भोजपुरी भाषा एक समृद्ध विरासत
किसी भी भाषा की एक परम्परा होती है, उसके पीछे एक विरासत होती है।उसका प्रयोग और व्यवहार ही उसे जीवन्त बनाता है। भोजपुरी भाषा के पीछे एक समृद्ध विरासत है। इसके सामर्थ्य को कम आकलन करना बेमानी होगा। यह बात सही है कि इसके सामर्थ्य का उपयोग, व्यवहार जिस तरह से होना चाहिए उस तरह हम नहीं कर पाये है। भाषाओं का प्रयोग और व्यवहार नहीं होने से धीरे-धीरे अपना वजूद खोने लगती हैं। बाद मे इतिहास के पन्नों और रसोई तक सिमट कर रह जाती है। यदि भाषा के मूल सौन्दर्य और ताकत को पहचानना है तो उसका बौद्धिक और वैज्ञानिक प्रयोग अधिक से अधिक होना चाहिए।
भोजपुरी भाषा के बारे में यही आरोप लगते रहे हैं। भोजपुरी भाषा लोक से जुड़े होने के कारण अपना परचम लहरा रही है। भाषा का मौखिक और लिखित उपयोग आवश्यक है।पर भोजपुरी क्षेत्र के विद्वान साहित्यकारों ने ऐसा नहीं किया। भाषा की परम्परा में जो मूल्यवान वस्तु होती है वह जीवित रहती है और उसका विकास होता है। भाषा में दुरूहता और सरलता उसके उपयोग पर निर्भर करता है।
भोजपुरी भाषा के पीछे एक समृद्ध विरासत है। वैसे तो भारत वर्ष की अधिकांश भाषाओं की जननी संस्कृत है।
संस्कृत या वैदिक संस्कृत में स्व परिवर्तन के परिणाम स्वरूप प्राकृत भाषा आई। इसमें संस्कृत भाषा का उच्चारण बदल गया।इस प्रकार परिवर्तित धातुरूप, शब्द रूप, सर्वनाम तथा शब्द समभार का नाम ही प्राकृत भाषा है। प्राकृत भाषा बहुत दिनों तक जनसाधारण के मौखिक भाषा के रूप में चलती रही।
प्राकृत भाषा से भारत में छः भाषा समूह का जन्म हुआ। मागधी प्राकृत,,सौर सैनी प्राकृत, पाश्चात्य प्राकृत,पैसाची प्राकृत,मालवी प्राकृत,सैन्धवी प्राकृत इसे पहलवी भी कहते हैं। एक और प्राकृत है महाराष्ट्रीयन प्राकृत।इन सात समूहों से भारत की सभी भाषाएं निकलीं है। मागधी प्राकृत से भोजपुरी भाषा का जन्म हुआ है। भोजपुरी भाषा सहित सभी भाषाएं भाषा कहलाने के लिए सक्षम है। इसमें से किसी को भी बोली कहना न्याय संगत नहीं है।
भाषा विज्ञान के अनुसार किसी भी भाषा को पूर्ण भाषा कहलाने के लिए निम्न शर्तों को पूरा करना होगा जैसे कारक, सर्वनाम, क्रिया रूप, शब्द भंडार, वाक्य संरचना रीति, उच्चारण रीति,लोक साहित्य। भोजपुरी भाषा इन सभी शर्तों को पूरा करती है। फिर भी कुछ लोग भोजपुरी भाषा को बोली कहने से नहीं थकते।
अब तो यह भी कहा जाता है कि भोजपुरी हिन्दी की उपभाषा है।। बहुत ही आपत्ति जनक बयान है। ऐसे लोगों की अज्ञता पर तरस भी आता है। स्पष्ट रूप से कहना चाहता हूं कि भोजपुरी भाषा पूर्ण रूप से स्वतंत्र और समृद्ध भाषा है। बोली कहने वाले लोग अपना मानसिक इलाज करा लें।
भोजपुरी भाषा हजारों वर्ष पुरानी भाषा है इसके पीछे एक समृद्ध विरासत है।। हिन्दी से तुलना करना उचित नहीं है। किसी भी भाषा को किसी भी भाषा से कोई खतरा नहीं होता है,सिर्फ सोच और नजरिया का दोष है। भोजपुरी भाषा भारत के विशाल भू-भाग पर वसने वाले विशाल जनसमूह की मातृभाषा है,पहचान है, अस्मिता है, संस्कृति है। भोजपुरी भाषा के लिपि और व्याकरण पर सवाल उठाना तथ्यों पर आधारित नहीं है,यह मात्र भ्रम पैदा कर बदनाम करने के सिवाय कुछ नहीं है।
– नरसिंह
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