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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 26 Apr 5:05 PM |   301 views

अच्छी पैदावार के लिए मिट्टी के सुपोषण की आवश्यकता है

भाटपाररानी -किसान भाइयों रबी की फसल की कटाई एवं मड़ाई समाप्त हो चुकी है, आशा है सभी लोगों ने अपने अनाज का भंडारण ठीक ढंग से कर लिया होगा। हमने अपने भोजन की व्यवस्था अच्छे से कर ली है अब जरूरत है अगली फसल के अच्छी पैदावार के लिए मिट्टी के सुपोषण की। दिन प्रतिदिन कमी हो रही मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाने के लिए मृदा में कार्बन की प्रतिशत को बढ़ाना होगा।

भूमि  में लगातार धान गेहूं फसल चक्र उगाने से उस खेत में उपस्थित फसल की पैदावार और बढ़वार के लिए आवश्यक तत्व नष्ट होते जाते हैं, जिसकी आपूर्ति के लिए दलहनी फसल उगाना या उसका हरी खाद बनाना एक अच्छा विकल्प हो सकता है।

किसान भाई खाली खेतों में दलहनी  फसलो जैसे मूंग, उड़द, सनई, ढैंचा आदि की बुवाई करते हैं तो मिट्टी को न केवल नत्रजन तत्व की प्राप्ति होगी बल्कि बहुत से सूक्षम तत्व एवं कार्बन की मात्रा में भी वृद्धि होगी। वर्तमान में रासायनिक उर्वरकों का अंधाधुंध प्रयोग करने के कारण मिट्टी में सल्फर, जिंक, बोरान,कॉपर,आयरन की कमी पाई जा रही है।

इसको पूरा करने के लिए दलहनी फसल तथा हरी खाद मददगार है जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के लिए खाली खेतों में  दलहनी फसलें उगाए और उनका हरी खाद बनाने से  मिट्टी में पोषक तत्व बढ़ाने तथा जैविक पदार्थों की पूर्ति में मदद करते हैं । दलहनी फसलों की जड़ों में जीवाणु होते हैं जो वातावरण से नाइट्रोजन को खींचकर जमीन में फिक्स करती हैं।

दलहनी फसलों को सभी प्रकार के जलवायु और मिट्टी में उगाया जा सकता हैं। कुछ दलहनी फसलें जो 10 से 15 टन हरी खाद प्रति एकड़ प्रदान करती हैं जिससे मिट्टी में 24 से 36 किलोग्राम नत्रजन प्रति एकड़ की दर से प्राप्त हो जाती है साथ ही मृदा की संरचना में सुधार हो जाता है।

दलहनी फसलों को फल तोड़ने के बाद तथा हरी खाद के लिए उगाए गए फसल को 40 से 60 दिनों के बाद मिट्टी में जोतकर मिला दिया जाता है। बुवाई के लिए 30 से 40 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर डालें और आवश्यकतानुसार 2 से 3 सिंचाई करनी चाहिए।

(  रजनीश श्रीवास्तव -कृषि विज्ञान केंद्र मल्हना )

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