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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 21 Oct 2023 4:55 PM |   234 views

लोकतंत्र और निष्पक्ष पत्रकारिता

लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ है पत्रकारिता | पत्रकारिता तीनों स्तंभों विधायिका कार्यपालिका और न्यायपालिका को सत्य पर आधारित तथ्यों का ज्ञान कराने दिशा निर्देश करने वाला महत्वपूर्ण अंग है | चेतना पैदा करने वाला तत्व है |
 
कहा जाता है कि स्वास्थ्य शरीर में स्वस्थ मन का निवास करता है। उसी तरह स्वस्थ लोकतंत्र के लिए स्वस्थ पत्रकारिता आवश्यक है | पत्रकारिता और लोकतंत्र का पारस्परिक सम्बन्ध है। प्रत्येक वस्तु का अपना धर्म होता है | और धर्म के अस्तित्व का कारण है पत्रकारिता का धर्म है निष्पक्षता निर्भीकता और तथ्यों के आधार पर सत्य सूचनाओं का आदान-प्रदान करना पत्रकारिता समाज का दर्पण ही नहीं समाज में राजनीतिक सामाजिक आर्थिक तथा सांस्कृतिक चेतना को जगाने का एक महत्वपूर्ण तथ्य है। यह समाज का मार्गदर्शन भी है जिसके अभाव मेंलोकतंत्र कल्पना बेमानी है।
 
लोकतंत्र का धर्म है ‘सर्वजन सुखाय सर्वजन हिताय’ धर्म छोड़ने का अर्थ है कि अस्तित्व खो देना आज दोनों के अस्तित्व पर प्रश्नवाचक लग गया है | पत्रकार समाज के भीतर उन स्थानों तक पहुंच जाता है जहां दूसरे के लिए संभव नहीं होता | समस्याएं जिस समाज से पैदा होती है समाधान भी इस समाज में रहता है। इसका विश्लेषण पत्रकारों से बढ़िया कौन कर सकता है ?
 
लोकतंत्र के निर्माण में पत्रकारिता की अहम भूमिका होती है । पत्रकारों को अपने पत्रकारिता धर्म का पालन निष्ठा पूर्वक करना चाहिए| कि इनको अपना काम करने का शुभ अवसर देने के साथ-साथ सुरक्षा दें|
 
आज पत्रकारिता की निरंतरण साख गिर रही है। जिससे लोकतंत्र भी प्रभावित हो रहा है । नागरिको में अपने उत्तर दायित्व बोध का अभाव दिखाई दे रहा है। यह लोकतंत्र के भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं है | पत्रकारिता को कमजोर होने का मतलब लोकतंत्र के न्यू को कमजोर करना है | लोकतंत्र कमजोर होगा शोषको के लिए शोषण का मार्ग प्रसस्त हो जाएगा |
 
प्रिंट मीडिया इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और सोशल मीडिया को हमेशा जनहित में काम करना चाहिए | मुट्ठी भर लोगों को खुश करने, अपने सुख सुविधाओं के लिए कर्तव्य पथ से नहीं हटना चाहिए | पत्रकारिता संघर्स का दूसरा पछ है| आज सैकड़ों चैनल चल रहे हैं। परन्तु कन्टेंट एक जैसा होता है। यह क्या है, जागरूक और संवेदनशील मनुष्यों को इससे हतासा होती है।हम कहां जा रहे हैं, जिसको छूना नहीं चाहिए उसको गले लगा रहे हैं। अब तो लग रहा है कि नेता और मीडिया  का विलय हो गया है। ऐसा कभी नहीं हुआ था।
 
पत्रकार पक्षकार की भूमिका में नजर आ रहे हैं।ऐ इनके है,वे उनके है इसका आभास हो जाता है।
वैचारिक ता का ध्रुवीकरण हो रहा है। अब तो प्रोपगंडा और पत्रकारिता में फर्क करना मुश्किल हो गया है। पत्रकारिता में कारपोरेट मोनो पलाईजेसन हो रहा है। इसकी निष्पक्षता को कैसे बचाया जाए यह प्रश्न उठने लगा है। जिस तरह सरकार के लिए मजबूत विपक्ष की जरूरत है उसी प्रकार स्वस्थ लोकतंत्र के लिए निष्पक्ष पत्रकारिता।
 
पत्रकारिता पर सरकार का अप्रत्यक्ष रूप से नियन्त्रण एक दिन इसके अस्तित्व को समाप्त कर देगा। इसको रोकने के लिए समाज के बुद्धजीवियों  स्वस्थ नागरिकों, पत्रकारों और प्रबन्धकों को आगे आना होगा। गोदी मिडिया की अवधारणा पत्रकारिता की पवित्रता को नष्ट कर देगी। पत्रकारिता कोई धन कमाने वाला उपकरण नहीं है। यह पूर्ण रूपेण समाज सेवा है।वह भी निष्पक्षता के साथ।
 
पत्रकारों की समस्याओं के प्रति समाज, सरकार, और मिडिया के प्रबंधकों को संवेदनशील होना पड़ेगा। यह सोचना चाहिए कि पत्रकारों का भी परिवार है, उसका भरण पोषण, शिक्षा चिकित्सा कैसे होगा। इसका अनदेखी पत्रकारों के ईमान को झकझोर कर रख देता है। इनसे इस परिस्थिति में निष्पक्षता की आशा बेईमानी लगता है।
 
“कहा गया है, भूखे
भजन न होई गोपाला”।
 
– नरसिंह , पत्रकार 
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