सरकारी एवं निजी अस्पताल
एक दिन अपने आंगन में खड़ा था, अचानक चक्कर आया और गिर कर बेहोश हो गया| परिवार के लोग मुझे लेकर सरकारी अस्पताल गए| अस्पताल बंद था, इसलिए आपातकालीन कक्ष में ले गये | वहाँ लोगों ने देखा कि डाक्टनर की कुर्सी खाली है और कम्पाउंडर ही आपातकालीन मरीजों को देख रहा है तथा उल्टी सीधी दवाएं दे रहा है |यह देख कर मेरा पुत्र मुझे एक निजी अस्पताल में ले कर चला गया|
वहाँ पहुंचते ही वहाँ के कर्मचारियों ने मुझे बाहर ही रिसीव कर लिया और आपातकालीन कक्ष में डाक्टर मेरी सेवा में तत्पर हो गए |जांच पर जांच कराने लगे.एक जांच की रिपोर्ट आते ही दूसरी जांच के लिए लिख दिया जाता था| इस प्रकार जांच के नाम पर मेरे शरीर से ज्यादा नहीं केवल एक किलो के आसपास खून निकल लिया गया और इसका कई गुना धन मेरे बचत खाते से जांच के नाम पर निकलता रहा | फिर भी परिवार के लोग इस बात से प्रसन्न थे कि यहाँ के डाक्टर अपने काम के प्रति तत्पर है सरकारी अस्पताल की तरह लापरवाह नहीं है|
जब एक के बाद एक सभी जांच हो गए तो मुझे आई सी यू में डाल दिया गया और परिवार के लोग बाहर हो गए| अब प्रति दिन बीस पचीस हजार की दवाइयों की पर्ची मेरे पुत्र को मिल जाता और वह बिचारा दवाइयाँ खरीद कर आई सी यू में दे देता| अंदर उन दवाइयों का उपयोग सदुपयोग या दुरूपयोग कैसे किया जा रहा था?
कुछ पता नहीं क्योंकि मैं तो बेहोश था | यदि कभी होश में आता भी था तो तुरंत एक इंजेक्शन मुझे लगा दिया जाता और मैं फिर बेहोश हो जाता था |
इस प्रकार लगभग एक सप्ताह मैं आई सी यू में रहा तब तक मेरे बचत खाता का बैलेंस शून्य हो गया | तब मेरे पुत्र ने डाक्टर से कहा कि ” डाक्टर साहब, अब मैं आई सी यू का खर्च नहीं उठा पाऊँगा | अतः मेरे पिता जी को जनरल वार्ड में ही रख दीजिये, जो भाग्य में लिखा होगा वही न होगा|
थोड़ी देर में डाक्टर ने मुझे आई सी यू से बाहर निकाल कर मेरे पुत्र से कहा कि “क्षमा करना भाई, मैं आप के पिता को बचा नहीं सका| आई ऐम वेरी सारी| अब इनकी लाश को ले जाइए डिस्चार्ज सर्टिफिकेट बनाने का खर्च जमा करके| ” लेकिन डाक्टर के इतना कहने के पहले मुझे होश आ गया था|
इसलिए डाक्टर की बात सुनकर मैं बोल पड़ा कि ” अरे डाक्टर साहब, अभी तो मैं जिंदा हूं| इतना सुन एक नर्स ने मुझे डांटते हुए कहा कि ” चुप बे, तू डाक्टर से ज्यादा जानता है| मरीज होकर डाक्टर की बात को काटता है |
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