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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 2 Oct 2018 7:06 AM |   916 views

सुप्रीम फैसलों की हैट्रिक

सुप्रीमकोर्ट ने गत बुधवार को अरसे से विचाराधीन तीन अलग -अलग अहम मामलों  मे फैसला सुनाया |पहला मामला आधार कार्ड की वैद्ता को लेकर आया ,जबकि दूसरा सरकारी नौकरी मे  अनुसूचित जाति और जनजाति के कर्मचारियों को  प्रमोशन मे आरक्षण और तीसरा अहम अदालती कार्यवाही के सीधे प्रसारण की अनुमति से संबंधित है |शीर्ष अदालत द्वारा आधार कार्ड पर दिया गया फैसला वास्तव मे नीर -छीर विवेकवाला और बहुत ही संतुलित है |इससे ऐसे सभी वर्गों को बड़ी राहत मिली है जो सरकारी नीतियों और कार्यक्रमो के पक्षधर थे |साथ ही बिना आवश्कता के इसके दायरे को लगातार विस्तार देने की प्रवृति पर भी विराम लगा दिया |फैसले मे कोर्ट ने आलोचकों की इस आशंका को भी सिरे से ख़ारिज कर दिया कि इससे निजता के उल्लघन की गुंजाइस है ,और यह पहचान पत्र लोगो की जासूसी का जरिया बन रहा है |दूसरी ओर कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि आधार का अनावश्यक इस्तेमाल किया जाना उचित नही होगा |वास्तव मे बिना जरूरत के कार्यो यथा स्कूल मे दाखिला लेने या परीक्षा का फॉर्म भरने मे आधार का औचित्य समझ से परे था |इसी तरह निजी कंपनियों को आधार के आकडे जुटाने की अनुमति देने संबंधी क़ानूनी प्रावधान भी गले नही उतर रहे थे |सुप्रीमकोर्ट ने निजी कंपनियों को आधार का इस्तेमाल करने के क़ानूनी प्रावधान को रद्द कर दिया |आधार पर अपने पूर्व फैसले को बरकरार रखते हुए सर्वो च्य न्यायालय ने साफ़ किया कि इससे गरीबो को पहचान और ताकत मिली है ,इसलिए आधार पर हमला संविधान के खिलाफ लोगो के अधिकारों पर हमला करने के समान है |अलबत्ता बायोमीट्रिक डाटा को राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर कोर्ट के इजाजत के बिना किसी और एजेंसी से शेयर न करने और अवैध प्रवासियों को आधार कार्ड न मिले ,इसकीब्यवस्था सुनिश्चित करने की हिदायत दी है |कोर्ट ने कहा  कि ये जरूरी नही है कि हर चीज बेहतर हो लेकिन कुछ अलग भी होना चाहिए | 

वास्तव मे इस फैसले से देश को नई दिशा मे ले जाने की उम्मीद बलवती हुई है,कारण सरकार की विशेष जनहितकारी योजनाओं यथा राहत ,अनुदान एवं क्षतिपूर्ति  आदि वितरण मे पारदर्शी ढंग से सरकार अपनी नीतिया लागू  कर सकती है इससे जरूरतमंदों को आगे बढ़ाने मे मदद मिल सकती है |यह विचित्र था  कि जिस  दल ने आधार की आधारशिला रखी वही राजनीतिक कारणों से इसके विरोध मे आ खड़ा हुआ |अब फैसला आने के बादभले ही  सरकार और विपक्ष  एक दुसरे के लिए झटका बताकर खुश हो रहे हो ,लेकिन आम जनता के लिए अपेक्षाओं को परवान चढ़ाने के सबब से कम नही है |

दुसरे महत्वपूर्ण फैसले मे कोर्ट ने सुप्रीमकोर्ट ने सरकारी नौकरियों प्रमोशन मे आरक्षण पर अहम् फैसला सुनाते हुए अनुसूचित जाति और जनजाति के सरकारी कर्मचारियों को प्रमोशन मे आरक्षण देने से इनकार कर दिया |हालांकि उसने राज्य सरकारों  को  अधिकार दिया है कि वो चाहे तो वे राज्य स्तरीय सरकारी कर्मचारियों को प्रमोशन मे आरक्षण दे सकतें है |यधपि इससे प्रमोशन मे आरक्षण को लेकर आरक्षण समर्थकों और विरोधियो के बीच खिंची तलवारें म्यान मे जाने वालीं नही हैं |लेकिन संविधान पीठ के इस  स्पष्टीकरण  के बाद केंद्र सरकार के पदोन्नति मे आरक्षण पिछड़ेपन के आकडे जुटाने की आवश्यकता नही है ,गेंद राज्य सरकारों के पालें मे डाल दी है |पीठ ने माना कि नागराज मामले मे सुप्रीमकोर्ट का फैसला सही था, इसलिए इस पर फिर विचार करना जरूरी  नही है |यानि इस मामले को दोबारा सात जजों की पीठ के पास भेजना जरूरी नही है |हालाकिं सर्वोच्य न्यायालय ने राज्य सरकारों को आरक्षण देने के लिए कुछ कारको को ध्यान मे रखकर नीति बनाने का सुझाव् भी दिया है |जैसे बिभिन्न आर क्षित वर्गों के पिछड़ापन निर्धारण किये जाने का  सुझाव ,नौकरी मे उनके प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता ,संविधान के अनुछेद 335 का अनुपालन आदि |न्यायालय ने कहा कि पिछड़ेपन का निर्धारण राज्य सरकारों द्वारा एकत्र आकड़ो के आधार पर किया जायेगा |बता दें कि नागराज बनाम संघ के फैसले के अनुसार प्रमोशन मे आरक्षण की सीमा पचास फीसदी से ज्यादा नही हो सकती इस सीमा को सुप्रीमकोर्ट ने बरकरार रखा है |साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा है  कि “क्रीमी लेयर “के सिद्धांत को सरकारी नौकरियों की पदोन्नति मे एस सी ,एस टी आरक्षण मे लागु नही किया जा सकता है |दरअसल 2006 मे सुप्रीमकोर्ट के पांच जजों की पीठ ने सरकारी नौकरियों के  प्रमोशन मे आरक्षण पर फैसला दिया था |उस वक़्त कोर्ट ने कुछ शर्तो के साथ इस व्यवस्था को सही ठहराया था |

अपने तीसरे फैसले मे कोर्ट ने अहम अदालती कार्यवाही के सीधे प्रसारण की अनुमति दे दी है |राष्ट्रीय महत्व के मामलो मे अदालत की कार्यवाही की लाइव प्रसारण पर सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच  बड़ा फैसला है |शीर्ष कोर्ट ने कहा कि इसकी शुरुआत सुप्रीमकोर्ट से होगी और इसके लिए बनाये गये नियमो का पालन किया जाएगा |पीठ का कहना है कि वह अदालतों मे भीड़ -भाड को कम करने के लिए खुली अदालत   की परिकल्पना लागू  करना चाहती है |निश्चित ही सीधे प्रसारण से अदालत की कार्यवाही पारदर्शिता आएगी और यह लोकहित मे होगा |

                              (डॉ प्रभाकर शुक्ल) वरिष्ठ पत्रकार                         

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