किस्मत
जिम्मेदारियों के बोझ तले दबते गए हम
मनमाफिक तो मिला नहीं कुछ जमाने से
महज एहसानों के दलदल में फंसते गए हम
किसी ने तोड़ा दिल तो किसी ने तोड़ा भरोसा
गैर तो गैर अपनों से भी उपेक्षा सहते गए हम
ना पैरों के नीचे जमीं ना सिर के ऊपर छत
दिल की तिजोरी में ख्वाबों को रखते गए हम
समर्पित रही सदा जिसके लिए यह “हेमलता”
उनकी ही कातिल नज़रों में खटकते गए हम
-हेमलता सिंह , बलिया
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