हमारा भारत तब और अब
आज सभी मीडिया में ही राष्ट्रीयता का प्रचार परवान पर है। सत्तासीन जनेतागण भी सर्वत्र राष्ट्रीयता -राष्ट्रीयता का गान गाते नहीं थक रहे हैं। यहां एक प्रश्न किसी भी शुभ चेत्ता के समक्ष सास्वत रूप से अनुत्तरित रह गया है कि राष्ट्रवाद का वर्तमान झोंक भारत वर्ष जैसा अनेक गंभीर समस्याओं से आकीर्ण देश में कितने दिनों तक टिक पाएगा ?
अंग्रेजों के भारत वर्ष में आने के समय तक संतुलित अर्थव्यवस्था थी साथ में थी समृद्ध संस्कृति। 2 फरवरी 1835 के दिन लार्ड मैकाले ने स्वंय इस कथन की पुष्टि करते हुए ब्रिटिश संसद में कहा था -“*मैं संपूर्ण भारतवर्ष का उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम भ्रमण किया ।मैंने एक भी आदमी को भीख मांगते नहीं देखा और ना एक भी चोरी की वारदात देखने- सुनने को मिला। इतने समृद्ध व विकशित सांस्कृतिक देश पर शासन करना तब तक संभव नहीं है जब तक वहां के नागरिकों के मन में यह भावना न भर दी जाए कि ब्रिटिश का सब कुछ उनसे अच्छा है।
इसी को उदेश्य में रख कर लॉर्ड मैकाले ने भारतीय शिक्षा व्यवस्था में आमूल परिवर्तन कर नैतिकता, मानवीय मूल्य और धर्म बोध रहित बना दिया ।उसका उद्देश्य था- पूंजीवादी अंग्रेजी सरकार का गुलाम तैयार करना। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात आज तक भारत वर्ष की सभी शिक्षा संस्थानों में ही पूंजीपतियों और उनकी समर्थक सरकारों के गुलाम ही तैयार किए जाते हैं। अंग्रेजों ने दूसरा जो सबसे बड़ा घातक काम किया वह था भारतवर्ष की संतुलित अर्थव्यवस्था को छिन्न-भिन्न कर पूंजीवादी केंद्रित अर्थव्यवस्था की नींव डालना। इसके पूर्व भारत वर्ष की अर्थव्यवस्था विकेन्द्रित थी। अंग्रेजों की अर्थव्यवस्था ने बेरोजगारों की फौज खड़ी कर दी। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी भारतीय सरकार उसी व्यवस्था का पोषण करती रही। परिणाम स्वरूप बेरोजगारी ,भुखमरी, कुपोषण, अपराध ,नैतिकता, अधर्म और अपसंस्कृति, क्षेत्रियतावाद, भाषा समस्या, इत्यादि गंभीर समस्याओं से देश भारत आज त्रस्त व जर्जर है और नारकीय दलदल में सभी जीने के लिए विवश है। किसी भी क्षण भयंकर विस्फोट हो सकता है।
आजादी पाने के बाद जिन लोगों के हाथों सत्ता हस्तांतरित हुई थी उनका प्रथम कर्तव्य था अर्थव्यवस्था को विकेंद्रित कर सर्वजनिक और सर्व कल्याण कर बनाना। इसके लिए संविधान में उन सभी प्रावधानों का उल्लेख जरूरी था जिसमें एक तरफ एक विशेष निर्धारित सीमा के ऊपर धन संग्रह का अधिकार से सबको वंचित करना, दूसरी तरफ सब की निम्नतम आवश्यकता( भोजन ,वस्त्र ,आवास ,शिक्षा और चिकित्सा) की आपूर्ति का वादा होता, सुनिश्चितता होती। सभी स्वतंत्र और उन्नत भाषाओं को संवैधानिक मान्यता देकर उन सभी क्षेत्रों के आर्थिक, सांस्कृतिक, सामाजिक ,उन्नयन का कार्यक्रम तैयार कर उससे आमजन आबादी को जोड़ना कर्तव्य था। कृषि को उद्योग का दर्जा देकर सहकारिता के अंतर्गत क्रमशः संगठित करना तथा वैज्ञानिक योजना के द्वारा इसे लाभकारी बनाना कर्तव्य था ।
कृषि सहायक उद्योगों व कृषि उत्पाद पर आधारित उद्योगों की स्थानीय स्तर पर स्थापित कर स्थानीय जन आबादी को नियोजित करना कर्तव्य था। कृषि ,कृषि सहायक और कृषि उत्पाद पर उद्योगों में 80% आबादी को नियोजित किया जा सकता था। उपभोक्ता की सभी वस्तुओं को उपभोक्ता सहकारी संस्थाओं के माध्यम से उपभोक्ताओं को उपलब्ध कराना कर्तव्य था। उपर्युक्त उद्योगों व कृषि को भी सहकारिता के अंतर्गत संचालित करना ही उत्तम है। इन सब से बिचौलियों की मुनाफाखोरी और कालाबाजारी से बचाया जा सकता है।
