनिया से चलते चलते तुम रह गए कहते आजादी नीचे से शुरू होनी चाहिए मगर आजादी दो बैलों के कन्धों पर चढ़ कर दिल्ली की रंगीन
जहां घर की ईंट से ईंट आपस में टकराए चौखट और दरवाजे इक दूजे को ठुकराए लहू खेत खलिहान में बह जाए बन के पानी ऐसे गांव की कहानी
रो कर हिंदी कह रही,मत लो मेरा नाम कहते अपना हो मुझे, इंग्लिश में सब काम जहां राष्ट्रभाषा नहीं,गूॅगा है वह देश ना विश्व में होय कहीं,मन में है यह
क्या बात करूं मैं बचपन की तथा कहानी अपनेपन की रहती थी कितनी आज़ादी होवे चाहे जो बर्बादी मुझे बचा लें दादा- दादी कहें हमें गुलाब उपवन की
“डॉ 0 भोला प्रसाद आग्नेय, (75) पूर्व प्रवक्ता , बलिया, निष्पक्ष प्रतिनिधि के लेखक है और इस समय कोरोना से ग्रसित है , प्रस्तुत हैं उनकी कुछ पंक्तिया covid –
“डॉ 0 भोला प्रसाद आग्नेय, (75) पूर्व प्रवक्ता , बलिया, निष्पक्ष प्रतिनिधि के लेखक है और इस समय कोरोना से ग्रसित है , प्रस्तुत हैं उनकी कुछ पंक्तिया covid –