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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 25 Feb 2023 5:45 PM |   286 views

डॉ साहू को बिहार में मिला सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक पुरस्कार

बिहार कृषि विश्वविद्यालय,  सबौर, भागलपुर के द्वारा आयोजित क्षेत्रीय किसान मेला-2023 में आयोजित बांका जिले में स्थित कृषि विज्ञान केंद्र में कार्यरत डॉ साहू, कृषि वैज्ञानिक, शस्य विज्ञान को श्रवण कुमार,ग्रामीण विकास मंत्री, बिहार सरकार द्वारा “सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक पुरस्कार” से नवाजा गया। उन्हें यह सम्मान वर्ष 2018-22 में कृषि के क्षेत्र में किए गए उत्कृष्ठ कार्य एवं उनको प्रसार के माध्यम से सफल बनाने के लिये मिला।
 
डॉक्टर साहू बिहार के बांका स्थित कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा संचालित निकरा परियोजना, आदिवासी उप-योजना, जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम, तिलहन एवं दलहन संकुल अग्रिम पंक्ति प्रत्यक्षण, सुपर एब्जारवेन्ट पॉलीमर, पूर्वी क्षेत्रो हेतु हरित क्रांति आदि परियोजनाओं के को0-पी आई /नोडल ऑफिसर हैं जिसके माध्यम से कृषि की नवीनतम तकनीकों को किसानों के प्रक्षेत्र पर प्रदर्शित करने व उत्पादन बढ़ाने हेतु प्रयासरत है।
 
निकरा परियोजना के अंतर्गत सुदूर क्षेत्र में पहाड़ पर बसे अंगीकृत गांव में कम लागत में वर्षा जल संरक्षण के माध्यम से वर्षा जल को संरक्षित करके पेय जल उपलब्ध कराने के साथ साथ खेती में सदुपयोग, पुराने तथा खराब कुओ को साफ करा कर वर्षा जल संरक्षण, जलकुंड बनाकर  वर्षा जल संरक्षण, जल संरक्षण इकाई का निर्माण करके, नालियों को साफ करा कर गांव का वाटर टेबल बढ़ाकर पेयजल की आपूर्ति प्राप्त कराई है, इतना ही नहीं, जिले के समवर्ती विभागों के माध्यम से गांव में डेयरी का विकास करवाया, पक्का चेक डैम व सघन बागवानी का प्रत्यक्षण करवाया गया है, जिससे गांव की दिशा व दशा में सुधार आया है।
 
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली द्वारा संचालित परियोजना आदिवासी उप-योजना के अंतर्गत जिले के आदिवासी समुदाय को प्रशिक्षण, प्रत्यक्षण व परिभ्रमण के माध्यम से कृषि की नवीनतम तकनीकों को अपनाने पर प्रयास किया।
 
कृषि के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए आदिवासियों के प्रक्षेत्र पर “सामुदायिक धान नर्सरी मॉडल” एवं साथ ही साथ “सामुदायिक बीज एवं चारा बैंक” का प्रत्यक्षण कराया जिससे धान, गेहूं, चना, मसूर व अन्य फसलों की पैदावार बढ़ाई जा सके। आदिवासी के गांव में फसल सघनता वह जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए किसानों के नवाचार के बारे में परिभ्रमण के माध्यम से जागरूक कराया।
 
आदिवासी समुदाय में सुपोषण लाने के लिए गांव के प्रत्येक घरों के आंगन में व खाली स्थान पर अनिवार्य रूप से पोषक वाटिका लगवाया, जिससे उन्हे वर्ष भर मौसमी सब्जियां खाने को पर्याप्त रूप से प्राप्त होती है, इन सभी क्रियाकलापों के अलावा उसी पोषक वाटिका से सब्जियां बिक्री करके आदिवासी परिवार अपने जीविकोपार्जन को आगे बढ़ा रहे हैं, और स्वरोजगार को बढ़ावा दे रहे हैं, जिससे कहीं ना कहीं “आत्मनिर्भर बिहार” का एक ज्वलंत उदाहरण प्रस्तुत भी कर रहे हैं। जलवायु अनूकुल कृषि कार्यक्रम, बिहार सरकार के द्वारा अंगीकृत गाँवो में मौसम के समुत्थानशील कृषि के माध्यम से नवाचार को बढ़ावा दिया है जीरो टिलेज तकनीकी, हैप्पी सीडर पद्धति, रेज्ड बेड बुवाई एवं अन्य नई तकनीकों को प्रस्तावित करके किसानों के खेत पर प्रशिक्षण के माध्यम से जागरूक किया है।
 
विश्वविद्यालय द्वारा रिलीज की गई कम पानी वाली धान एवं गेहूं की प्रभेद (सबौर अर्धजल एवं सबौर निर्जल) को प्रत्यक्षण के माध्यम से अंगीकृत गांवो व आस-पास के गांवो में तथा साथ ही साथ कम अवधि के धान और फसलों के प्रभेदो का प्रत्यक्षण कराकर किसानों के उत्पादन एवं उत्पादकता को बढ़ाने का कार्य किया है।
 
प्राकृतिक/मौसम के असंतुलन को देखते हुए विश्वविद्यालय द्वारा यह प्रजातियां विकसित की गई हैं। इसके साथ-साथ उन्होंने गांव में फसल अवशेष प्रबंधन, जैविक खेती, जैव आधारित खेती, संरक्षित खेती, फसल विविधता, आदि नवीनतम तकनीकी प्रशिक्षण एवं प्रशिक्षण के माध्यम से किसानों को लाभ पहुंचा रहे हैं ।
 
बिहार सरकार के द्वारा संचालित “वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट” के माध्यम से बांका जिले को कतरनी धान की बढ़ोतरी के लिए किसानों के साथ कार्य कर रहे हैं जिससे बांका जिले को कतरनी धान के क्षेत्र में एक नई पहचान दिलाई जा सके। किसानों की आमदनी दोगुना करने की सरकार की चल रही योजनाओं को अमलीजामा पहना जा सके, इसके लिए कृत संकल्पित हैं। 
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