Thursday 16th of May 2024 11:10:57 AM

Breaking News
  • केन्द्रीय मंत्री सिंधिया की माँ का निधन हुआ |
  • CAA के तहत पहली बार मिली भारतीय नागरिकता , 14 शरणार्थी को थमाया गया सिटीजन सर्टिफिकेट|
  • पश्चिम बंगाल को लेकर तेज हुई सियासी लडाई , मुल्ला , मौलवी मदरसा पर आई |
Facebook Comments
By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 5 Nov 2023 6:18 PM |   894 views

खेती में नाइट्रोजन का महत्व

पौधोँ को आवश्यक 17तत्वों में कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन प्राकृतिक रूप में प्राप्त हो जाते हैँ लेकिन मनुष्यों द्वारा कृत्रिम रूप में दिये जाने वाले सभी तत्व में नाइट्रोजन सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हैँ ऐसा क्यों ये लेख इसी बारे में है :-
 
नाइट्रोजन क्या है?
वातावरण में सबसे ज्यादा मात्रा में पाई जाने वाली गैस (करीब 78%) और पौधों की बढ़त के लिये मुख्य रूप से सबसे ज्यादा जरूरी तत्व नाइट्रोजन है। इसकी वजह से पौधोँ में हरित लवक (chlorophil) के निर्माण में भी सहायता मिलती है। पौधे जड़ों के माध्यम से नाइट्रेट या अमोनियम को अवशोषित करके नाइट्रोजन का उपयोग करते हैं। अधिकांश नाइट्रोजन का उपयोग पौधे द्वारा प्रोटीन (एंजाइम के रूप में) और न्यूक्लिक एसिड का उत्पादन करने के लिए किया जाता है जो कि पौधे के विकास और फसल उत्पादन में बेहद जरूरी हैँ। 
 
1. इसके बिना पौधोँ की बढ़त नहीं सम्भव है।
2. इसकी कमी से पौधोँ में शुरूआती फूटाव कम हो जाते हैँ।
3. इसकी अधिकता से भी फसल ज्यादा कमजोर हो जाती है और फलन समय पर वजन बढ़ने से गिरने लगती है।
4. इसकी अधिकता से कमजोर और ज्यादा हरे हुए पौधे कीड़ों और बीमारियों से ज्यादा ही ग्रसित होते हैँ।
 
नाइट्रोजन कब देनी चाहिये?
फसल, किस्म, मिट्टी, जलवायु, मौसम, फसल अवधि और जलमांग के आधार पौधे अलग अलग समय सिंचाई चाहते हैँ। नाइट्रोजन या कोई भी तत्व जब भी दें नमी रहेंगी तभी ये उपलब्ध हो सकेंगे उस फसल को।बीज उगते ही जड़ों के बाद निकलने वाले भाग को तने में बढ़ते जाने के लिये नाइट्रोजन जरूरी होती है लेकिन इसके साथ ही यह भी ध्यान रखना चाहिये कि नाइट्रोजन सबसे तेजी से पौधोँ को उपलब्ध होने वाले तत्वों में से भी एक है|
 
उदाहरण के लिये अगर नाइट्रोजन, फॉसफोरस और पोटाश तीनो को ही एक समय पर पौधोँ को दी जाये तो सबसे तेजी से पौधों को नाइट्रोजन जायेगी। इसका एक अर्थ ये भी है कि अगर ससमय इसे प्रयोग नहीं किया गया तो ये वातावरण के अन्य किसी भी संयोजन में जुड़ कर खत्म हो जायेगी।
 
इसलिये कभी भी फसलों के पोषण प्रबंधन में नाइट्रोजन की पूरी मात्रा न देकर शुरू में बुवाई समय आधी मात्रा ही दी जाती है। इसके अलावा भी नाइट्रोजन को हमेशा फसल उगने के बाद देने वाली बाकि बची मात्रा को बांटकर फसल की अलग अलग अवस्थाओं में देना चाहिये जिससे ये तुरंत उपलब्ध हो जाने से उस विशेष अवस्था में ज्यादा योगदान दे सके लेकिन कोशिश करनी चाहिये कि फूल और दाने बनने कि अवस्था तक ही ये पूर्ति कर दी जाये. लम्बी अवधि कि लगातार फल देने वाली पौध किस्मो जैसी सहजन, बैगन जैसी सब्जियों ये नाइट्रोजन दिया जाना फल उपरान्त भी चलता रहता है।
 
