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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 5 Aug 2023 6:40 PM |   415 views

जल ,जंगल,जमीन हमारा है -आदिवासी

अगर कहीं भी स्वतंत्र जीवन है तो आदिवासीयों के पास है| इसीलिए पूंजीवादी सरकारें 2023 के कानून के तहत आदिवासियों की जमीनों पर कब्जा कर बची-खुची उनकी जंगलों को नष्ट करेगी।
 
जिससे कोई भी जागरूक व्यक्ति उनके साथ मिलकर कोई क्रांति न कर सके, इसीलिए 2023 के अधिनियम के तहत आदिवासियों की जंगल जमीनों पर कब्जें की तैयारी हो चुकी है। और यह आदिवासी प्राकृतिक रक्षक मानवता के रक्षक है, ये ही प्राकृतिक पूजक, इनका  कोई साथ देने वाला नहीं है |
 
क्योंकि पूंजीवादी सरकारी व्यवस्थाएं अब देश भर की बची -खुची जंगलों को काटकर रेगिस्तान बनाकर , पर्यावरण को पूरी तरह नष्ट कर, और  मानव को बीमार कर फार्मा माफियाओं पर आधारित बनाएगी।
 
इसीलिए नए- नए कानून पारित कर दिए गए और देश के पढ़े-लिखे डिग्री धारियों को कानों-कान भनक भी न पड़ीं | और सारे भेड़ों की गुलाम समाज डिग्री धारी बनकर ढ़ोंग कर धर्म, संप्रदाय और  संगठनों में अटक -भटक कर आध्यात्मिक, धार्मिक और नैतिक बन भी कैसे सकते हैं?
 
जहां प्राकृतिक रक्षक अन्नदाता आदिवासियों की जंगल और जमीन को नष्ट कर रही और पूंजीवादी सरकारी व्यवस्था के वेतन भोगी गुलाम सभी पर्यावरण नष्ट करवा, अपने ही देश को रेगिस्तान बनते देख रहे, और आदिवासियों के जंगल स्वाहा होते देख इन भेड़ों के समाज में फर्क पड़ भी  नहीं सकता, फर्क पड़ा भी कब था उन्हें जो अब पड़ेगा ?
 
सभी आदिवासी समुदाय काफी पीड़ा और दर्दनाक की स्थिति में है। कारण पूंजीवादी सरकारोंं के दलाल उनके ही अपने घरों से, उनके जमीन से, उनके वनों से खदेड़ा जा रहा है और पंगु बना समाज अपने पूंजीवादी सरकारों के नशे में और धर्म रिलीजन, संगठन, संप्रदायों की जयकारे लगाने से फुर्सत नहीं।
 
अगर आज तक देश की हरियाली बची -खुची जो भी बची है, वह सिर्फ और सिर्फ आदिवासियों की वजह से ही बची है। क्योंकि वही बिना सरकारों के आत्मनिर्भर स्वतंत्र जीवन के आदी है, बाकी तो देश के पढ़े लिखे डिग्री धारी तबके के गुलाम खुद को नीलाम कर दिये हैं |
 
– सरिता प्रकाश , जर्मनी से 
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