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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 18 Nov 2023 4:27 PM |   187 views

ख्वाइश

लगा पंख ख्वाहिशों के उड़ने लगा हूं
जब से तेरी गलियों में घूमने लगा हूं
ख्वाहिशें बिन एक आवारा बंजारा था
खिलती कली देख कर मचलने लगा हूं|
 
सिमट तेरी रेशमी जुल्फों में साकी
जाम लेकर हाथों में थिरकने लगा
तमन्ना थी चांद को जमीन पर लाने की
इक छुअन की खुशबू से बहकने लगा हूं|
 
तेरे मधुबन आने का इरादा नहीं था
मैं सुबहो शाम यही पर ढलने लगा हूं
थमने लगी हैं साँसे मनु आकर यहीं
नज़्म तेरे नाम से यही पढ़ने लगा हूं |
 
-डॉ मनोज गौतम , झाँसी 
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