ललई सिंह यादव
युगों- युगों की परंपरा रही है कि अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए कोई न कोई इस धरती पर पीड़ितों का फरिश्ता बन कर कोई न कोई हमारे बीच आ ही जाता है। चाहे मुगल शासकों के अत्याचार,अंग्रेजों की दमनकारी नीति या तो फिर दलितों और बहुजनों पर अमानवीय व्यवहार। किसी न किसी रूप में दुखदाई की असहनीय पीड़ा की काली बदरी हटाने के लिए सूरज बनके हमारे बहुजन नायकों का भारत में उदय होता रहा है।
बहुत से अपने बहुजन नायक दलित शोषित समाज के लिए प्रेरणा श्रोत बन कर आए तो कुछ एक ने शिक्षा और समता मूलक समाज के लिए भारतीय संविधान की धाराओं से आधुनिक समाज में सम्मान सहित विकास के साथ जीने की राह आसान कर दी।
दक्षिणी भारत के ई बी रामासामी पेरियार,संत अयंकारी, महाराष्ट्र से ज्योतिबा फूले,सावित्री बाई फुले और बाबा साहब डॉ. भीम राव आंबेडकर और अन्य दलित महापुरुषों के कारवां को और आगे बढ़ाने के लिए अपने बहुजनों में से अन्य समाज सुधारक आगे आए ,उनमें से ललई सिंह यादव जो अब पेरियार ललई सिंह के नाम से जाने जाते हैं , अग्रिम पंक्ति में बड़े ही आदर से लिया जाता है।
कहते हैं भीख नहीं देगा ठीक है,लेकिन तुमड़ी( भिक्षा पात्र) तो नहीं तोड़ेगा , के सिद्धांत पर अपनी बेबाक बात को अपनों के बीच रखना और ब्राह्मणवादी आडंबरों के खिलाफ में खड़े होना ललई सिंह की क्रांति कारी विचारों में तेजी ला दी।
दक्षिण और मध्य भारतीयों की क्रांति कारी आवाज और उनके हाथों से जलती मसाल कोआगे बढ़ाने का बीड़ा उठाया ललई सिंह यादव ,जिनके द्वारा किए गए महान सामाजिक परिवर्तन, साहसिक कार्यों की अमर गाथाएंऔर सुधार को अपने बहुजन समाज कभी भी नहीं भूलेगा।
जीवन परिचय-
बचपन में लल्ला बुलाए जाने वाले ललई सिंह यादव का जन्म 1सितंबर 1911 को उत्तर भारत के कानपुर के झींझक रेलवे स्टेशन के पास कठारा गांव में हुआ था। अन्य बहुजन नायकों की तरह उनका जीवन भी संघर्षों से भरा था।वह 1933 में ग्वालियर की सशस्त्र पुलिस बल में बतौर सिपाही भर्ती हुए, पर कांग्रेस के साथ स्वराज आंदोलन का समर्थन के कारण ब्रिटिश हुकूमत ने उन्हें दो साल के लिए बर्खास्त कर दिया।
उस समय समाज पीड़ा केवल वहीं समझता था जिसके दिल में उन लाखों शोषितों,दलितों,पीड़ितों और बहुजनों के के प्रति किए जा रहे अमानवीय कृत्य असहनीय लगता था। ललई सिंह समाज सुधारक के साथ सामाजिक कार्यकर्ता थे , जिन्होंने सामाजिक न्याय के लिए आजीवन संघर्ष किया और सामाजिक न्याय के अपने लक्ष्य के लिए अनेक पुस्तकों की रचना की को अत्यंत विवादित रहीं ।ललई सिंह को उत्तर भारत का पेरियार कहा जाता है।
सच्ची रामायण:
इतने महान व्यक्तित्व एवं क्रांति कारी विचारों को सजोए ब्राह्मणवादी अनाचार, आडंबरों,मनुवादी व्यवस्थाओं, वर्णव्यवस्था ,शोषितों के शोषण और अंधविश्वास के खिलाफ पेरियार की तर्ज पर आवाज उठाने वाले उत्तरी भारत के प्रथम क्रांति वीर ललई सिंह यादव ने समाज को जागरूक करने के उद्देश्य से “सच्ची रामायण” लिख कर ब्राह्मणवादी पाखंडियों और देश के मनुवादियों में खलबली पैदा कर दी।उन्होंने लिखा है यह रामायण मात्र कल्पना पर आधारित है, न कहीं राम सीता हैं न कहीं दशरथ और जनक। बिना पिता के जन्मे चारो भाइयों की कहानी तो एकदम झूठी है।जिस काल का वर्णन तुलसी अपने झूठी रामायण में किया है, लाखों सालों का अंतर है।जहां मानव जाति की उत्पत्ति एक लाख वर्ष पूर्व का है,वहीं 2007 में नासा के वैज्ञानिकों ने राम सेतु की झलक 18लाख वर्ष पूर्व साबित किया है। करोड़ों वर्ष पूर्व डायना सोर के अवशेष मिले परंतु अभी तक बंदर भालू के अस्तित्व और अवशेष का अता पता ही नहीं है।
