बेरोजगारी
भारत एक कृषि प्रधान देश है। कृषि जगत से हमारे जीवन की अधिकतम आवश्यकताओं की आपूर्ति होती है। किंतु किसान का जीवन 70-72 बरसों की आजादी के बाद भी विपन्न है। बेरोजगारों की एक लंबी फौज खड़ी है। क्रय शक्ति आर्थिक स्वालंबन का आधार होता है ।किंतु दुर्भाग्य है कि आमजन को उनकी योग्यता के अनुरूप क्रय शक्ति उपलब्ध कराने की कोई योजना नहीं है। सत्ता में बैठे लोग बहानों का इंद्रजाल बनाकर गरीबों से उनका वोट ठग लेते हैं और गरीबी ,अशिक्षा ,स्वास्थ्य आदि की समस्याएं ज्यों की त्यों बनी हुई है।
कोई मन की बात सुनाता है, योजना आयोग का नाम बदलकर नीति आयोग रखता है,तो कोई नल, जीवन, हरियाली की बात करता है। किंतु जीवन -स्तर में कोई परिवर्तन नहीं होता। कैसी विडंबना है? अनुदान- साइकिल, पोशाक, छात्रवृत्ति, वृद्धा पेंशन, इंदिरा आवास योजना, लाल कार्ड, एपीएल ,बीपीएल आदि के महा जाल में फंसा कर चतुर नेतृत्व अपना अपना उद्देश्य सफल करने में लगे हुए हैं।
किसी भी देश की आर्थिक व्यवस्था को विकास की गति देने के लिए सबको अर्थव्यवस्था से जोड़ना एक प्राकृत प्रयोजनियता है। इसलिए शत-प्रतिशत जन आबादी को आर्थिक व्यवस्था के साथ जोड़ना आज की मांग है।
दूसरी जो प्राकृत मांग है वह है उपलब्ध आर्थिक संभावनाओं का
चरमतम(maximum) उपयोग। इसके लिए अर्थात उपलब्ध आर्थिक संभावनाओं के चरमतम उपयोग हेतु भी आवश्यकता है शत-प्रतिशत जनाबादी को आर्थिक सामाजिक योजना से जोड़ना।
इसलिए निम्न प्रकार यदि नियोजन की व्यवस्था प्रत्येक प्रखंड स्तर पर किया जाए तो एक संतुलित अर्थव्यवस्था विकसित हो उठेगी|
1- कृषि क्षेत्र में 30 से 40% नियोजन।
2 – कृषि आधारित उद्योगों में 20% नियोजन।
3 – कृषि सहायक उद्योगों में 20% नियोजन।
4 – अन्य उद्योगों में 10% नियोजन।
5 – सफेद कलर क्षेत्र जैसे शिक्षक, डॉ., सेना,पुलिस, न्यायालय, इत्यादि इत्यादि में 10% नियोजन।
उपर्युक्त के अनुरूप नियोजन की व्यवस्था करने से एक तरफ सौ प्रतिशत जनाबादी को रोजगार मिलेगा और दूसरी तरफ कोई सेक्टर अवहेलित नहीं होगा। एक संतुलित अर्थव्यवस्था स्थापित हो जाएगी और हम बेरोजगारी से अपने को मुक्त कर सकेंगे।
2 फरवरी 1835 को ब्रिटिश संसद में भारत की समृद्धि की चर्चा लॉर्ड मैकाले ने किया था। उसने कहा था कि वास्तव में भारत सोने की चिड़िया है। कहीं कोई गरीब नहीं है। भिखारी देखने को नहीं मिला। सभी रोजगार में लगे हैं ।इस तरह भारत को आसानी से गुलाम नहीं बनाया जा सकता। लॉर्ड मैकाले के सुझाव पर यहां की शिक्षा प्रणाली और अर्थव्यवस्था को विखंडित कर दिया गया। भारत 200 वर्षों तक गुलाम रहा। आजादी तो मिली लेकिन आज भी भारतवर्ष के बहुसंख्यक लोग गरीब हैं,पीड़ित है, बेरोजगार हैं। उनके लिए आजादी का वोट देने के सिवाय कोई अर्थ नहीं है। सत्ता बदली, सत्ता के लोग बदले किन्तु शोषण की प्रवृति का अंत नहीं हुआ।
यह सिलसिला कब तक चलता रहेगा? प्रजातंत्र की शासन प्रणाली पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की पोषक है। इस शासन तंत्र में आमजन के हित के लिए, कल्याण के लिए, विकास के लिए, कहीं कोई योजना नहीं है ,स्थान नहीं है।यदि स्थान होता तो अमीरी गरीबी की इतनी गहरी चौड़ी विषमता की खाई नहीं दिखती। अतः प्रजातंत्र की शासन प्रणाली आमजन के लिए धोखा है, धोखा है ।किसानों की दारुण अवस्था आज भी वही है जिसका चित्र राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने निम्न रूपों में कभी किया था|
हेमन्त में बहुदा घनों से पूर्ण रहता व्योम है
पावस निशाओं में तथा हँसता शरद का सोम है।।
हो जाये अच्छी भी फसल, पर लाभ कृषकों को कहाँ ?
खाते, खवाई, बीज ऋण से हैं रंगे रक्खे जहाँ।।
आता महाजन के यहाँ वह अन्न सारा अंत में
अधपेट खाकर फिर उन्हें है काँपना हेमंत में ।।
बरसा रहा है रवि अनल, भूतल तवा -सा जल रहा,
है चल रहा सन सन पवन, तन से पसीना बह रहा।।
देखो कृषक शोषित, सुखाकर हल तथापि चला रहे
किस लोभ से इस आँच में, वे निज शरीर जला रहे।।
घनघोर वर्षा हो रही, है गगन गर्जन कर रहा
घर से निकलने को गरज कर, वज्र वर्जन कर रहा।।
तो भी कृषक मैदान में करते निरंतर काम हैं
किस लोभ से वे आज भी, लेते नहीं विश्राम हैं।।
बाहर निकलना मौत है, आधी अँधेरी रात है
है शीत कैसा पड़ रहा, औ’ थरथराता गात है ।।
तो भी कृषक ईंधन जलाकर,खेत पर हैं जागते
यह लाभ कैसा है, न जिसका मोह अब भी त्यागते।।
सम्प्रति कहाँ क्या हो रहा है, कुछ न उनको ज्ञान है
है वायु कैसी चल रही, इसका न कुछ भी ध्यान है।।
मानो भुवन से भिन्न उनका, दूसरा ही लोक है,
शशि सूर्य हैं फिर भी कहीं, उनमें नहीं आलोक है।।
( कृपा शंकर पाण्डेय )
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