प्रजातंत्र के स्वरुप
प्रशासन का वह भाग जो सामान्य जनता के हित के लिये होता है, लोकप्रशासन कहलाता है। लोकप्रशासन का संबंध सामान्य नीतियों /सार्वजनिक नीतियों से होता है। एक अनुशासन के रूप में इसका अर्थ वह जनसेवा है जिसे ‘सरकार’ कहे जाने वाले व्यक्तियों का एक संगठन करता है। इसका प्रमुख उद्देश्य और अस्तित्व का आधार ‘सेवा’ है।
यदि यह सेवा मूलक कार्य ईमानदारी से संपन्न किए गए रहते तो निश्चित रूप से भारत में एक बहुत बड़ा भाग गरीब नहीं होता। यदि इन जनप्रतिनिधियों में जियो और जीने दो की भावना होती तो बेरोजगारों की इतनी लंबी फौज नहीं दिखाई देती। अभी कुछ दिन पहले हम लोगों ने प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा देखी है। इन सारे तथ्यों से अब बिल्कुल स्पष्ट होता है कि जनप्रतिनिधि ईमानदार नहीं है, ये भ्रष्ट हैं, स्वार्थ में आकंठ डूबे हुए हैं और भारत की संपूर्ण संपदा को अपने नाम काविज करना चाहते हैं। प्रजातंत्र इनके लिए व्यवसाय है, इनकी खेती है और इसके माध्यम से अपनी संपदाओं को बढ़ाना चाहते हैं और वे वृद्धि भी करते हैं। इसलिए प्रजातंत्र आम जनता के लिए धोखा है।
लगभग 40 वर्ष उम्र पार कर जाने के बाद युवाओं का कोई भविष्य नहीं है। लेकिन इन जनप्रतिनिधियों की चाहे उम्र कुछ भी हो। कब्र में पैर लटके हुए हैं फिर भी ये सत्ता सुख भोगने के लिए लालायित है और ऐन केन प्रकारेंण इनको सत्ता चाहिए। यही इनके जीवन का उद्देश है। अत: इन संदर्भों में आम जनता को सतर्क होने की आवश्यकता है। विकेंद्रित अर्थव्यवस्था ही संपूर्ण समस्याओं का एकमात्र समाधान है।
( कृपा शंकर पाण्डेय , बेतिया , बिहार )
Facebook Comments