
दीपक ही जलाएं
है दीपावली तो दीपक जलाएं झालर कभी भी कहीं ना लगाएं माटी का दीपक प्रेम की बाती हर ओर जगमग यही अपनी थाती पहचान त्रेता की सबको कराएं
है दीपावली तो दीपक जलाएं झालर कभी भी कहीं ना लगाएं माटी का दीपक प्रेम की बाती हर ओर जगमग यही अपनी थाती पहचान त्रेता की सबको कराएं
सागर मंथन के लिए, दैत्य देव तैयार कार्तिक कृष्ण तेरस को, धन्वन्तरि अवतार विष्णू का ही रूप है, और हाथ हैं चार शंख चक्र अमृत औषधि, लेकर करें विचार
माटी की मूरत हूँ या ईश्वर का कोई करिश्मा कहीं सब कुछ हूँ मै और कहीं कुछ भी नही जुए के पासे पर भी लगी अग्नि परीक्षा भी हुई किसी
औधड दानी शिव की कृपा जब हम पर हो जाएगी बडी से बडी बाधाएँ पल भर में दूर हो जाएगी। करते रहोगे जब तक निशि दिन उनका ध्यान
किस्मत ने जब जैसा चाहा ढलते गए हम जिम्मेदारियों के बोझ तले दबते गए हम मनमाफिक तो मिला नहीं कुछ जमाने से महज एहसानों के दलदल में फंसते गए
सच कहता हूं देश शर्मसार होता है महक फूलों में नहीं,भ्रमर आज रोता है बापू , माली नहीं बाग जो संवार सके हर इंसान केवल फर्ज अपना ढोता है लेकर
यह शरीर किराये का परिधान है किराया जिसका सत्कर्म प्रधान है मदद दीन- दुखियों की करते रहो दुःख दर्द तुम उनका हरते रहो वही तो परलोक में पहचान हैं यह
हिंदी प्रतिबिंब आज शीष्टता सजीवता की, भाषाओं की ताज दीप्तिमान आज हिंदी है खेत खलिहान, सीमा
रो कर हिंदी कह रही, मत लो मेरा नाम आदर इंग्लिश पा रही, मैं होती बदनाम जहाँ राष्ट्र भाषा नहीं, गूंगा है वह देश हिंदी भाषी क्या करें, मन
हर इक हिन्दोस्तानी के हृदय में है पली हिंदी सुनी भाषा अनेकों पर लगी सबसे भली हिंदी हज़ारों काम जब होने लगे हिंदी में संपादित, विदेशी भूमि पर पथ
हर इक हिन्दोस्तानी के हृदय में है पली हिंदी सुनी भाषा अनेकों पर लगी सबसे भली हिंदी हज़ारों काम जब होने लगे हिंदी में संपादित, विदेशी भूमि पर पथ