
ग़ज़ल ( नरेश सागर ,हापुड़ )
भीड़ में हमने खुद को तन्हा पाया है कोई नही है दिल को जिसने बहलाया है | बस मै ही कहता रहा उन्हें अपना गले पे मेरे जिसने छुरा चलाया
भीड़ में हमने खुद को तन्हा पाया है कोई नही है दिल को जिसने बहलाया है | बस मै ही कहता रहा उन्हें अपना गले पे मेरे जिसने छुरा चलाया
तुम्हारे साथ से प्यारा कोई माना नही है खुली आँखों से देखू ख्वाब तो दिखते सनम तुम | बंद आँखों से भी एहसास वो जाता नही है मेरी साँसों में
तुमसे मिलना हुआ एक हंसी रात मे हाल -ए -दिल कह दिया बात ही बात मे तुमसे जीवन की खुशिया सभी है मेरी तुम मिले थे मुझे पहली बरसात मे
आज पीने का मन हो रहा है थोडा जीने का मन हो रहा है बेरुखी जिन्दगी अश्क देती रही दर्द पीने का मन हो रहा है कतरा कतरा नही