उद्योगों को सहकारिता से संचालित करने से उत्पादकता और गुणवत्ता में वृद्धि होती तथा सब को क्रय शक्ति उपलब्ध होती। इससे उन सब की न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति होती। बड़े जटिल व की(key) उद्योग जिन्हें सहकारिता से संचालित करना संभव नहीं है, उन्हें सरकार से लाभ हानि रहित सिद्धांत से संचालित करती। किसी उद्योगपति को इससे बेतरतीब धन संग्रह की छूट नहीं मिलती। फलत: अमीरी व गरीबी की खाई जो आज निर्मित है, वह नहीं होती। अर्थात सरकार का कर्तव्य था संतुलित विकेंद्रित अर्थव्यवस्था को स्थापित करना। दु:ख की बात है कि सरकार संतुलित अर्थव्यवस्था की स्थापना न कर पूंजीपतियों और राजनयिकों की सुविधा के लिए पूंजीवादी अर्थव्यवस्था को ही देश में सुदृढ़ करने का काम किया।
सरकार का दूसरा प्रमुख कर्तव्य था नैतिकता, मानवीय मूल्य,धर्मबोध समाज में जागृत करने हेतु अध्यात्म तत्व पर आधार कर आधुनिक शिक्षा व्यवस्था के कार्यक्रमों को तैयार कर शिक्षा व्यवस्था में आमूलभूत परिवर्तन लाकर पुनर्स्थापित करना। इससे वास्तविक मानव, सद मानव तैयार होते, जिनमें नैतिकता, मानवीय मूल्य, धर्म बोध का जागरण होता ।समाज से जातीय और सांप्रदायिक द्वेष कलह का अंत होता। समाज में कल्पना का स्वर्ग स्थापित होता।
जिस देश के नागरिक न्यूनतम आवश्यकता की पूर्ति के अभाव में अस्तित्व रक्षा हेतु संघर्षरत हों, परिस्थिति के दबाव में जिस देश का नागरिक अनैतिकता ,अन्याय, आर्थिक ,राजनीतिक, सामाजिक सांस्कृतिक और धार्मिक शोषण का दंश झेलने के लिए विवश हो, जिस देश की अधिसंख्य नागरिकों की स्वाभाविक स्वतंत्रता की वाहक ‘भाषा ‘को अवदमित कर बोलने की सामर्थ से वंचित कर गूंगा बहरा बना दिया गया हो ,जिस देश के नागरिकों के मन- प्राण को सही शिक्षा के अभाव में कुसंस्कार और अंधविश्वास फैला कर अंध पथ पर चलने के लिए प्रेरित किया जा रहा हो और कूप मंडूक की तरह कूप में मरियल सांस लेने की व्यवस्था हो, उस देश में राष्ट्रीयता का गान किस काम का! राष्ट्रीयता का महत्व व मूल्य का उनके समक्ष क्या औचित्य है?
मनुष्य के लिए राष्ट्र, समाज, राजनीति, सरकार ,अर्थनीति ,धर्म, मंदिर ,मस्जिद ,गिरजा, गुरुद्वारा है। इन सभी व्यवस्थाओं से यदि मनुष्य की रक्षा, विकास का पथ प्रसारण नहीं हो सके तो इन सब की क्या आवश्यकता है?
मनुष्य इन संस्थाओं के लिए नहीं है। जिस क्षण इन संस्थाओं द्वारा मनुष्य का शोषण होने लगे, मनुष्य को नेस्तनाबूद करने हेतु दबाने -कुचलने का काम शुरू हो जाए ,उसी क्षण इन संस्थाओं का औचित्य समाप्त हो जाता है ।दुर्भाग्यवश आज सभी संस्थाएं मनुष्य के शोषण में व्यस्त हैं। इससे आज मनुष्य को बचाना ही होगा। इसके लिए एक सर्वथा नवीन आदर्शमय कल्याणकर व्यवस्था का निर्माण आज का राष्ट्र धर्म है ,समाज धर्म है।
हम आशा करते हैं कि वर्तमान नेतृत्व इन गंभीर समस्याओं को गंभीरता से ग्रहण करेगा और सहृदयता के साथ इनके सार्थक समाधान के लिए वांछित काम करेगा। आज भारतीय प्राण धर्म की रक्षा प्रथम व प्रधान कर्तव्य है।
सर्वे भवंतु सुखिनः, सर्वे संतु निरामया ।
सर्वे भद्राणि पश्यंतु ,मां कश्चित्
दु:ख भाग भवेत्।।
में ही भारतीय प्राण धर्म का संपूर्ण तत्व निहित है ।मानवता को पतन से आज बचाना प्रथम प्राथमिक कर्तव्य व धर्म है। यही है वर्तमान नेतृत्व का प्रधान व प्रथम राष्ट्र धर्म ,राष्ट्र सेवा। इस सेवा से निर्मित सामाजिक मानसिकता से ही सही संदर्भ में राष्ट्र गठन होगा। उसी राष्ट्र का आयुष काल चिरस्थाई रह पाएगा ।
इसका अनदेखी करने से केवल राष्ट्रवाद का प्रलाप बचा रह जाएगा और राष्ट्र विघटन के पथ पर द्रुत गति से चल पड़ेगा। हथियार राष्ट्र की आंतरिक सुरक्षा नहीं कर सकता ।समाज- आर्थिक, सांस्कृतिक, आंदोलन से निर्मित संतुलित अर्थव्यवस्था ,विकसित संस्कृति और शिक्षा से निर्मित समाज मनुष्य की एकमात्र राष्ट्र की सुरक्षा करने में सफल होगा।
( कृपा शंकर पाण्डेय , बेतिया , बिहार )
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