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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 31 Oct 2022 4:34 PM |   557 views

सरदार पटेल – एकीकरण के शिल्पी विषयक छायाचित्र प्रदर्शनी का आयोजन किया गया

गोरखपुर -राजकीय बौद्ध संग्रहालय, गोरखपुर (संस्कृति विभाग, उ0प्र0) द्वारा भारत रत्न लौह पुरूष सरदार वल्लभ भाई पटेल जी के जन्म दिवस के अवसर पर आज संग्रहालय के प्रदर्शनी हाल में सरदार पटेल – एकीकरण के शिल्पी विषयक छायाचित्र प्रदर्शनी का आयोजन किया गया।

प्रदर्शनी का उद्घाटन मुख्य अतिथि डाॅ0 कौस्तुभ नारायण मिश्र, एसोसिएट प्रोफेसर, बुद्ध स्नातकोत्तर महाविद्यालय, कुशीनगर द्वारा किया गया।

आयोजित प्रदर्शनी में सरदार पटेल के  बाल्यकाल से लेकर निर्वाण प्राप्ति तक की घटनाओ एवं उनके योगदान को चित्रों के माध्यम से दिखाने का एक अनूठा प्रयास किया गया है। प्रदर्शनी के माध्यम से संग्रहालय का प्रयास है कि युवा पीढ़ी सरदार पटेल के जीवन व दर्शन को समझे और अपने जीवन में आत्मसात कर देश की उन्नति में अपना योगदान दे।

मुख्य अतिथि डाॅ0 कौस्तुभ नारायण मिश्र, एसोसिएट प्रोफेसर, बुद्ध स्नातकोत्तर महाविद्यालय, कुशीनगर ने प्रदर्शनी का अवलोकन करते हुए कहा कि भारत के एकीकरण में अतुलनीय योगदान रहा और इतना ही नहीं इनके अद्वितीय योगदान के लिए इन्हे भारत का विस्मार्क भी कहा जाता है। वे इस देश के बहुमूल्य धरोहर थे। लौह पुरूष सरदार वल्लभ भाई पटेल भारत के देश भक्तों में एक अमूल्य रत्न थे। सरदार पटेल भारत के राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम के अक्षय शक्ति स्तम्भ थे।

आत्म त्याग, अनवरत सेवा तथा अन्य दूसरों को दिव्य शक्ति की चेतना देने वाले एक युग पुरूष थे। वास्तव में सरदार पटेल आधुनिक भारत के शिल्पी थे। सरदार पटेल ने स्थानीय आन्दोलन हो या राष्ट्रीय आन्दोलन सभी में दृढ़ संकलपता के साथ कार्य किया। इन्होने देश की आजादी के विभिन्न आन्दोलनों/सत्याग्रहों में प्रमुख एवं अहम भूमिका निभाई जिसके लिये समूचा देश उनका कृतज्ञ रहेगा।

सरदार पटेल स्वयं स्पष्टवादी थे तथा दूसरों से भी स्पष्ट व्यवहार चाहते थे। उनका जीवन प्रारम्भ से अन्त तक एक खुली पुस्तक के समान था। विरोधी के हृदय को जीतना सरदार पटेल की एक विशिष्ट कला थी और अपना पक्ष ऊपर रखते हुए अपने शत्रु से भी काम ले लेते थे। भारतीय स्वतंत्रता के साथ देशी राजाओं को दोनो उपनिवेशों (भारत व पाकिस्तान) से अलग रहने की छूट से अनेक देशी राजा सरदार पटेल के शत्रु बन गये थे किन्तु सरदार पटेल ने उनके दिलों को जीतकर देशी राजाओं को भारतीय संघ में सम्मिलित करके इतिहास में एक अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया।

सरदार पटेल 7 अक्टूबर 1950 को जब अन्तिम बार हैदराबाद गये तो वहाँ उन्हें हैदराबाद सिकन्दराबाद की म्यूनिसिपलिटी तथा हिन्दी प्रचार सभा द्वारा मानपत्र दिया गया। उसके प्रति आभार प्रकट करते हुए सरदार ने कहा था -’’मुझे मानपत्र देने की कोई आवश्यकता नहीं है और ना ही इसका कोई समय आया है। जब आदमी दुनिया छोड़कर चला जाता है, असल मानपत्र तो उसके बाद मिलता है, क्योंकि कोई आदमी आखिरी दिन तक कोई गलती न करे, तब उसकी इज्जत रहती है।

लेकिन यदि आखिरी उम्र में दिमाग पलट जाये तो सारी मेहनत और त्याग खत्म हो जाता है। सरदार पटेल अपने उक्त विचार के दो माह पश्चात 12 दिसम्बर को बम्बई गये और 15 दिसम्बर को 1950 को प्रातः 9 बजकर 37 मिनट पर दिव्य शक्ति की चेतना देने वाला यह सूरज अस्त हो गया। समूचा राष्ट्र लौह पुरूष का हर दौर में हमेशा हमेशा कृतज्ञ रहेगा।

उक्त अवसर पर संग्रहालय के उप निदेशक डाॅ0 मनोज कुमार गौतम ने कहा कि जनसामान्य को पटेल के जीवन संघर्षो तथा प्रेरक प्रसंगों के माध्यम से ऐतिहासिक एवं ज्ञानवर्धक जानकारी उपलब्ध करायी गयी। सरदार पटेल ने देश की एकता और अखण्डता की जो मिशाल पेश किया, उससे हमें सीख लेनी चाहिए और देश को एक सूत्र में पिरोये रखना हमारा कर्तव्य एवं नैतिक जिम्मेदारी है।

उक्त अवसर पर  सुभाष दूबे, ज्योतिषविद् मनीष मोहन, राकेश उपाध्याय, रामेश्वर मिश्रा, डाॅ0 रेखा रानी शर्मा, मनीष तिवारी, एड0 टी.एन0 शाही, अवधेश तिवारी, संजय सिंह, राजेश चन्द गर्ग, विजय बहादुर मिश्र, राजेन्द्र प्रसाद, दीनबन्धु, ए0के0 वर्मा, कौशल श्रीवास्तव, देवेन्द्र सिंह, ओजस, तेजस, मयंक, बी0एस0 जायसवाल, सुनील, मनोज, जितेन्द्र यादव, अंजली यादव एवं अंकिता कुमारी आदि सहित काफी संख्या में लोगों ने उक्त प्रदर्शनी का अवलोकन किया।

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