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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 18 Jul 11:36 AM |   359 views

देवरिया में केले की खेती की अपार संभावनाये

देवरिया – किसानो की आय दोगुनी करने की दिशा में किसानो को जानकारी देते हुए उद्यान विशेषज्ञ एवं प्रभारी कृषि विज्ञान केंद्र, मल्हना, देवरिया रजनीश श्रीवास्तव ने बताया की औद्यानिक फसलो की खेती किसानो की आय बढाने में ज्यादा कारगर है ।
 
इसके अंतर्गत केला की खेती एक बेहतर विकल्प है  वर्तमान में जनपद में लगभग 30 हे० क्षेत्रफल में केला की खेती की जाती है अतः इसके विकास की जनपद में बहुत सभावना है | जनपद में इसके लिए उपयुक्त मिट्टी एवं वातावरण है | इसके खेती के लिए जीवांशयुक्त, गहरी, अच्छे जल निकास वाली हल्की दोमट, बलुई दोमट अथवा काली मिट्टी उपयुक्त होती है। उष्ण तथा उपोष्ण जलवायु अधिक उपयुक्त होती है | अधिक गर्म हवाये तथा अधिक ठंड से केला के बढ़वार एवं उत्पादन पर प्रभाव पड़ता है | 
 
प्रजाति- ग्रैंड नैने प्रजाति की खेती की संस्तुति की जाती है । इसके पौधे बौने होते है तथा पौधे की लम्बाई 1-1.5 मीटर तक होती है | फलिया बड़ी, मोटी और कुछ घुमावदार होती है | पकने पर पीली हरी रहती है | गूदा मोटा, मुलायम, मीठा एवं सुवास युक्त होता है | पुरे घौद में एक समान केले होते है | घौद का वजन 25-30 किग्रा होता है ।
प्रजाति- ग्रैंड नैने, हरीछाल
ग्रैंड नैनी
• पौधे बौने होते है तथा पौधे की लम्बाई 1-1.5 मीटर तक होती है |
• फलिया बड़ी, मोटी और कुछ घुमावदार होती है |
• पकने पर पीली हरी रहती है |
• गुदा मोटा, मुलायम, मीठा एवं सुवास युक्त होता है |
• पुरे घौदे में एक समान केले होते है |
• घौदे का वजन 25-30 किग्रा होता है | हरीछाल
• पौधा माध्यम उचाई की होती है | फल अधिक बड़ा, हरा एवं मोटा होता है |
• घौदे का वजन 25-30 किग्रा होता है |
• एक घौदे में 8-10 हत्थे होते है |
• प्रत्येक हत्थे में 16-20 फल होते है |
• फल का रंग गहरा हरा होता है जो पकाने पर हल्का पीला हो जाता है |
• फल मीठे, अच्छे एवं सुगन्धित होते है |
 
रोपण सामग्री- केले को पुत्तियों  और प्रकंदों द्वारा प्रसारित किया जाता है। हालाँकि, आजकल ऊतक संवर्धित वाले पौधे भी बड़े पैमाने पर लगाये जा रहे हैं। ये ऊतक संवर्धित पौधे रोपण के बाद 11-12 महीनों में कटाई योग्य हो जाते हैं । 
 
बुवाई की बिधि–  रोपण जून – जुलाई में किया जाता है। पौध से पौध एवं लाइन से लाइन की दूरी निम्न प्रकार से रख सकते है ।   
 
क्रम सं रोपण की दुरी (मी.) पौधों की संख्या (प्रति हे.)
 
1             1.5×1.5                         4444
2             1.8×1.8                        3088
3             2.0×2.0                       2500
4             2.1×1.2                        3482
 
खाद एवं उर्वरक- 5 किग्रा गोबर की खाद, 0.5 किग्रा नीम या करंज की खली, नत्रजन 200 ग्राम, फास्फोरस 60-70 ग्राम, पोटाश 300 ग्राम प्रति पौधा तथा 50 ग्राम सूक्ष्म तत्व की आवश्यकता होती है । गोबर की खाद तथा खली को खेत की तैयारी के समय भूमि में मिला दे । फास्फोरस की पूरी मात्रा को चार भागो में बांटकर पहली मात्रा बुवाई के समय शेष मात्रा को तीन भागो में बांटकर 45 दिन के अन्तराल पर डालना चाहिए । इसी प्रकार नत्रजन एवं पोटाश की पूरी मात्रा को 6 भागो में बांटकर रोपाई के बाद 45 दिन के अन्तराल पर खड़ी फसल में देना चाहिए। सूक्ष्म तत्वों को दो भागो में रोपाई के 90 व 135 दिन बाद देना चाहिए।
 
पमुख कीट एवं रोग –
भृंग (Beetle) केले का मुख्य कीट एवं  बंची टॉप, फुजेरियम विल्ट, कंद  विगलन, आदि प्रमुख रोग है । रोग का प्रकोप होने पर विशेषज्ञ की राय लेकर दवा का छिडकाव करे।
 
उपज– 650-700 कुन्तल प्रति हेक्टेयर ।
 
लाभ लागत अनुपात – इस प्रकार यदि वैज्ञानिक तरीके से केले की खेती की जाये तो किसान भाई 1: 3-4 के अनुपात में लाभ प्राप्त कर सकते है ।
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
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