Thursday 16th of October 2025 01:40:26 PM

Breaking News
  • बिहार में NDA का सीट बंटवारा फाइनल , JDU-BJP दोनों 101 सीटो पर लड़ेंगे चुनाव |
  • महिला पत्रकारों के बहिष्कार पर मुत्तकी का तकनीकी खराबी वाला बहाना |
  • AI से आवाज़ की नकल पर कुमार सानू का दिल्ली हाईकोर्ट की ओर रुख |
Facebook Comments
By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 17 Mar 2022 5:54 PM |   1124 views

हिजाब

हिजाब प्रकरण में सारी बातें सड़क से लेकर अदालत तक बिल्कुल विकृत तरीके से  समझी और समझाई गई हैं। एक गैर मजहबी मसले को  मजहबी रंग दिया गया है। मामला सार्वजनिक स्थानों पर किसी व्यक्ति की फर्जी पहचान और सार्वजनिक सुरक्षा का है।
 
हिजाब, नकाब, पर्दा, पोशाक, प्रतीक कुछ भी पहन के यदि किसी व्यक्ति द्वारा अपना चेहरा या अपनी पहचान छिपाकर सार्वजनिक सुरक्षा को जोखिम में डालने की आशंका लगती है तो उसे सार्वजनिक स्थान के प्रवेश द्वार पर तथा परिसर के भीतर कभी भी पहनावे को उतार कर के जांच कराने के लिए व्यक्ति को बाध्य करने का अधिकार उस संस्था के अधिकारियों तथा सुरक्षाकर्मियों को होना चाहिए।
 
यदि किसी व्यक्ति को लगता है कि बार-बार जांच से उसके लिए धार्मिक या किसी भी अन्य कारण से असुविधा उत्पन्न की जा रही है तो यह उस व्यक्ति के अपने विवेक पर है कि वह उस पहनावे को न धारण करें अथवा धारण करते हुए बारंबार जांच के लिए तैयार रहे।
 
यहां धर्म या मजहब में किसी पहनावे या प्रतीक का अनिवार्य अथवा वांछनीय होने का प्रश्न बिल्कुल ही अनावश्यक व अप्रासंगिक है। यदि किसी पहनावे, हथियार अथवा प्रतीक को किसी धर्म, धर्म ग्रंथ, स्मृति या मजहब में अनिवार्य किया गया हो तो भी क्या सार्वजनिक सुरक्षा की जोखिम  की कीमत पर इसकी अनुमति देना उचित है? कदापि नहीं! वहां पर उसे आवश्यकतानुसार पूरी तरह प्रतिबंधित अथवा बारंबार जांच की शर्त पर ही अनुमति दी जा सकती है।
 
यह बात हिजाब, पगड़ी, लंबा टीका, कृपाण, कवच, कड़ा, केश, रंग सभी पर समान रूप से लागू होना चाहिए। कोई भी धार्मिक जनादेश केवल उस धर्म या संप्रदाय के संस्थानों और स्थानों में लागू हो सकता है। लेकिन सभी के लिए उपलब्ध सार्वजनिक स्थानों पर इस तरह के धार्मिक जनादेश लागू नहीं किया जाना चाहिए।  
नन्हे बच्चों का स्कूल हो या विश्वविद्यालय, उस संस्था में ड्रेस कोड हो या नहीं,  कोई धार्मिक स्थल हो या अस्पताल, सेना हो या सरकारी कार्यालय, बाज़ार हो या पार्क, धर्म या संप्रदाय या जाति का सच्चा नुमाइंदा हो या नकली, स्त्री हो या पुरुष, बच्चा लगे या बूढ़ा–सार्वजनिक सुरक्षा को जोखिम में किसी कीमत पर नहीं डाला जाना चाहिए।
 
न किसी को फर्जी पहचान के साथ प्रस्तुत होने या सार्वजनिक मर्यादा के गम्भीर उल्लंघन की अनुमति दी जानी चाहिए चाहे कोई धार्मिक अधिकार का मामला ही क्यों न हो।
 
प्रोफेसर आर पी सिंह
 दी द उ गोरखपुर विश्वविद्यालय
Facebook Comments