जीवामृत – खेत का अमृत
जीवामृत जैविक खेती के किसानो के लिए सबसे सस्ती ,कारगर वैकल्पिक खाद और फसल संरक्षण का उपाय है जो तरल रूप में बनाई एवं उपयोग की जाती है |जीवामृत में लाभदायक जीवों ( जीवामृत अपने आप में स्यूडोमोनास ट्राइको डर्मा और एक्टीनोमाईसीटीज संग असंख्य जीवो ) का एक मिश्रित घोल ,खेत और उपजाए जा रहे पौधों /फसल को धीमे स्वरुप में सम्पूर्ण पोषण प्रदान करने की क्षमता रखता है |जो रासायनिक खादों का एक बेहतर विकल्प साबित हुआ है |जीवामृत लगातार प्रयोग करने से भूमि की उपजाऊपन में वृद्धि संग संरचना में सुधार करता है |वातावरण के बहुत से जैविक और अजैविक कारको से बचाव की प्रक्रिया में जीवामृत एक अचूक और संरक्षित समाधान है |
इसके अलावा मौसम विपरीत परिस्थिति जैसे ठण्ड में फसल पर छिडकाव की दशा में पौधे को रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करता है |
एक एकड़ खेत के लिए जीवामृत घोल बनाने की सामग्री –
1 – 10 किलोग्राम गोबर ( देशी गाय का )
2 -10 लीटर गोमूत्र ( देशी गाय का )
3 – 2 किलोग्राम गुड या मीठे फलों के गुदो की चटनी
4 – 2 किलोग्राम बेसन
5 – 190 लीटर पानी
6 – 500 ग्राम मिट्टी, बरगद या पीपल के पेड़ के नीचे की जहाँ मशीनों का आवागमन कम हो |
बनाने की विधि –
किसी भी प्लास्टिक या सीमेंट की टंकी में 190 लीटर पानी संग 10 किलोग्राम गोबर ,10 लीटर गोमूत्र ,2 किलोग्राम गुड ,2 किलो बेसन ,500 ग्राम पेड़ की मिटटी या जंगल की मिट्टी डाले और सभी को डंडे से मिलाये |इसके बाद इस घोल को जालीदार कपडे से बंद कर दें |अगले 3 दिन तक सुबह और शाम घडी की दिशा और विपरीत दिशा में सुबह शाम एक बार डंडे से जरुर चलाएँ , फिर 3 दिन के बाद उपयोग करे |
जीवामृत को हरेक सिचाई के वक़्त फसल में 200 लीटर प्रति एकड़ की दर से प्रवाहित कर सकतें हैं |इसके अतिरिक्त प्रत्येक 16 लीटर की छिडकाव करने वाली टंकी में मौसम और फसल की व्यवस्थानुसार 500 मिली लीटर से लेकर 1 लीटर तक मिश्रण का छिडकाव करना लाभप्रद पाया गया है |
सावधानियां –
1 – प्लास्टिक व सीमेंट की टंकी को सीधी धूप से बचाकर छावदार स्थान पर बनाना और रखना चाहिए |
2 – इस विधि में किसी भी अवयव के संरक्षण के दौरान किसी भी धातु का उपयोग नही करना चाहिए |
3 – जीवामृत घोल को प्रतिदिन सुबह और शाम चलाना चाहिए |
4 – हमेशा भारतीय गोवंश के ही मूत्र और गोबर को प्रयोग करना चाहिए |
5 – छिडकाव माध्यम में बेहद गर्म मौसम में 500 मिली / 15 लीटर पानी से ज्यादा मात्रा में दिए जाने पर नुकसानदायक हो सकती है |
6 – प्रयोग करने के कम से कम तीन दिन पुराना घोल बनकर तैयार हो जो 12 दिन से पुराना नही होना चाहिए |
( डॉ शुभम कुलश्रेष्ठ ,असिस्टेंट प्रोफ़ेसर , रवीन्द्रनाथ टैगोर यूनिवर्सिटी रायसेन , मध्यप्रदेश )