ख्वाइश
जब से तेरी गलियों में घूमने लगा हूं
ख्वाहिशें बिन एक आवारा बंजारा था
खिलती कली देख कर मचलने लगा हूं|
सिमट तेरी रेशमी जुल्फों में साकी
जाम लेकर हाथों में थिरकने लगा
तमन्ना थी चांद को जमीन पर लाने की
इक छुअन की खुशबू से बहकने लगा हूं|
तेरे मधुबन आने का इरादा नहीं था
मैं सुबहो शाम यही पर ढलने लगा हूं
थमने लगी हैं साँसे मनु आकर यहीं
नज़्म तेरे नाम से यही पढ़ने लगा हूं |
-डॉ मनोज गौतम , झाँसी
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