Thursday 16th of May 2024 04:56:20 AM

Breaking News
  • केन्द्रीय मंत्री सिंधिया की माँ का निधन हुआ |
  • CAA के तहत पहली बार मिली भारतीय नागरिकता , 14 शरणार्थी को थमाया गया सिटीजन सर्टिफिकेट|
  • पश्चिम बंगाल को लेकर तेज हुई सियासी लडाई , मुल्ला , मौलवी मदरसा पर आई |
Facebook Comments
By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 3 Sep 2023 5:02 PM |   461 views

नव नालन्दा महाविहार ( सम विश्वविद्यालय) में हिन्दी पखवाड़ा का उद् घाटन-कार्यक्रम संपन्न

नव नालन्दा महाविहार ( सम विश्वविद्यालय ) में हिन्दी पखवाड़ा का उद् घाटन- कार्यक्रम संपन्न हुआ। इसके मुख्य अतिथि थे- दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय , गया के कुलपति प्रो. कामेश्वर नाथ सिंह। कार्यक्रम की अध्यक्षता की– नव नालन्दा महाविहार के  कुलपति प्रो. वैद्यनाथ लाभ ने तथा प्रास्ताविकी व बीज वक्तव्य दिया-  हिन्दी विभाग के अध्यक्ष प्रो. रवींद्र नाथ श्रीवास्तव ‘परिचय दास’ ने तथा संचालन किया- प्रो. हरे कृष्ण तिवारी ने।
 
 
कार्यक्रम के आरम्भ में डॉ. धम्म ज्योति द्वारा  मंगल पाठ, विशिष्ट जनों द्वारा  दीप-प्रज्ज्वलन, मुख्य अतिथि व कार्यक्रम के अध्यक्ष का सम्मान किया गया।
 
इस अवसर पर मुख्य अतिथि दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय , गया के कुलपति प्रो. कामेश्वर नाथ सिंह ने कहा कि भारतवर्ष को प्रकृति ने विविधता का उपहार दिया है, उसमें भाषाओं का गुलदस्ता  भी शामिल है। भारत में   अतीतकाल से ही विविधता का सम्मान रहा है : भाषा, बोली, रीति- रिवाज़ , परम्परा आदि । इसीलिये भारत को  समावेशी संस्कृति का देश कहा जाता रहा है। वास्तव में  भारत समावेशन की प्रयोगशाला है। भारत का ज्ञान भारतीय  भाषाओं में छुपा हुआ है।
 
अभी बारह भाषाओं में नीट की परीक्षा हुई। यूपीएससी की परीक्षा किसी भी आधिकारिक भाषा में यहां होती है।  जापान में जापानी है, जर्मन में जर्मनी है तो भारत में हिंदी क्यों नहीं हो सकती ? भाषा ज्ञान को नहीं बल्कि माध्यम को प्रकट करती है। माता , मातृभूमि व मातृभाषा का विकल्प नहीं है। व्यक्ति परंपरा को जीता है, यह मैंने फिजी में देखा है। परंपरा का निर्वाह करते हुए हम आगे बढ़ते हैं : यही संविकास है, यही स्थाई विकास है। हमें रूढ़ियों को छोड़कर  आगे बढ़ना चाहिए,  हमें भाषा के माध्यम से औपनिवेशिक दासता की तलछटों से मुक्ति प्राप्त करनी चाहिए। 
 
समाज को गुलामी से मुक्त करने के लिए भाषा का ही आशय प्राथमिक रूप से लेना होता है और आज हिंदी  पखवाड़े के उद् घाटन के अवसर पर मैं इतना कह सकता हूं कि  हिंदी का विकास भारत की जनता के स्वाभिमान और उसकी ज़रूरत के साथ जुड़ा हुआ है।
 
अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में  नव नालन्दा महाविहार , नालन्दा के कुलपति प्रो. वैद्यनाथ  लाभ ने कहा कि हिन्दी लिखने, बोलने व व्यवहृत करने में हीनता का अहसास क्यों होना चाहिए ? यह तो हमारी अपनी भाषा है। भाषाएँ अलग अलग संस्कृतियों को जानने का साधन हैं। रूस के राष्ट्रपति यदि रूसी में अपनी कूटनीतिक बात कह सकते हैं तो भारत के प्रतिनिधि को भी हिन्दी में अपनी बात कहनी चाहिए। हिन्दी फिल्मों ने हिन्दी का ध्वज चतुर्दिक फहरा दिया है। हिन्दी को भाषा के रूप में कार्यालयों में  बरतने से भारत व विश्व को  सम्पर्क का लाभ स्वत: मिल जाता है। हिन्दी पूर्व -पश्चिम – उत्तर- दक्षिण  सभी दिशाओं में जानी बोली, जाती है। उसका प्राय:  सभी जगह  उपयोग किया जाता है, यह इसका वैशिट्य है।
 
