भोजपुरिया समाज की मांग बने भोजपुर प्रांत
भोजपुरी क्षेत्र का इतिहास गौरवशाली रहा है | यहाँ की महान पवित्र मानवीय उपलब्धियां ,ज्ञान कर्म आध्यात्म और शक्ति की सुगंध मन को मोह लेती है |भोजपुरी माटी के महान और गौरवशाली अतीत पर गर्व होता है |
नेपाल की तराई क्षेत्र से विन्ध्य तक प्रयाग से सोन तक की पवित्र भूमि के काशी ( बनारस ) को सदाशिव ने अपनी राजधानी बनाया |यह गौतम बुद्ध की कर्म और महापरिनिर्वाण की भूमि है | योगी मछेन्द्र नाथ ,गोरखनाथ , संत कबीरदास और देवरहवा बाबा जैसे संतो ने इसका मान बढाया है |
काशी राज्य का अस्तित्व सदाशिव के पूर्व में भी था |परन्तु ऐतिहासिक पुष्टि महाभारत काल से ही हो जाती है | मध्य और आधुनिक काल में भी भोजपुर राज्य का अस्तित्व रहा है | भारत की आजादी के बाद इतिहास पर जब हम नज़र दल्तें हैं तो इस क्षेत्र की उपेक्षा का अनुभव होने लगता है | इस क्षेत्र में रहने वाले सभ्य ,श्रेष्ठ संस्कृति को संजोकर रखने वाले भोजपुरिया लोगो को भईया जी , सत्तुखोर ,देशवाली , पूरबिया जैसे अलंकार से विभूषित किया जाता है |
भोजपुरी बोलने वाले लोग पुरे विश्व में हैं फिर भी आजतक भोजपुर राज्य का गठन नही करने के पीछे इस क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत को खंडित करने ,आर्थिक , सामाजिक , राजनैतिक शक्ति को कमजोर करने का सुनियोजित षड़यंत्र स्पष्ट रूप से दिखाई देता है |
विश्व के महान चिन्तक – ” प्रभात रंजन सरकार का कहना है कि ” जिस क्षेत्र का शोषण करना होता है तो शोषक वर्ग उस क्षेत्र की मातृभाषा और संस्कृति का अवदमन करतें हैं |
भोजपुरी क्षेत्र के लोगो के साथ ऐसा ही हुआ है | भोजपुर राज्य हमारे पुरखों का सपना है | 1947 में अखिल भारतीय भोजपुरी सम्मेलन में राहुल सांकृत्यान ने भोजपुर राज्य की मांग को उठाया था |
डॉ भीम राव अम्बेडकर ने अपनी पुस्तक भाषाई राज्य एक विवेचना ” में राज्यों के गठन के लिए भाषा , संस्कृति और भूगोल को आधार बनाने की वकालत की है |परन्तु इसको अनदेखा किया गया |
स्वतंत्रता आदोलन में इस क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका है | किन्तु आज कल भोजपुरिया समाज खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहा है | तमाम राजनैतिक लोग इस क्षेत्र से देश के महत्वपूर्ण पदों पर आसीन रहें फिर भोजपुरी भाषा को आठवी अनुसूची में न शामिल हो पाया है और न ही भोजपुर प्रान्त का सपना सच हुआ |
-नरसिंह