निर्वाण का साक्षात करने के लिए भिक्खु ब्रह्मचर्य पालन करते है
एक समय भगवान बुद्ध वैशाली में महावन की कूटागारशाला ( संभवतः जहां अशोक का सिंहशिर्ष शिलास्तंभ कोल्हूवा (बसाढ) गांव के पास खड़ा है) में विहार करते थे। तब समय नागित (Nagit) भगवान के उपस्थाक थे। उस समय ओट्ठद्ध नामका एक लिच्छवि भगवान के दर्शन के लिए बड़ी भारी लिच्छवि परिषद के साथ आया था। ओट्ठद्ध लिच्छवि ने आयुष्मान नागित को अभिवादन कर एक ओर खड़ा हो गया और भन्ते नागित से पुछा- भन्ते नागित| इस समय भगवान अर्हत सम्यक संबुद्ध कहां विहार करते है?
महालि ( ओट्ठद्ध लिच्छवि) भगवान के दर्शन का यह समय नहि है। भगवा ध्यान में है। भन्ते नागित का उत्तर सुनकर ओट्ठद्ध लिच्छवि वहीं एक ओर बैठ गया- (सोचा) उन भगवान अर्हत सम्यक संबुद्ध का दर्शन करके ही जाएंगे।
महालि ( ओट्ठद्ध लिच्छवि) ने भगवा के दर्शन करते हुए पुछा- भन्ते! समाधि भावनाओं के साक्षात (अनुभव ) के लिए ही, भगवा के पास भिक्खु ब्रह्मचर्य पालन करते है?”।
भगवान ने कहा- नहीं महालि! इन्ही समाधि भावनाओं के साक्षात (अनुभव ) के लिए ही,भगवा के पास भिक्खु ब्रह्मचर्य पालन नहीं करते है। महालि दूसरे इन से बढ़कर तथा अधिक उत्तम धम्म है, जिनके साक्षात के लिए भिक्खु ब्रह्मचर्य पालन करते है।
भन्ते – कौन से इनसे ( समाधि भावनाओं से ) बढ़कर तथा अधिक उत्तम धम्म है, जिनके लिए भिक्खु ब्रह्मचर्य पालन करते है?
भगवान ने कहा- महालि तीन संयोजनों ( बंधनों= सत्काय-दृष्टी, विचिकिस्सा, शील-व्रत परामर्श) के क्षय से पुरुष फिर न पतित होने वाला, नियत संबोधि (परमज्ञान) की ओर जाने वाला, स्त्रोतापन्न होता है।
महालि – यह भी बढ़कर तथा अधिक उत्तम धम्म है, जिनके साक्षात करने के लिए भिक्खु ब्रह्मचर्य पालन करते है। और फिर महालि तीनों संयोजनों के क्षीण होने पर, राग, द्वेष, मोह के निर्बल पडने पर सकृदागामी होता है । सकृतागामी एक बार इस लोक में फिर आ कर, दु:ख का अंत करता है ( निर्वाण प्राप्त करता है)। महालि यह भी बढ़कर तथा अधिक उत्तम धम्म है, जिनके साक्षात करने के लिए भिक्खु ब्रह्मचर्य पालन करते है। और फिर महालि- भिक्खु पांच अवरभागीय संयोजनों |
सत्काय दृष्टि, विचिकिस्सा, शील-व्रत परामर्श कामच्छन्द, व्यापाद] के क्षीण होने से औपपातिक बन वहां निर्वाण पाने वाला, न लौटकर आने वाला अनागामी होता है। महालि – यह भी बढ़कर तथा अधिक उत्तम धम्म है, जिनके साक्षात करने के लिए भिक्खु ब्रह्मचर्य पालन करते है।
और फिर महालि आस्रवों (चित्तमलो) के क्षीण होने से, आस्रव रहित चित्त की मुक्ति के ज्ञान द्वारा इसी जन्म में निर्वाण को स्वयं जानकर विहार करता है, अर्हत होता है। उसका पुनर्भव नहीं होता है।
महालि- यह भी बढ़कर तथा अधिक उत्तम धम्म है, जिनके साक्षात करने के लिए भिक्खु मेरे पास ब्रह्मचर्य पालन करते है।
डॉ नंदरतन थेरो ,कुशीनगर
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