साक्षात्कार
फोटो – राकेश मौर्य संपादक , निष्पक्ष प्रतिनिधि और भोजपुरी भाषाविद डॉ लारी आजाद
निष्पक्ष प्रतिनिधि के संपादक राकेश मौर्य द्वारा चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ के इतिहास विभाग के Head of Department , Board Of Studies, RDC Chairman डॉ लारी आजाद का भोजपुरी भाषा और साहित्य पर 6 july 2023 को अपराह्न 1 बजे साक्षात्कार लिया गया | प्रस्तुत है साक्षात्कार के प्रमुख अंश —-
संपादक -भोजपुरी भाषा को आप किस रूप में देखते हैं ?
डॉ लारी आज़ाद –भोजपुरी हमारी मातृभाषा है ,महतारी भाषा है किन्तु आजकल लोगो को इस भाषा में बात करने में शर्म महसूस होती है | मैंने दुनिया के पांच महाद्वीपों की यात्रा की है और जिन लोगो से वहां मिला सबको बताया भोजपुरी मेरी मातृभाषा है | भोजपुरी मेरे रगो में बहती है ,भोजपुरी से सोच शुरू होती है और इसी से खत्म होती है |कश्मीर से कन्याकुमारी तक जितनी भी भाषाएँ बोली जाती है | भारत के बाहर मैंने इन भाषाओं को नही सुना |दुनिया के 13 देशों में भोजपुरी को मान्यता प्राप्त भाषा के रूप में पाया | जैसे – मारिशस , फिजी , सिंगापूर , साउथ अफ्रीका , दुबई , गुयाना , सुरीनाम , दुबैको , फैज , कैरिवियन , ईस्ट इंडीज आइलैंड आदि | लोग कहतें है भोजपुरी बोली है आपको मै बता दू कि भोजपुरी बोली नही भाषा है और इसका गौरवशाली अतीत है |
संपादक- भोजपुरी भाषा और संस्कृति के विकास के लिए जन जागरण अभियान की आवश्यकता आजकल क्यों है ?
डॉ लारी आजाद – किसी भी भाषा या संस्कृति की लड़ाई कमरे में बैठ कर नही होती | कमरे में बैठ कर तो उल्लास की बात होती है |भोजपुरी अपने संक्रमण काल से गुजर रही है |जहां भोजपुरी को भाषा की बजाय बोली घोषित करने का प्रयास हो रहा है |जिससे इसका अस्तित्व संपत हो जाए और भोजपुरी दम तोड़ जाए |भोजपुरी केवल भाषा ही नही है बल्कि सम्पूर्ण संस्कृति है |भोजपुरी इतनी सशक्त भाषा है कि सात समन्दर पार जाने के बाद भी सैकड़ों वर्षो बाद मरी नही |भोजपुरी भाषा के उन्नायक बड़े -बड़े विद्वान् अब नही रहे | भोजपुरी के संरक्षक गिरमिटिया मजदूर के अलावा बम्बई और कलकत्ता में लाखो के संख्या में जाने वाले भोजपुरी क्षेत्र के लोगो द्वारा आज भी जीवित है |
अमीर खुसरो के बुझौवल ( तेरहवी शताब्दी ) विद्यापति के दोहों में ( चौदहवी शताब्दी ) ,कबीर के दोहों में ( पंद्रहवी शताब्दी ) से लेकर भिखारी ठाकुर , राहुल सांकृत्यायन , मोती बी . ए . तक लोग रहें या न रहें भोजपुरी जीवित रहेगी |
संपादक –भोजपुरी साहित्य और कला में बढ़ते अश्लीलता का कारण क्या है ?
डॉ लारी आजाद – अश्लीलता केवल साहित्य और कला में नही है हमारी सोच में है | यह हमारे आपके पारिवारिक रहन – सहन से शुरू होती है | जातिगत सूचक शब्दों का प्रयोग करना भी अश्लीलता है | साहित्य में लोग व्यंग्य से हास्यव्यंग्य , हास्य ब्यंग्य से मतलबी ( दुअर्थी ) पर आते है तब अश्लीलता आती है |
भोजपुरी सिनेमा की बात करे तो भोजपुरी में पहले समाज और परिवार प्रधान फिल्मे बनती थी लेकिन कुछ दशकों से कमाई के चक्कर में भोजपुरी संस्कृति के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है | यह भोजपुरी समाज के लिए हितकर नही है |
संपादक – भोजपुरी क्षेत्र ( उत्तर प्रदेश, बिहार ) के तमाम लोग भारतीय सदन के सदस्य रहे फिर भी भोजपुरी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान नहीं मिला, इसका क्या कारण है ?
डॉ लारी आजाद – मै इस बात का प्रमाण हूँ कि मेरा सहारा लेकर लोग उत्तर प्रदेश और बिहार के सदन में पहुचे | राजनैतिक लोग भोजपुरी के सहारे केंद्र और प्रदेश की राजनीति में अपना स्थान बना लिया लेकिन इन लोगो ने वहां पहुचकर भोजपुरी को भूल गये |
डॉ लारी दुःख भरे शब्दों में – केदारनाथ सिंह जैसा साहित्यकार ,उन्होंने अपनी मातृभाषा के लिए कोई जिम्मेदारी नही निभाई | कभी उन्होंने नही कहा की मै भोजपुरी का लाल हूँ जबकि उनका घर- परिवार भोजपुरिया है |
संपादक – आजकल भोजपुरी के तमाम संगठन बने हुए है फिर भी भोजपुरी हाशिये पर खड़ी क्यों है ?
डॉ लारी आजाद – भोजपुरी की कोई भी संस्था ऐसी नही है जिसकी पहचान या प्रभाव राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय फलक पर हो | कहने के लिए गली -कूचे में बहुत सारे लोग बैनर पोस्टर लगा रखे हैं और आये दिन दिल्ली से लेकर बंबई तक आयोजन होते रहते है |यह संस्थान व्यक्ति विशेष का होता है और उसमे वह महिमामंडित होता रहता है |
साक्षात्कार के अंत में डॉ लारी ने श्री मौर्य से आशा व्यक्त करते हुए कहा कि आप एक बुद्धजीवी ,समाजसेवी और कलमकार है और आप महामानव बुद्ध की धरती से , भोजपुरिया माटी के लाल हैं | आप भोजपुरी भाषा के सम्मान और संस्कृति को आगे बढाए मै आपका सदैव साथ दूंगा | -धन्यवाद