क्या हो तुम
दुनिया के आगे
इक योद्धा बनकर
खड़े रहते हो तुम
मगर भीतर से
सुकोमल बच्चे
जैसे हो तुम…
ग़म सारे अपने
भीतर छुपाए
रखते हो तुम
मगर सभी से
मुस्कराकर ही
मिलते हो तुम…
सभी के दिलों को
अच्छे से समझ
जाते हो तुम
अपने व्यवहार से
दिलों में बस
जाते हो तुम…
बातें एकदम
सीधी करते हो
करते हो तुम
कोई भी बात
ना ज्यादा
घुमाते हो तुम…
किसी के भी
ज़ख़्म का मरहम
बन जाते हो तुम
हर रिश्ते को
बेह्तरीन ढंग से
निभाते हो तुम…
अपने बारे में
कम ही बात
बताते हो तुम
मगर जानना
चाहते है तुमसे
हम क्या हो तुम…
– दिव्या चौबे
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