1968 में ही ललई सिंह ने “दी रामायना : ए ट्रू रीडिंग”का हिंदी अनुवाद “सच्ची रामायण” छपते ही हिंदू धर्मावलंबियों में आग सी लग गई और 8दिसंबर 1969में तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने देश में दंगा भड़काने के आरोप में ललई सिंह द्वारा लिखित किताब जब्त कर ली,मगर कई पेशियों के बाद हाई कोर्ट के प्रसिद्ध एडवोकेट बनवारी लाल यादव ने सच्ची रामायण के पक्ष में जबरदस्त पैरवी के बाद 19जनवरी 1971को जस्टिस ए. कीर्ति ने ललई सिंह के पक्ष में फैसला सुनाते हुए जब्त किताबें वापस कराई और ललई सिंह को उनके खर्च का तीन सौ रुपए कोर्ट से वापस कराई।
ललई सिंह ने लिखे पांच नाटक-
1. अंगुली माल
2. शंबूक बध
3.संतमाया बलिदान
4.एकलव्य
5.नाग यज्ञ
गद्य में लिखी तीन किताबें-
1.शोषितों पर धार्मिक डकैती
2.शोषितों पर राजनीतिक डकैती
3.सामाजिक विसमता कैसे समाप्त हो?
सस्ता प्रेस-
पेरियार ललई सिंह यादव ने बड़ी मेहनत से इतिहास के पन्नों से ढूंढ़- ढूंढ़ कर बहुजन नायकों को खोजा। उन बहुजन नायकों में बौद्धधर्मानुयाई बहुजन राजा अशोक उनके आदर्श व्यक्तित्वों में शामिल किया।उन्होंने अशोक पुस्तकालय नाम से प्रकाशन संस्था बनाई और अपने दम पर प्रिंटिंग प्रेस लगाया ,जिसका नाम रखा था सस्ता प्रेस।
हिंदू से अपनाए बौद्ध धर्म-
सच्ची रामायण सही साबित होने के उपरांत और हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट से जीत होने के बाद ललई सिंह दलितों ,पिछड़ों और पीड़ित बहुजनों के नायक ही नहीं बल्कि महानायक बन गए। ललई सिंह यादव हिंदू धर्म में व्याप्त बुराइयों,मन गढ़न्त रामायण,महाभारत और अन्य मनुवादी विचारों से अपने को दूर रखते हुए सन 1967में हिंदू धर्म त्याग कर बौद्ध धर्म अपना लिया।
वे जानते थे कि हमारी छोटी कौम के लोग अपने नाम के आगे तरह तरह की उपाधि लगाकर एक दूसरे से दूर रहकर बंटे रहते हैं,इसलिए वे अपने नाम के आगे से यादव शब्द हटा दिए। यादव शब्द हटते ही लाखों लोगों में नव चेतना जागृत होने लगी। चूंकि ललई सिंह जाति विहीन और समता मूलक समाज की स्थापना के लिए बाबा साहब डॉ.भीम राव आंबेडकर को आदर्श अपनाए,इसलिए इनके समर्थन में देश में उनके साथ लाखों लोग हो गए जिससे उनके सपनों को धरातल पर उतरते देर नहीं लगी।
संघर्ष अनवरत जारी रहा।इसी बीच तमिलनाडु में एक भव्य समारोह में ललई सिंह को पेरियार की उपाधि से विभूषित किया गया। तभी से ललई सिंह यादव से पेरियार ललई सिंह हो गए। ललई सिंह की क्रांतिकारी बीर गाथाएं आज भी दलित समाज के लिए प्रेरणा दाई हैं।पेरियार की चर्चित किताब सच्ची रामायण को हिंदी में लाने और उसे पाबंदी से मुक्त कराने के अनवरत लंबी लड़ाई लड़ने वाले दलितों पिछड़ों और बहुजनों के नायक के रूप में ललई सिंह अंततः 7 फरवरी 1993 को दिवंगत हो गए।जब भी दलितों,शोषितों और बहुजनों में नव जागरण और उत्थान की बात आयेगी तो इतिहास इस क्रांति बीर ललई सिंह को जरूर याद करेगा।
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