नव नालन्दा महाविहार ( सम विश्वविद्यालय) में हिन्दी पखवाड़ा का उद् घाटन-कार्यक्रम संपन्न



अभी बारह भाषाओं में नीट की परीक्षा हुई। यूपीएससी की परीक्षा किसी भी आधिकारिक भाषा में यहां होती है। जापान में जापानी है, जर्मन में जर्मनी है तो भारत में हिंदी क्यों नहीं हो सकती ? भाषा ज्ञान को नहीं बल्कि माध्यम को प्रकट करती है। माता , मातृभूमि व मातृभाषा का विकल्प नहीं है। व्यक्ति परंपरा को जीता है, यह मैंने फिजी में देखा है। परंपरा का निर्वाह करते हुए हम आगे बढ़ते हैं : यही संविकास है, यही स्थाई विकास है। हमें रूढ़ियों को छोड़कर आगे बढ़ना चाहिए, हमें भाषा के माध्यम से औपनिवेशिक दासता की तलछटों से मुक्ति प्राप्त करनी चाहिए।
समाज को गुलामी से मुक्त करने के लिए भाषा का ही आशय प्राथमिक रूप से लेना होता है और आज हिंदी पखवाड़े के उद् घाटन के अवसर पर मैं इतना कह सकता हूं कि हिंदी का विकास भारत की जनता के स्वाभिमान और उसकी ज़रूरत के साथ जुड़ा हुआ है।


भाषा केवल सांख्यिकी का विषय नहीं कि कितने लोग इसका उपयोग करते हैं। यह हमारा सांस्कृतिक प्रश्न भी है। जब भी आप अपनी भाषा का उपयोग करते हैं तो उसमें कल्पनाशीलता सर्वाधिक होती है। यह एक भाषा-वैज्ञानिक तथ्य है। उसकी जीवंतता, आत्माभिमान व अभिव्यक्ति का कोण भिन्न होता है।
हिन्दी या भारतीय भाषाओं से आप अपनी जड़ों में प्रवेश करने का सामर्थ्य व सुख हासिल करते हैं- यानी परंपरा का पुनर्निर्माण, पुराने सपनों की नई परिकल्पना और एक पुनर्नवीकरण। दक्षिण एशियाई देशों में तो हिन्दी व भारतीय भाषाओं के संप्रसार की संभावनाएं हैं ही, अन्य उप महाद्वीपों में भी यह कार्य होना चाहिए। अपने देश में इसे शासकीय स्तर पर ईमानदारी से लागू करें, इसके साथ-साथ अन्य देशों में इन्हें विकसित करें। इसे निर्यात व आयात के प्रकरण से भी जोड़ सकते हैं।
हिन्दी के उपयोग से औपनिवेशिक दासता की तलछटें हटेंगी। दुनिया की कई भाषाएं जानना अलग बात है और अपनी भाषा का उपयोग करना अलग बात। आधुनिक दुनिया में अपनी बात को कहना एक अलग आयाम है। इसमें औद्योगिक क्रांति, विज्ञान, कला, नया सौंदर्यबोध, नई उत्पादन- प्रक्रियाएं, उत्पादन संबंध, नये औद्योगिक नागरिक समाज के उद्भव आदि शामिल हैं। तकनीक ने भाषा के स्वरूप व उसके इस्तेमाल का तरीका बदल दिया है। हमें दुनिया की अन्य भाषाओं से भी जुड़े रहना होगा। यह अच्छी बात है कि वर्तमान शासन व्यवस्था हिन्दी व भारतीय भाषाओं के उपयोग पर बल दे रही है। ज्ञान-विज्ञान-विद्या के विमर्श के लिए हिन्दी का उपयोग और बढ़ा सकें तो यह हमारी बड़ी सफलता होगी।

कार्यक्रम में आचार्य प्रो. रामनक्षत्र प्रसाद, प्रो. विश्वजीत कुमार, प्रो. राणा पुरुषोत्तम कुमार, प्रो. विजय कुमार कर्ण , प्रो. विनोद चौधरी, डॉ. प्रदीप कुमार दास, डॉ. धम्मज्योति, डॉ. जितेन्द्र कुमार, डॉ. सोनम लामो,डॉ अनुराग शर्मा, डॉ कृष्ण कुमार पाण्डेय, विश्वविद्यालय के चिकित्सक डॉ. फैसल, डॉ. नूर फातिमा , गैर शैक्षणिक जन , शोधछात्र , विभिन्न पाठ्यक्रमों के छात्र तथा हिन्दी-प्रेमी उपस्थित थे।
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