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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 10 May 2020 3:06 PM |   362 views

लॉक डाउन एग्जिट की रणनीति क्या हो

चालीस दिनों की बंदी के बाद मदिरा की दुकानें खुलने पर अत्यधिक भीड़ होगी, यह अनुमान किसे नहीं था। पर विभिन्न शहरों में शराब के लिए लॉकडाउन की धज्जियां उड़ीं, प्रशासन की कोई मुकम्मल व्यवस्था नहीं। जब चालीस दिन में कोरोना के रास्ते शराब की आदत छुड़वा ही दिये थे तो फिर अचानक उल्टा कदम उठाने की जरूरत ही नहीं थी।

यह भी नहीं सोचा कि उन राज्यों का क्या जिनके यहाँ नशाबंदी लागू है। क्या इन सरकारों को लॉकडाउन से नुकसान नहीं हुआ है, या कि यहाँ नशाबंदी खत्म की जाएगी! केंद्र को चाहिए था कि भले ही राज्यों के राजस्व नुकसान (जो अलग अलग राज्यों में 15-30 % माना जा रहा है) की भरपाई घाटे का  बजट बनाकर, नये  नोट जारी करके करते, लेकिन शराब व पान मसाले की बिक्री पुनः शुरू तो बिलकुल नहीं करना चाहिए था। इसकी सामाजिक-आर्थिक लागत बहुत ज्यादा है, इसके बदले में भारी मंदी के काल में मंहगाई का स्वागत करने में कोई हर्ज़ नहीं है।  अभी भी गुंजाइश है। भले ही चालीस दिन फिर लॉकडाउन करना पड़े, पुरानी स्थिति फिर से बहाल कर दें।  अब युद्ध काल और औषधीय प्रयोजन को छोड़ कर मंदिरा-मसाला हमेशा के लिए प्रतिबंधित ही रखें तो बेहतर।

अब क्या है कि गांधीजी को तो नशे से परहेज था पर दलीय नेताओं को नहीं। आज भी एनडीए के गाँधियों को नशे से प्रायः परहेज है पर अधिसंख्य राजनेताओं को तो बिलकुल नहीं। दोनों तरफ से काफी समानतायें रही हैं। चीन पर विश्वास करना और धोखा खाना दोनों की फितरत रही है। कुछ भी हो मेहरबानी ही करनी है तो असली मज़बूरों-मजदूरों पर करें, नशे के मज़बूरों पर नहीं। धनिकों व नौकरशाही पर नियंत्रण बहुत आवश्यक है। प्रवासी मजदूरों की अधिकांश समस्याएँ इनके उदासीन व सहयोग के दिखावटी रवैये के चलते पैदा हुई हैं।

हवाई यात्रा का आरक्षण हो या रेलवे का, सरकार डाइनेमिक फेयर प्राइसिंग का उपयोग खूब करती है। फिर यहाँ MHA और राज्य सरकारें कैसे भूल गईं कि मदिरा की रिवर्स (उल्टी) डाइनैमिक प्राइसिंग होनी चाहिए थी? मसलन, चार गुने दाम से शुरू करके हर दो दिन पर बीस फीसदी कम करते हुए तीन सप्ताह में सत्तर प्रतिशत वृद्धि के स्तर पर ला सकते थे। आय काफी बढ़ती और उचित नियोजन के साथ भीड़ नियंत्रित रहती, ठेकों में स्टॉक की कमी भी नहीं होती। यह तो माननीय सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया है कि आवश्यक सामानों की तरह शराब की भी ऑनलाइन ऑर्डर और होम डेलीवेरी की व्यवस्था पर विचार करें। आरोग्य सेतु जैसे ऐप पर इ-पास का बटन हो सकता है तो ऑनलाइन सप्लाइ का भी उपाय किया जा सकता है। पर यहाँ तो गंभीर नियोजन और तैयारी की नितांत आवश्यकता है। सलाहकारों का दिमाग जितना रुपया जुटाने पर है, उतना ही व्यवस्था बनाने पर भी होना चाहिए। रुपयों का लालच ऐसा कि निर्णयन व्यवस्था को लकवा मार गया। सारे किए पर बार-बार पानी फिर रहा है, कभी इस बहाने तो कभी उस बहाने। लॉकडाउन को तो अब शासन-व्यवस्था ने ही अप्रासंगिक बना दिया है। अब ये केवल आम निरीह जन के लिए ही माने रखता है।

आगे की अपेक्षित रणनीति 

 जब तक प्रभावी वैक्सीनेशन की व्यवस्था न हो जाय तबतक- 

1-  जो समझदार हैं वे स्वतः ही घरों से कम निकलें, बाहर सोशल डिस्टेन्स रेग्युलेशन, मास्क व स्वच्छता के मानदंडों का पालन।

