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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 21 May 2020 2:10 PM |   336 views

मजदूर

देश की आजादी के बाद से आज तक पूरे भारतवर्ष में और भारतवर्ष के बाहर अन्य देशों में कितने मजदूर मजदूरी करने को बाध्य हैं- इसका आंकड़ा ना तो केंद्र सरकार के पास है और ना किसी राज्य सरकारों के पास। आज कोरोना वैश्विक महामारी से उत्पन्न समस्याओं के पश्चात भारत वर्ष में पहली बार एक बहुत बड़ी संख्या में मजदूरों की फौज दिखी है। 
 
ये वही मजदूर हैं जिनकी बदौलत पूंजीपति घरानों के बड़े-बड़े महलों का निर्माण हुआ है। उनके उद्योग धंधों में भिन्न-भिन्न वस्तुओं का उत्पादन हुआ है और विपुल मुनाफों से इनकी झोली भर गई है। दुर्भाग्य! मजदूर आज भी मजदूर है जिनके जीवन स्तर में कोई सुधार नहीं। शरीर पर मैले  कुचैले फ़टे वस्त्र, बाल उलझे हुए, पैर में टूटे हवाई चप्पल साथ में। अभावग्रस्त नन्हे-मुन्ने बिलखते बच्चे, गर्भवती महिला आदि ।
 
मजदूर कहां नहीं है? यत्र तत्र सर्वत्र | चिल्लाती धूप में, सड़क बनाते हुए, अस्पताल के बड़े-बड़े भवन निर्माण में, उद्योग धंधों में, खेत खलिहान में, बाग  बगीचों में सर्वत्र। लेकिन इनका अपना कहने को कुछ भी नहीं! न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति तक का साधन नहीं। 
 
कोरोना वायरस से उत्पन्न समस्याओं के मद्देनजर जब उद्योग धंधे बंद पड़ गए, लॉक डाउन की घोषणा बिना किसी तैयारी के कर दिए गए तो इन पूंजीपति घरानों के द्वारा इनके लिए संवेदना के 2 शब्द भी इनके मुख से नहीं निकले! इतनी बड़ी संवेदनहीनता का परिचय दिया है इन लोगों ने? सरकारें भी प्रारंभिक दौर में इनकी समस्याओं के प्रति चुप्पी साध ली।
 
कैसा पाषाण हृदय के धनी हैं  व्यवसाई और सरकारें उनके संबंध में जो कुछ भी कहा जाए कम है। कोरोना वायरस महामारी के अल्प काल ने विश्व के जनमानस को यह  सुस्पष्ट रूप से दिखा दिया है कि मनुष्य को मनुष्य के स्तर तक उठाना आज के लिए सबसे बड़ी बात है। सबसे बड़ी साधना है। इस काम के लिए इस महायज्ञ के लिए सामने आकर खड़े हो सके ऐसे लोगों का बड़ा अभाव है । पीड़ित  मानव आत्मा आज वैसे ही समाज पुरोधाओं के लिए आंखें बिछाए बाट जोह रही है। राजनीति प्रवण लोग इस काम में तिल मात्र भी सहायता नहीं कर सकेंगे, किया भी नही है। 
 
  इतिहास के गत 2000 वर्षों के प्रत्येक पद विशेष में राजनीति प्रवण लोगों ने वैधता का परिचय दिया है और आज भी इनके स्वभाव और मानसिकता में ,चिंतन में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। इसीलिए समाज के प्रत्येक स्तर पर नेतृत्व करने का लोभ संवरण करना ही उनके लिए बुद्धिमानी का काम है। रातों रात धनी होने का चस्का (लोभ वृत्ति) और असीमित धन संचय की प्रवृत्ति ने आज बिल्कुल मानवता का गला घोट दिया है।
 
मनुष्यता की हत्या कर दी है। तथाकथित अछूत  मंदिर का निर्माण करते हैं। मंदिर के देवता को अपने स्थान पर स्थापित करते हैं। पेंट  रोगन करके मंदिर को भव्य बनाते हैं, लेकिन देवता की प्राण प्रतिष्ठा हो जाने के बाद इनके लिए मंदिर में प्रवेश वर्जित कर दिया जाता है कि ये मजदूर जिन्होंने मंदिर बनाया है निम्न जाति के हैं। कैसी बात है! कैसी विडंबना है!
 
 ठीक उसी तरह पूंजीपतियों के लिए यह मजदूर आज  किसी काम के नहीं है। मतदान के समय मजदूरों की याद सरकार को आए और लॉकडाउन खत्म होने के बाद पूंजीपतियों को फिर से उन्हें  याद आए तो बात दूसरी है ।
 
श्रमिकों के लिए बालकृष्ण शर्मा ‘ नवीन’  की निम्न पंक्तियां प्रासंगिक हैं और इन पंक्तियों को  मैं उन महान आत्माओं को समर्पित करता हूँ- 
 
जब करोगे क्रोध तुम, तब आएगा भूडोल,
काँप उठेंगे सभी भूगोल और खगोल
नाश की लपटें उठेंगी गगन-मंडल बीच
भस्म होंगी ये असामाजिक प्रथाएँ नीच
औ पधारेगा सृजन कर अग्नि से सुस्नान
मत बनो गत आश! तुम हो चिर अनंत महान!
 
( कृपा शंकर पाण्डेय , बेतिया ,बिहार )
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