अधिवक्ता दिवस
देशरत्न डा0 राजेंद्र प्रसाद का जन्म बिहार के सीवान जिले के जीरादेई गाँव में 03 दिसम्बर 1884 को एक मध्यवर्गीय कायस्थ परिवार में हुआ था। महादेव सहाय व कमलेश्वरी देवी के सबसे छोटी सन्तान डा0 राजेंद्र प्रसाद अत्यन्त मेंधावी छात्र रहें हैं ।
इनकी यादाश्त अदभुत थी। ये बचपन से ही अत्यन्त अध्ययनशील व परिश्रमी रहे। अपनी कक्षा में सदैव प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले छात्र रहें हैं । इन्हें अपनी मातृभाषा भोजपुरी के आलावा हिन्दी,अंग्रेजी , संस्कृत व फारसी की अच्छी जानकारी थी।
इनके छात्रजीवन की एक बडा ही रोचक प्रसंग है । इनकी उत्तर पुस्तिका का मूल्याकन करते हुए परीक्षक ने टिप्पणी की कि ” परीक्षार्थी परीक्षक से अच्छा है ।”
इनकी अद्भुत यादाश्त की एक रोचक कहानी है कि एक बार संविधान सभा की बैठक में विचार-परामर्श से तैयार ड्राफ्टिंग कही गुम हो गयी, सब लोग परेशान हो गये तब राजेन्द्र प्रसाद जी ने लोगो को आश्वस्त किया कि चिंता की काई बात नही है | वें उसकी दूसरी प्रतिलिपि तैयार कर लेंगे । उसी क्षण कुछ मिनटो के प्रयास से इन्होने खोई हुई ड्राफ्टिंग की दूसरी प्रति लिख डाली। संयोग से खोई हुई प्रति के मिल जाने पर उसका मिलान दूसरी प्रति से की गई तो पाया गया कि वह दूसरी प्रति मूल प्रति से सौ प्रतिशत मेंल खा रही थी।
डा0 राजेन्द्र प्रसाद एक महान स्वतत्रता संग्राम सेनानी व एक कर्मठ राजनीतिज्ञ थे । बिहार के दुभिर्क्ष में इन्होने अपना अप्रतिम योगदान दिया था। डा0 प्रसाद कानून के अच्छे ज्ञाता व व्याख्याता रहें हैं । भारतीय संविधान के निर्माण में इनका बड़ा ही सराहनीय योगदान रहा है । संविधान सभा के गठन के पूर्व वें भारत के खाद्य एवं कृषि मंत्री रहें हैं ।
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् 26 जनवरी 1950 से 13 मई 1962 तक की अवधि में इन्हें भारत के दो बार राष्ट्रपति रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ हैं । इनकी सादगी बेमिशाल रहीं है । राष्ट्रपति भवन में आकर ठहरने वाले लोगो को भोजन में भौरी चोखाँ मिलता था।
अपने क्षेत्र के आगन्तुको से वे सदैव अपनी मातृभाषा भोजपुरी भाषा ही बोलते थे । डॉ राजेंद्र प्रसाद का जन्मदिन अधिवक्ता दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। न्यायिक प्रक्रिया व न्यायिक संस्थाओ में आवश्यक बदलाव कर अधिवक्ताओ को समुचित स्थान व सम्मान देना ही डा0 राजेन्द्र प्रसाद के प्रति सच्ची श्रद्धान्जलि होगी।
मनोज ” मैथिल “
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