कार्यक्रम की प्रास्ताविकी व बीज- व्याख्यान नव नालन्दा महाविहार के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष ( हिन्दी अकादमी व मैथिली- भोजपुरी अकादमी , दिल्ली सरकार के पूर्व सचिव, ‘गौरवशाली भारत’ हिन्दी  पत्रिका व ‘समाचार विन्दु’ भोजपुरी साप्ताहिक समाचार-पत्र के प्रधान सम्पादक ) प्रोफ़ेसर  रवींद्र नाथ श्रीवास्तव ‘परिचय दास’ ने कहा कि मूल बात है, अपनी भाषा के सम्यक उपयोग की।
 
भाषा केवल सांख्यिकी का विषय नहीं कि कितने लोग इसका उपयोग करते हैं। यह हमारा सांस्कृतिक प्रश्न भी है। जब भी आप अपनी भाषा का उपयोग करते हैं तो उसमें कल्पनाशीलता सर्वाधिक होती है। यह एक भाषा-वैज्ञानिक तथ्य है। उसकी जीवंतता, आत्माभिमान व अभिव्यक्ति का कोण भिन्न होता है।
 
हिन्दी या भारतीय भाषाओं से आप अपनी जड़ों में प्रवेश करने का सामर्थ्य व सुख हासिल करते हैं- यानी परंपरा का पुनर्निर्माण, पुराने सपनों की नई परिकल्पना और एक पुनर्नवीकरण। दक्षिण एशियाई देशों में तो हिन्दी व भारतीय भाषाओं के संप्रसार की संभावनाएं हैं ही, अन्य उप महाद्वीपों में भी यह कार्य होना चाहिए।  अपने देश में इसे शासकीय स्तर पर ईमानदारी से लागू करें, इसके साथ-साथ अन्य देशों में इन्हें विकसित करें। इसे निर्यात व आयात के प्रकरण से भी जोड़ सकते हैं।
 
हिन्दी के उपयोग से औपनिवेशिक दासता की तलछटें हटेंगी। दुनिया की कई भाषाएं जानना अलग बात है और अपनी भाषा का उपयोग करना अलग बात। आधुनिक दुनिया में अपनी बात को कहना एक अलग आयाम है। इसमें औद्योगिक क्रांति, विज्ञान, कला, नया सौंदर्यबोध, नई उत्पादन- प्रक्रियाएं, उत्पादन संबंध, नये औद्योगिक नागरिक समाज के उद्भव आदि शामिल हैं। तकनीक ने भाषा के स्वरूप व उसके इस्तेमाल का तरीका बदल दिया है। हमें दुनिया की अन्य भाषाओं से भी जुड़े रहना होगा। यह अच्छी बात है कि वर्तमान शासन व्यवस्था हिन्दी व भारतीय भाषाओं के उपयोग पर बल दे रही है।  ज्ञान-विज्ञान-विद्या के विमर्श के लिए हिन्दी का उपयोग और बढ़ा सकें तो यह हमारी बड़ी सफलता होगी।
 
संचालन करते हुए हिन्दी विभाग के प्रोफ़ेसर डॉ. हरे कृष्ण तिवारी ने कहा कि  हिन्दी भाषा भारतीय समाज को जोड़ने का माध्यम है। हिन्दी का जितना ही उपयोग संभव होगा , भारतीय  लोकतंत्र की जड़ें उतनी ही मजबूत  होंगी। 
 
कार्यक्रम में आचार्य प्रो. रामनक्षत्र प्रसाद, प्रो. विश्वजीत कुमार, प्रो. राणा पुरुषोत्तम कुमार, प्रो. विजय कुमार कर्ण , प्रो. विनोद चौधरी, डॉ. प्रदीप कुमार दास, डॉ. धम्मज्योति,  डॉ. जितेन्द्र कुमार,  डॉ. सोनम लामो,डॉ अनुराग शर्मा, डॉ कृष्ण कुमार पाण्डेय, विश्वविद्यालय के चिकित्सक  डॉ.  फैसल, डॉ.  नूर फातिमा , गैर शैक्षणिक जन , शोधछात्र , विभिन्न पाठ्यक्रमों के छात्र  तथा हिन्दी-प्रेमी उपस्थित थे।
Facebook Comments