‘सिक्कों की कहानी, छायाचित्रों की जुबानी‘ विषयक छायाचित्र प्रदर्शनी का आयोजन किया गया
गोरखपुर -प्राचीन सिक्के राष्ट्र की एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक धरोहर हैं। इनकी सम्यक सुरक्षा एवं भावी पीढ़ी के उपयोगार्थ इन्हेें संरक्षित रखना तथा जनसामान्य विशेष कर विद्यार्थियों में अपने धरोहर के प्रति अभिरूचि उत्पन्न करना हमारा पुनीत कर्तव्य है।
इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु संस्कृति विभाग, उ0प्र0 के वार्षिक कैलेण्डर के अनुसार आज राजकीय बौद्ध संग्रहालय, गोरखपुर द्वारा सिक्कों पर आधारित उक्त विषयक प्रदर्शनी का आयोजन किया गया।
प्रदर्शनी का उद्घाटन मुख्य अतिथि प्रो0 राजवन्त राव, आचार्य, प्राचीन इतिहास, पुरातत्व एवं संस्कृति विभाग, दी0द0उ0 गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर द्वारा किया गया।
प्रदर्शनी में सिक्कों के प्रारम्भ से लेकर वर्तमान तक उनके ढालने की तकनीक तथा विभिन्न प्रकार के सिक्कों के छायाचित्र प्रदर्शित किये गये हैं। शासक के छवि (चेहरे) वाले सिक्के, विभिन्न आकार के सिक्के (छड़, तश्तरी, अष्टकोण, चौकोर, आयाताकार आदि आकार के सिक्के) के साथ-साथ ब्राह्मी, खरोष्ठी, ग्रीक, नागरी और अरबी लिपि में लेखयुक्त सिक्कों के भी छायाचित्र इस प्रदर्शनी में प्रदर्शित किये गये हैं। देवी-देवताओं के अंकनयुक्त सिक्कों के छायाचित्र भी प्रदर्शनी में आकर्षण के केन्द्र हैं।
प्रदर्शनी के अवलोकन के पश्चात् मुख्य अतिथि ने अपने सम्बोधन में कहा कि प्राचीन इतिहास के स्रोत के रूप में सिक्कों का अपना महत्वपूर्ण स्थान रहा है। सिक्कों की कहानी का प्रारम्भ मुनष्य के एक स्थान पर समूहों में बसने के साथ तब प्रारम्भ हुआ, जब विभिन्न वस्तुओं का आदान-प्रदान करना उनके जीवन की एक अनिवार्य आवश्यकता बन गई। धीरे-धीरे इसी आवश्यकता ने विनिमय (EXCHANGE ) के रूप में एक व्यवस्थित रूप ले लिया।
इसी क्रम में उन्होंने यह भी कहा कि हड़प्पा और मोहनजोदड़ों में प्राप्त विशाल भण्डारों के अवशेष इस ओर संकेत करते हैं कि ईसा पूर्व के तीसरी सहस्राब्दी तक विनिमय के माध्यम के रूप में अनाज का उपयोग होता रहा होगा। आगे चलकर वैदिक काल में गायों को विनिमय का माध्यम माना गया।
कालान्तर में विनिमय के माध्यम के विकल्प के रूप में ‘निष्क‘ का प्रयोग प्रारम्भ हुआ, जो कदाचित हार की तरह का कोई आभूषण था। आगे चलकर गाय और निष्क के बाद विनिमय के माध्यम के रूप में सुवर्ण का प्रयोग आरम्भ हुआ, जिसे निश्चित भार या वजन में तौलने के लिए कृष्णल (एक प्रकार का बीज) प्रयोग में लाया गया।
धातु पिण्डों के माध्यम से विनिमय करने की प्रथा व्यवस्थित हो जाने पर भी उनके सही वजन एवं धातु के शुद्धता की प्रामाणिकता के लिए उन पर उत्तरदायी अधिकारी का चिन्ह अंकित किया जाने लगा। इस प्रकार सिक्कों का जन्म हुआ। संग्रहालय द्वारा आयोजित प्रदर्शनी में सिक्के बनाने की विधि एवं प्रारम्भ से लेकर वर्तमान तक के सिक्कों की एक झांकी प्रस्तुत की गयी है, जो निश्चित रूप से जनसामान्य विशेषकर विद्यार्थियों के लिए अत्यन्त उपयोगी है। मुख्य अतिथि ने संग्रहालय के इस तरह के प्रयास की सराहना करते हुए अपनी शुभकामना व्यक्त की।
संग्रहालय के उप निदेशक डाॅ0 यशवंत सिंह राठौर ने प्रदर्शनी के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इस प्रदर्शनी में सिक्कों के प्रारम्भ से लेकर वर्तमान तक उनके ढालने की तकनीक छायाचित्रों के माध्यम से दर्शाने का प्रयास किया गया है।
भारत के प्राचीनतम सिक्के, जिन्हें आहत सिक्कों (PUNCHMARK COIN) के नाम से जाना जाता है, के बनाने तथा उनपर चिन्ह अंकित करने की विधि को छायाचित्रों के माध्यम से दिखाया गया है। विभिन्न जनपदों के सिक्के, भारतीय यवन सिक्के, कुषाण एवं गुप्त राजाओं के सोने, चांदी एवं तांबे के सिक्कों के अतिरिक्त सातवाहनों के सिक्कों के छायाचित्र भी आकर्षण के केन्द्र हैं। प्रदर्शनी में मध्यकालीन सिक्के, आधुनिक सिक्कों की श्रंृखला में आना, नया पैसा के अतिरिक्त मेडल तथा संग्रहालय में संग्रहीत अति महत्वपूर्ण सिक्कों के भी छायाचित्र रोचक ढंग से प्रदर्शित किये गये हैं।
अन्त में संग्रहालय के उप निदेशक डाॅ0 यशवन्त सिंह राठौर ने मुख्य अतिथि एवं विशिष्ट अतिथियों को स्मृति चिन्ह एवं चौरी-चौरा शताब्दी महोत्सव डाक टिकट भेंट करते हुए मुख्य अतिथि, समस्त अतिथियों, दर्शकों एवं पत्रकार बन्धुओं को धन्यवाद ज्ञापित किया।
उक्त कार्यक्रम के अवसर पर विशिष्ट अतिथि राकेश श्रीवास्तव, पूर्व सदस्य, उ0प्र0 संगीत नाट्य अकादमी एवं सुभाष चन्द्र चौधरी, पूर्व उप मुख्य सुरक्षा आयुक्त, पूर्वोत्तर रेलवे, गोरखपुर सहित धीरज सिंह, डाॅ0 रेखा रानी शर्मा, डाॅ0शिवानी श्रीवास्तव, रीता श्रीवास्तव, सुशील गुप्ता, डाॅ0 ओम प्रकाश मणि त्रिपाठी, गायत्री रतन, भास्कर विश्वकर्मा, भालचन्द्र मिश्रा, पवन पंक्षी, गोकुलानन्द, दुर्गा शंकर द्विवेदी, अमरनाथ श्रीवास्तव, अविनाश यादव, अग्रिम सिंह, संगीता सिंह, राघवेन्द्र मिश्रा, अवधेश तिवारी, रामचन्द्र यादव, मीनू जायसवाल एवं नीरा शुक्ला आदि की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।