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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 6 Sep 2:35 PM |   1454 views

जैविक खेती में खेत खलिहानों से विषैले साँपों को दूर रखने के उपाय

अक्सर बरसात का मौसम आते ही साँप दिखने आम हो जाते हैं क्योंकि बारिश के पानी से उनके बिलों में रहना मुमकिन नही हो पाता है तथा उसके बाद की पडती धूप से वास्पोत्सर्जित होते पानी के कारण बढ़ी उमस से उनका खुले क्षेत्र में विचरण करना जरूरी हो जाता हैl जब बात जैविक खेतों के निकट ऐसी परिस्थिति की हो तो जैविक किसानों के लिये यह और भी मुख्य समस्या बन कr उभर आती है क्योंकि उनेक द्वारा अपनाये गये पर्यावरण अनुकूल उपायों से उस विशेष खेत में प्रकृति के हरेक सम्भव जीव का होना सुनिश्चित होता है जिसे आसपास के रासायनिक खेतों में अपना जीवन कठिन लग रहा हो, चाहे वो केंचुए हो या कीट, मेढक हों या चूहे और फिर इनकी परभक्षी श्रृंखला के जीव जैसे – साँप, बाज, पक्षी या अन्य   
बात करते हैं साँप की तो, इंसानों का प्रकृति में इस कदर हस्तक्षेप बढ़ा कि असल में ये हमारे इलाकों में नहीं हैं बल्कि हम इनके क्षेत्र उजाड़ कर इनके क्षेत्र में बढ़ते जा रहे | खैर इस बारे में ढेरों तर्क- पक्ष और विपक्ष दोनों तरफ से है|
 
इसे छोडकर मुख्य तरफ ही आगे बढ़ते हैंl साँप तो असल में किसानों का मित्र ही है|  साँपों की पाई जाने वाली ज्यादातर प्रजातियों में से विषहीन होते हुए भी सिर्फ इस लिए मार दिए जाते हैं क्यूंकि वो साँप थेl असल में उनके प्राकृतिक निवासों में बढ़ते मानवीय हस्तक्षेप के कारण उन्हें मनुष्यों की बस्तियों, उनके खलिहानों, पालतू जानवरों के निवास और ऐसे ही अन्य अँधेरे, गंदी लेकिन एकांत जगह उनके मुख्य आहार चूहे और मेढक, कीड़े इत्यादि आसानी से सुलभ होने के कारण छिपकर निवास करते हुये देखा जाता रहा हैl अब खेत खालिहानों में भी बढ़ते रासायनिक प्रभावों से उत्पन्न प्रदूषण से न तो इनकी आहार श्रृंखला के जीव बचे साथ ही उनके मृत शरीर को खाते हुए इनकी प्रजाति भी लुप्त होती जा रही और तो और इन रसायनों के प्रभावों से जिस तीक्ष्ण गंध या अन्य तरह की शारीरिक परेशानियों से साँपों का उस तरफ निवास बनाना स्वभ्वाविक हो जाता है जहाँ आदमी बिलकुल कम केमिकल प्रयोग कर रहा है (अपने रहने के स्थान) या बिलकुल ही नही (जैविक प्रक्षेत्र) |
 
जैविक प्रक्षेत्र या मनुष्य के निवास स्थानों पर पाई जाने वाली प्रजातियों मे मुख्य रूप से धामिन और नाग हैं जिसमे धामिन विषहीन होती हैl कई जगह इन दोनों को ही साथ देखे जाने के कारण यह धारणा भी है कि धामिन साँप, नाग के साथ ही जोड़ा बनाती हैl धामिन नाग से कुछ ज्यादा ही लम्बी  होती है और सिर्फ चूहे जैसे जीव ही खाने के कारण इंसानी क्षेत्र में बहुत प्रमुखता से पाई जाती है लेकिन साँपों के प्रति फैली अवधारणावश उनका दिखते ही मारा जाना बहुत हद तक सम्भव बना रहता है |
 
जैविक खेती में साँप दूर रखने के उपाय-
अतः जैविक किसान अपने प्रक्षेत्र, खलिहान और रहने के स्थान से सांप दूर रखने के लिये निम्न जैविक, यांत्रिक  और अन्य विधियाँ मुख्य रूप से अपना सकते है :- 
 
जैविक विधि-  
 
साँप को दूर रखने वाली पौध प्रजातियाँ जो अपने अपने विशेष उपलब्ध एल्कोलॉयड की वजह से उत्पन्न गंध से साँपों को दूर रखते हैं जैसे- सर्प गंधा Indian Snakroot, लेमनग्रास- Lemongrass, गेंदा- Marigold, पुदीना- Pipermint या अपने विशेष पौध आकारिकी और आकृति की वजह से साँपों को भय या शारीरिक क्षति के कारण दूर रखने वाले पौधे जैसे सन्स्वेरिया/ Mother in law tongue plant/Snake plant, नागफनी/Cactus इत्यादि का घर के आसपास और ऐसे स्थान जहाँ साँप से सामना होने का खतरा हो, वहाँ रोपण करना  |
यांत्रिक उपाय-
1-  साँप, घर के पास उगती घनी झाड़ियों, पत्थर, बोरे, चूहे के बिलों में रहते हैंl अतः ऐसी जगहों पर सावधानी से सफाई रखनी चाहियेl बढती झाड़ियों को समय समय पर काट देना चाहिये और आसपास के चूहे के बिलों को बंद करते हुए उनका नियन्त्रण उपाय अपनाना चाहियेl 
 
2- हाल के ही वर्षों में हुए एक नये आविष्कार – ध्वनि करने वाले साँप विकर्षक (Ultra sonic snake repeller) जो किसी भी खेत में बैठ कर काम करते समय अथवा खलिहान में जमीन में धँसाकर कम्पन करते हों, उपयोग किये जाने की वजह से भी हमेशा साँप को अपनी उपस्थिति वाली जगहों से दूर रखा जा सकता हैl
 
अन्य उपाय-
 
साँप पकड़ने वाले तकनीकी रूप से दक्ष व्यक्तियों, वन विभाग अथवा वन्य जीव संरक्षण संस्थाओं को सूचित करते हुए साँपों को ससमय पकड़वा कर उन्हें उनके जंगली निवासों तक पहुँचने में मदद करनी चाहिये | 
 
ऐसे सुगन्धित पौधे जो अक्सर रात में महकते हो या बहुत अच्छी खुश्बू वाले हो (चन्दन, रातरानी, चम्पा, बेला, हरसिंगार), उनको फार्म पर निवास स्थान और खलिहान से दूर ही लगाना चाहिये |
 
विशेष – जहाँ तक संभव हो अपने आसपास के रहने वाले स्थान पर रासायनिक उपायों से बचना चाहिये क्योंकि इनकी वजह से छोटे बच्चों, बुर्जुगों, गर्भवती महिलाओं, पालतू पशुओं को बेहद घातक एलर्जी और अन्य भी घातक नुकसान हो सकते हैं |
 
डॉ. शुभम कुमार कुलश्रेष्ठ
सहायक प्राध्यापक- उद्यान विज्ञान विभाग,
रवींद्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय, रायसेन, मध्य प्रदेश
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