आज ही के दिन 13 वर्ष की आयु में तिरंगा फहराते शहीद हए थे रामचंद्र विद्यार्थी
देश के स्वतंत्रता आन्दोलन गाथा में देवरिया का नाम भी स्वर्णाक्षरों में लिखा गया है |पूरे देश में यही नारा दिया जाता था कि-
“जो भरा नही है भावों से बहती जिसमे रसधार नही
वह हृदय नही पत्थर है , जिसमे स्वदेश का प्यार नही “
देवारण्य ,देवभूमि देवरिया का रामचंद्र विद्यार्थी 13 वर्ष की अवस्था में वह कर दिखाया जो जो सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं है |09 अगस्त सन 1942 को महात्मा गांधी के आह्वान पर अंग्रेजो भारत छोडो का नारा दिया जा रहा था |14 अगस्त 1942 को इस आन्दोलन में अपने जान की बाजी लगाकर 13 वर्षीय सातवीं कक्षा का विद्यार्थी रामचंद्र अपने घर से चुप -चाप निकला और देवरिया कचहरी पहुंचा | बालक समझ कर पहले अंग्रेज सैनिकों की निगाह में वह नही आया और मौका पाकर यह बालक अपने बगल में तिरंगा छिपाए कचहरी की छत पर चढ़ गया |अंग्रेजो के यूनियन जैक को फाड़कर फेक दिया तथा अपना तिरंगा फहराया कि गोलियों की बौछार तत्कालीन परगनाधिकारी उमराव सिंह के आदेश पर शुरू हुई | रामचंद्र विद्यार्थी ने इसकी परवाह किए बिना अपना मिशन पूरा किया और अपनी माँ की गोद सूना कर भारत माँ की गोद में सदा के लिए सो गया |
उत्तर प्रदेश के जनपद देवरिया मुख्यालय से लगभग 14 किलोमीटर दूर स्थित गाँव नौतन हथियागढ़ को अपने जन्म से आलोकित करने वाला बालक रामचंद्र विद्यार्थी 01 अप्रैल 1929 को बाबूलाल प्रजापति के घर अपनी माँ मोतीरानी देवी की गोद में आया |धीरे -धीरे बड़ा हुआ और गाँव के बगल में स्थित सहोदर पट्टी में प्राथमिक शिक्षा पूरा किया |
घर पर रामचंद्र विद्यार्थी के पिता बाबूलाल अपने पुस्तैनी कार्य मिट्टी के बर्तनों का निर्माण कर बेचते थे ,जीविका का यही एकमात्र साधन था |कभी -कभी रामचंद्र भी अपनी माँ के साथ आस-पास के गाँवों में जाया करते थे |बाबा भर्दुल प्रजापति रामचंद्र को देख कर कहते थे कि यही लड़का बड़ा होकर हम लोगो का दुःख दूर करेगा |
प्राथमिक शिक्षा सहोदरपट्टी से पूर्ण कर यह बालक बसंतपुर धूसी छठवीं कक्षा में अपने गाँव से साथियों के साथ नामांकन कराने गया |उसके पिता ने ” होनहार वीरवान के होत चिकने पात जैसा लक्षण देख अपने बालक को ऊँची शिक्षा देने का मन बना लिए थे |उन्हें वहां भी अपने बेटे की प्रसंशा गुरुओं से सुनने को मिलती थी |इनका उत्साह बढ़ता गया और बेटे की पढाई पर ज्यादा ध्यान देने लगे |रामचन्द्र जब कक्षा सातवी के छात्र थे तभी 09 अगस्त 1942 को अंग्रेजो भारत छोडो का नारा महात्मा गांधी ने दिया |इसे सुनकर बालक के मन मस्तिष्क पर आन्दोलन के प्रति रूचि बढ़ी और धीरे -धीरे वह इसी के साथ सोने और जगने लगा |
14 अगस्त 1942 का वह दिन आया ,जब यह बालक घर से निकला और पैदल ही देवरिया पहुँच कर अपना अरमान पूरा किया |घर कौन कहे , गाँव कौन कहें ? इसने देवरिया का नाम स्वतंत्रता आदोलन में अमर कर दिया |
रामचंद्र के गाँव के लोग बतातें हैं कि जब इनका पार्थिव शरीर तिरंगे में लपेटकर गाँव लाया जा रहा था तब रास्ते के गाँव के अतिरिक्त अनेक गाँवों के लोग इस बालक के अंतिम दर्शन के लिए उमड़ पड़े थे | बुजुर्गों और नौजवानों की बात कौन करे नई नवेली दुल्हने भी सडक पर आकर इस भारत माँ के लाल का दर्शन पाने हेतु अपनी आँखे बिछा दी |गाँव के पास गण्डक नदी के तट पर अमर शहीद रामचंद्र विद्यार्थी जी का अंतिम संस्कार हुआ |
इस मासूम के शहीद होने की वीर गाथा धीरे -धीरे दूर -दूर तक प्रसारित हुई |1949 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु इस गाँव में पहुचे और शहीद की माँ को चांदी की थाली व गिलास दिए |अमर शहीद रामचंद्र विद्यार्थी की मूर्ति भी गाँव में लगाई गयी |
देवरिया जनपद के मुख्यालय के रामलीला मैदान में रामचंद्र विद्यार्थी स्मारक भी बना हुआ है |
- कैप्टन विरेन्द्र सिंह, वरिष्ठ पत्रकार , देवरिया