जैविक खेती में नाइट्रोजन प्रबंधन- जैविक खेती में नाइट्रोजन का मुख्य स्त्रोत गौमूत्र बन पड़ता हैँ जिसे बुवाई पूर्व नमी के समय बहते हुए पानी के साथ देकर ये पूर्ति करी जा सकती हैँ इसके अलावा धीमे और कम मात्रा में उपलब्ध होने वाली नाइट्रोजन को कम्पोस्ट, ढेचा, सनई, पटसन और ग्लारिसीडीया जैसे पत्तों से बनी हरी खाद से भी संतुलित करा जा सकता है।
 
इसके अलावा दलहनी फसलों में जड़ों में पाये जाने वाले सहजीवी जीवाणु रायजोबियम पाए जाने से इनमे वातावरण में उपलब्ध नाइट्रोजन को पौधोँ के लिये जरूरी नाइट्रेट रूप में बदल दिये जाने से इन्हे अन्य फसलों की अपेक्षा कम मात्रा में ही नाइट्रोजन देनी होती है। ऐसी फसलों  बीज शोधन के समय रायजोबियम जीवाणु से उपचारित करके बीज बो देते हैँ, अन्य फसलों में यही काम लाभदायक सूक्षमजीव असितोबैक्टर और अजेटोबैक्टर कर देते हैँ लेकिन ये जड़ों में नहीं रहते बल्कि पहले पड़ी अघूलनशील नाइट्रोजन को उपलब्ध कराते हैँ।
 
रासायनिक खेती में नाइट्रोजन प्रबंधन-
भारत में यूरिया ही नाइट्रोजन का मुख्य स्त्रोत होते हुए भी DAP जैसी उर्वरक को ज्यादा दिया जाता है कारण क्योंकि ये यूरिया की अपेक्षा धीमे घुलती है हालाँकि मिट्टी में मौजूद सूक्ष्म जीवो और केंचूओं को नुकसान दोनों ही अपने अपने तरीकों में पहुंचाती ही हैँ। इसके अलावा उर्वरकों में अन्य बहुत से रूप जैसे कैल्शियम नाईट्रेट, पोटेशीयम नाईट्रेट, अमोनियम फॉस्फेट, पानी में घुलनशील उर्वरक संयोजन, 19:19:19 जैसी बहुत से स्त्रोत से रसायनिक माध्यम में नाइट्रोजन अलग अलग फसल और उनकी अवस्थाओं पर दी जा सकती है।
 
नाइट्रोजन की कमी के लक्षण- पौधों में निचले पत्तों पर ही दिखाई देते हैँ जो पीलपन दिखाती हैँ बाद में पूरी फसल नीचे से ऊपर पीली पड़ती है जिससे पैदावार घट जाती है। ज्यादा सटीक लक्षण निचले पत्तों में नोक की तरफ से V अकार में पीलपन लिये हुए होता है।
 
विशेष-
किसी भी पिछली फसल के बचे अवशेष सड़ने के लिये प्रकृति अनुसार नाइट्रोजन चक्र बनाते हैँ और इन्हे इस समय सड़ने के लिये नाइट्रोजन जरूरी होती है इसलिये बुवाई के समय दी गई फसल विशेष संस्तुत आधी मात्रा का बड़ा भाग असल में पिछली फसल अवशेष को सड़ाने में भी काम आटा और इस प्रकार नाइट्रोजन की कमी से शुरूआती अवस्था के नन्हें पौधे को पीलेपन से भी।
समय समय पर पानी के बहाव सँग दी जा रही पशुओं की मूत्र भी इस तरह से नाइट्रोजन की कुछ हद तक पूर्ति करती है।
 
-डॉ. शुभम कुमार कुलश्रेष्ठ, विभागाध्यक्ष-उद्यान विज्ञान
केन्द्र समन्वयक-कृषि शोध केन्द्र, कृषि संकाय
रविन्द्र नाथ टैगोर विश्वविद्यालय
रायसेन, मध्य प्रदेश |
Facebook Comments