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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 10 May 6:07 PM |   320 views

आम के फलों का रखे ध्यान

आम के फल इस समय छोटे से बडे़ हो रहे है। परिपक्वता की ओर  है। वागवानों के मेहनत का नतीजा है कि  आम के वागों मे काफी फल दिखाई दे रहे है।  इस समय आम के फलों पर  विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
 
आचार्य नरेन्द्र देव कृषि एवं  प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय कुमारगंज अयोध्या द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केन्द्र सोहाँव , बलिया के अध्यक्ष प्रोफेसर रवि प्रकाश मौर्य   ने बताया है कि इस समय आम के फलों में  कोयलिया रोग,फल का आंतरिक सड़न एवं  तने व डालियों  से गोद निकलने की समस्या पायी जा रही  है। जिसका समय से निदान आवश्यक है। 
 
 कोयलिया रोग-  इसे ब्लैक टिप रोग भी कहते है । यह रोग ईट के भट्टे के आसपास के क्षेत्रों में उससे  निकलती  विषैली गैस सल्फर डाइऑक्साइड तथा इथाईलीन गैस के कारण होता है।  इस रोग  के कारण पहले फल का निचला हिस्सा हल्का काला पड़ता है।  बाद में भूरा और अंत में काला पड़ जाता है। जिन फलों पर इस रोग का कम असर  होता है ,उनके निचले हिस्से चोंच दार हो जाते हैं। इस रोग का प्रकोप अप्रैल-मई में अधिक होता है।
 
प्रबंधन-  सघन आम प्रक्षेत्र के आप पास में ईंट के भट्टे नहीं खुलने देना चाहिए। रोग का प्रकोप दिखाई देने पर इसके नियंत्रण के  लिए बोरेक्स (सोहागा ) 6 से10 ग्राम  प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर दो बार छिड़काव करें। पहला छिड़काव जब फल कांच की गोली के बराबर हो जाए तथा दूसरा छिड़काव पहले छिड़काव के 15 दिन बाद करना चाहिए।
 
फल का आंतरिक सड़न– इसे   इंटरनल नेक्रोसिस रोग भी कहते है। यह रोग बोरान की कमी के कारण होता है। इस रोग  में पहले फल के ऊपर बूंद के समान स्राव दिखाई देता है। वह भाग जलीय धब्बों के समान हो जाता है तथा अंत में भूरा होकर अंदर  गूदा सड़ने के कारण जाली पढ़ने के समय बीज के किनारे काले हो जाते हैं। सतह चमड़े जैसी हो जाती है। ऐसे फलों का बीज सड़ा एवं फटा होता है, तथा सड़न फल के बीच से आरंभ होती है। ग्रसित फल परिपक्वता से पूर्व ही गिर जाते हैं ।
 
प्रबंधन-  इस के निदान हेतु बोरेक्स  6 से 10 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर फल के कांच की गोली के बराबर होने पर छिड़काव करना चाहिए तथा द्वितीय छिड़काव उसके 15 दिन बाद करना चाहिए।
 
गोद निकने का रोग-इसे गमोसिस रोग भी कहते है। यह रोग पौधों में सूक्ष्म  तत्व जिंक ,तांबा ,बोरान तथा कैल्शियम की कमी के कारण दैहिक असंतुलन के कारण होता है। ग्रसित वृक्ष की टहनी की छाल में हल्की दरारे बन जाती हैं, जिनमें से गोंद की छोटी-छोटी बूंदे निकलकर दरारों को ढक लेती हैं। गंभीर प्रकोप होने पर शाखाओं व तनों से बहुत अधिक गोंद  निकलता है तथा धीमे धीमे वृक्ष सूख जाते हैं।
 
प्रबंधन-  गोंद निकलते दिखाई देने  पर 10 वर्ष या  अधिक के वयस्क वृक्ष के थाले में 250 ग्राम नीला तूतिया (कापर सल्फेट) ,250 ग्राम जिंक सल्फेट, 125 ग्राम सुहागा( बोरेक्स) तथा 100 ग्राम बुझा हुआ चूना का मिश्रण वृक्ष के चारों तरफ  डालकर मिट्टी में मिलाना चाहिए। तथा तुरंत हल्की सिंचाई करनी चाहिए। छोटे बृक्षों में उपरोक्त मिश्रण की मात्रा कम कर देनी चाहिए। 
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