Friday 3rd of May 2024 02:54:07 PM

Breaking News
  • मुलायम के गढ़ में योगी का रोड शो , बुलडोजर पर खड़े होकर लोगो ने किया स्वागत , बोले -निस बार इतिहास रचेगा |
  • ममता बनर्जी को पहले से ही थी शिक्षक भर्ती घोटाले की जानकारी , TMC के पूर्व महासचिव कुणाल घोष ने किया बड़ा दावा |  
Facebook Comments
By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 23 Jan 2021 5:56 PM |   278 views

नेता जी की 125 वीं जयंती पर नव नालंदा महाविहार में संगोष्ठी का आयोजन किया गया

नालंदा – नेताजी सुभाष  चंद्र बोस की 125 वीं जयंती पर नव नालंदा महाविहार सम विश्वविद्यालय, नालंदा में कुलपति प्रो वैद्यनाथ लाभ की प्रेरणा एवं मार्गदर्शन से संगोष्ठी का आयोजन किया गया। 
 
इस कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रोफेसर रवींद्र नाथ श्रीवास्तव “परिचय दास”, अध्यक्ष, हिंदी विभाग ने कहा कि पराक्रम और पुरुषार्थ के प्रतीक सुभाष चंद्र बोस गहन चिंतन के अग्रदूत थे । भारत के सभी वर्ग-समूह में वे बराबरी चाहते थे । गरीबी दूर करने और ज़मीदारी-उन्मूलन के बारे में उनके विचार आज भी मूल्यवान हैं। औद्योगिक समस्या से निपटने के लिए उन्होंने कृषि- सुधारों को पर्याप्त नहीं माना । वे चाहते थे कि औद्योगिकीकरण की नई प्रक्रिया प्रारंभ हो।
 
उन्होंने उपनिवेशों के मुक्तिसंग्राम को समाजवादी तंत्र की स्थापना का मार्ग बताया । वे   महावीर के ” जियो और जीने दो” में विश्वास रखने वाले थे । उनकी दृष्टि में भारत में  लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए कई दल होने चाहिएँ । उन्होंने कहा था कि उनकी लड़ाई केवल भारत के लिए नहीं अपितु  ‘मानवता’  के लिए है। 
 
कार्यक्रम में भागीदारी करते हुए प्रो. सुशीम दुबे ने कहा कि सुभाष बाबू की वजह से अंग्रेजों को लगने लगा कि भारत पर शासन करना मुश्किल होगा। वे देश के प्रति निष्ठावान , परम पराक्रमी व्यक्ति थे। डॉ. श्रीकांत सिंह ने कहा कि उनके व्यक्तित्व के निर्माण में अनेक महापुरुषों का अवदान रहा है जिनमें बेनी माधव दास, स्वामी विवेकानंद, अरविंद घोष,  टैगोर,  चितरंजन दास थे।  उनमें चिन्तन की अनेक सरणियां थीं। इन सबमें एक अद्भुत समन्यवयन था । 
 
डॉ. शुक्ला मुखर्जी ने  उदाहरण देते हुए समझाया कि वे जीवन के प्रत्येक पल को ‘परीक्षा’  मानते थे । उन्होंने  रवींद्र नाथ टैगोर  के गीत का उदाहरण देते हुए कहा – ‘जहां मन भयशून्य हो, सिर ऊंचा हो,  ज्ञान मुक्त हो और दुनिया  असंकीर्ण हो’ ,  हमें वहाँ जाना है। सुभाष उसी दिशा में भारतीय नागरिक को ले जा रहे थे।
 
डॉ. विश्वजीत कुमार ने कहा कि देश के लिए ‘जय हिंद’ का नारा, गांधी जी के लिए ‘राष्ट्रपिता’ सम्बोधन नेता जी ने दिया। जबकि गांधी जी ने सुभाष चंद्र बोस को ‘नेता जी’ सम्बोधन दिया। विभिन्न  स्थानों व नगरों के नए नामकरण की प्रक्रिया उन्होंने ‘भारतीयकरण’ के पक्ष में आरम्भ की थी ।
 
धन्यवाद-ज्ञापन डॉ. सुनील प्रसाद सिन्हा ने किया।  उन्होंने कहा कि सुभाष बाबू के जीवन के विविध आयाम थे। उनके सभी पक्षों से हमें सीखने व  उत्साहित होने की प्रेरणा मिलती है।  संचालन डॉ. हरे कृष्ण तिवारी का था। उन्होंने अनेक कवियों के राष्ट्रीयता-भरे उद्धरणों के साथ कार्यक्रम का संचालन किया।
 
संगोष्ठी में  प्रमुख रूप से  डॉ. दीपंकर लामा, डॉ. विनोद चौधरी, डॉ. रूबी कुमारी, डॉ. प्रदीप दास,  डॉ. मुकेश वर्मा,  डॉ. नरेंद्र दत्त तिवारी, डॉ.  बुद्धदेव भट्टाचार्य, डॉ. धम्म ज्योति , डॉ. सुरेश कुमार, जितेन्द्र कुमार आदि महाविहार के  आचार्यों  के साथ  गैर शैक्षणिक सदस्य , शोधार्थी एवं छात्र- छात्राएँ  उपस्थित थे ।
Facebook Comments