फागुनी बयार
मेहनत से किसान उपजइहैं ,
खेत में सोना- चानी ।
चारिउ ओर खुशहाली छाए
गांव बने रजधानी।
कलियन के मकरंद पहरुआ
अमराई के शानी ।
ओढ़ि केसरिया धानी चूनर
चमकइं धरती रानी ।
आम के डारी कोयल- पपिहा
बोलइं मधुरी बानी ।
फागुन में मस्त बयार बहे
झूमलें मुनि जन – ज्ञानी ।
कुसुम परास असुरभित हैं,
पल्लव में चढ़ी जवानी ।
देवर के देखि रंग पिचकारी ,
गोरिया भई दिवानी।
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