माँ
कोई भी उपमा
इसके लिए छोटी है
मां
जीने का अंदाज़ है
जो कल थी
और होगी कल
वही आज है
कभी डाँटना
कभी गले से लगाना
यही है
मेरी जिंदगी संवारना
मां
मेरे होठो से कभी,
मुस्कान को न जाने देती
सारे गम मेरे
अपने ही सह लेती
मां
जरुरत है मेरे लिए
जैसे हवाए साँसो के लिए
उसने खुद के सपने
तोड दिया
सपने मेरे संजोए
मां
उसके लिए मेरे
अल्फ़ाज कम है
क्या है वो कैसे बताऊ
मेरी आँखे नम है
भगवान हर जगह
नही होते इसलिए
वह हमारी दुनिया में
मां को भेजते है
मां के कदमों में
जन्नत है
उसकी आँचल में,
ऐसी राहत है
जो संसार मे
कही नही है
उसका दिया हुआ
संस्कार व आशीर्वाद
हमे बनाता है
एक दिन कामयाब।
( दिव्या चौबे , बलिया )
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