2-लॉकडाउन 30 जून तक तो ले ही जाएँ पर कर्फ्यु की तरह नहीं बल्कि अधिक समझदारी के साथ ताकि आर्थिक कुशलता को पुनः निम्नवत प्राप्त किया जा सके। लॉकडाउन के मानदंडों के उल्लंघन पर जेल के बजाय आर्थिक दंड/प्रतिबंध को वरीयता मिलनी चाहिए। लॉकडाउन को डिस्टेन्स रेग्युलेशन या डिस्टेन्सिंग में बदलें ताकि देश कोरोना नियंत्रण के साथ लंबे समय तक जूझ सके।   

3-  सभी संस्थाओं में साप्ताहिक व संस्थागत अवकाश भंग करें। जहां कर्मचारियों की संख्या पाँच से अधिक है 50 प्रतिशत कर्मचारियों से संस्थानों को चलाएं बिना व्यक्तिगत अवकाशों में कटौती या कम्पाऊंडिंग के।

4-  सभी बाज़ार (माल सहित) की इकाइयां भी आड-ईवन के तहत दो शिफ़्टों में 50 प्रतिशत कर्मचारियों से बिना साप्ताहिक व संस्थागत अवकाश के चलाएं । पर बिना व्यक्तिगत अवकाशों में कटौती या कम्पाऊंडिंग के। दो शिफ्ट यथा: 9 से 15 बजे तक तथा 14 से 20 बजे तक रख सकते हैं। 

5- देश के भीतर गैर स्थानीय परिवहन यथा रेल, बसें, विमान, पोत सभी 33 से 50 प्रतिशत की क्षमता पर केवल सामान्य व तात्कालिक आरक्षण व किराए के समायोजन के साथ चलायेँ।

6-  स्थानीय परिवहन यथा बसें, ऑटो आदि 33 से 50 प्रतिशत की क्षमता पर किराए के समायोजन के साथ चलायेँ।

7-  पार्क, सिनेमा हाल, खेल आयोजन, विद्यालय आदि बंद ही रखें। चार-छः माह का सत्र विलंब कोई नई बात नहीं है। बहुत बार हुआ है। आगे भरपाई आसानी से हो जाएगी। ऑनलाइन शिक्षा की अपनी सीमाएं हैं। यह पूरा विकल्प नहीं है।

8-  सार्वजनिक स्थल पर 20 से अधिक के एकत्रित होने पर प्रतिबन्ध रखें।

9-  जहां जिस स्थान, भवन या आवास में कोरोना के मामले हैं वहीं रेडजोन लागू करने का विचार ज्यादा उचित है।

10-  संभावित व्यक्तियों की बड़े पैमाने पर टेस्टिंग जारी रखें।

11- शराब व पान मसाले की बिक्री युद्ध काल और औषधीय प्रयोजन को छोड़ कर पुनः प्रतिबंधित करें और हमेशा के लिए ।

12-  बेकारी को दूर करने हेतु स्थानीय रोजगार बढ़ाएं। समन्वित सहकारिता के द्वारा शोषण की प्रवृत्तियों को काबू में रखें। इन सबके लिए पंचायती राज का राजनीतिक उपकरण पर्याप्त नहीं है।

13-  कृषि उपज का  उद्योगों की भांति मूल्य निर्धारण करें। समन्वित सहकारिता के माध्यम से इनका विपणन, भंडारण व स्थानांतरण का उपाय करें। छोटी जोतें कुशल बनाने हेतु किसान सहकारी खेती अपना सकते हैं। पर व्यवस्था देनी होगी कि किसान उत्पादन समिति का  सदस्य रहेगा पर उसका अपनी जमीन पर व्यक्तिगत मालिकाना हक बना रहेगा। समिति केवल भूमि के प्रयोग का अधिकार रखेगी। यह नहीं भूलना चाहिए कि डेन्मार्क, हालैण्ड, इसराइल, जर्मनी आदि यूरोप के किसानों की मानसिकता भी भारत के किसानों से ज्यादा भिन्न नहीं है। पर उन्हें जब  लगा कि कंपनियों का वर्चस्व उन्हें बर्बाद कर देगा तो उन्होंने सहकारी खेती और विपणन को उत्साह के साथ अपनाया।

 भारत में अनौपचारिक सहकारिता के तौर पर ‘स्वयं सहायता समूह’ अच्छा कार्य किए हैं। अब इनको समन्वित सहकारिता के रूप में विकसित करने की जरूरत है। इसमें  राजनेताओं और सरकारी अधिकारियों का प्रतिनिधित्व नहीं होगा जैसा कभी अमुल में किया गया था। सरकार इसमें तकनीकी सहायता, ऑडिट व प्रोत्साहनकारी भूमिका रखेगी। नियमों के उल्लंघन व अधिसंख्य सदस्यों द्वारा कुप्रबंध की शिकायत पर सरकार हस्तक्षेप कर सकती है।

( प्रो .आर . पी . सिंह ,वाणिज्य विभाग , गोरखपुर विश्वविद्यालय )

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