
आजकल के साहित्यकार -व्यंग्य
मेरा मन कुछ दिनों से परेशान है , समाज की स्थिति को देखकर । साहित्य समाज का दर्पण है , जिसमें समाज का प्रतिबिंब परिलक्षित होता है । मै
मेरा मन कुछ दिनों से परेशान है , समाज की स्थिति को देखकर । साहित्य समाज का दर्पण है , जिसमें समाज का प्रतिबिंब परिलक्षित होता है । मै
कल मुझे अपने बचपन के मित्र के बहन की शादी में जाना था । मैं सुबह जल्दी जगा , नहा -धोकर सुबह आठ बजे तैयार हो गया । क्योंकि मुझे
एक दिन बुजुर्गों ने बैठकी लगायी कि कॉलोनी के अच्छे बच्चों को पुरस्कृत किया जाय,ताकि यह देखकर कॉलोनी के बुरे बच्चे अच्छाई की ओर प्रेरित हों। पर इसके लिए बच्चों
एक दिन मै अपने शहर में बाइक से कहीं जा रहा था | अपनी मस्ती में गाना गुन- गुनाते हुए | तभी मेरे एक डॉ मित्र सामने से आते दिखाई
का हो,का हाल है बहिन यूकेलिप्ट्स? बहुत ग्लो कर रही हो,,लगता है अभी अभी बोई गई हो। (इतराती हुई) हाँ, दीदी मेरा तो ऐसा ही है। बड़ा बिज़ी शेड्यूल
एक दिन अपने आंगन में खड़ा था, अचानक चक्कर आया और गिर कर बेहोश हो गया| परिवार के लोग मुझे लेकर सरकारी अस्पताल गए| अस्पताल बंद था, इसलिए आपातकालीन कक्ष
रोजगार के लिए गांव को शहर की तरफ ताकना पड़ता है। खेती-किसानी में अब कुछ खास बचा नहीं है। परम्परागत खेती की जगह अब पढ़ा-लिखा किसान व्यावसायिक फसलें उगाकर खुद
मेरे गांव में एक लपेटन काका हैं जिनकी उम्र लगभग नब्बे साल है| एक दिन अपने दरवाजे पर मुंह लटकाए बैठे थे| मै उधर से गुजर रहा था| उनको
चुनाव करीब आते ही अपना लाभ देखते हुए नेता लोग अपनी पार्टी बदलते रहते हैं| ऐसी पार्टी को भी छोड़ देते हैं जिसमें पांच साल तक मंत्री रह कर चांदी
रात को दो बजे नींद खुली। बदन इस देश की तरह कराह रहा था ! खासकर जहां जहां जोड़ हैं। जोड़ों का क्या ईलाज? उत्तर-पश्चिम-पूर्व के सारे जोड़ कराह रहे
रात को दो बजे नींद खुली। बदन इस देश की तरह कराह रहा था ! खासकर जहां जहां जोड़ हैं। जोड़ों का क्या ईलाज? उत्तर-पश्चिम-पूर्व के सारे जोड़ कराह रहे