आम की फसल को कीट एवं रोगों से बचाने के लिए समुचित प्रबंधन आवश्यक

भुनगा कीट कोमल पत्तियों एवं छोटे फलों का रस चूसकर उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे प्रभावित भाग सूखकर गिर जाता है। इसके अलावा, यह कीट मधु के समान पदार्थ का स्राव करता है, जिससे पत्तियों पर काले रंग की फफूँद जम जाती है और प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया प्रभावित होती है। इसी प्रकार, आम के बौर में लगने वाला मिज कीट मंजरियों, नवजात फलों और कोमल कोपलों में अंडे देता है, जिससे उसकी सूँडी अंदर ही अंदर फसल को नुकसान पहुंचाती है। प्रभावित भाग काला पड़कर सूख जाता है। इन कीटों के नियंत्रण हेतु इमिडाक्लोप्रिड 17.1% एस.एल. (2 मिली/लीटर पानी) या क्लोरपाइरीफास 1.5% (2 मिली/लीटर पानी) के घोल का छिड़काव करने की सलाह दी गई है।
खर्रा रोग के प्रकोप से ग्रसित फल एवं डंठलों पर सफेद चूर्ण के समान फफूँद दिखाई देती है, जिससे प्रभावित भाग पीला पड़ जाता है और मंजरियां सूखने लगती हैं। इस रोग से बचाव हेतु ट्राइडोमार्फ (1.02 मिली/लीटर पानी) या डायनोकेप (1.0 मिली/लीटर पानी) का छिड़काव किया जा सकता है।
बागवानों को सलाह दी गई है कि जब बौर पूरी तरह खिल जाए, तो उस अवस्था में रासायनिक दवाओं का छिड़काव कम से कम किया जाए, ताकि पर-परागण की प्रक्रिया प्रभावित न हो।
जिला उद्यान अधिकारी ने बताया कि कीटनाशकों के उपयोग में सावधानी बरतना आवश्यक है। इन्हें बच्चों और पशुओं की पहुंच से दूर रखा जाना चाहिए। छिड़काव के समय दस्ताने, मास्क और चश्मा पहनकर सुरक्षा उपाय अपनाने चाहिए, ताकि कीटनाशक त्वचा या आंखों में न जाए। इसके अलावा, कीटनाशक का छिड़काव शाम के समय या जब हवा का वेग कम हो, तब करना चाहिए। हवा की दिशा का ध्यान रखते हुए छिड़काव करें ताकि विषैले कण शरीर के संपर्क में न आएं। प्रयोग किए गए खाली पाउच या डिब्बों को उचित रूप से नष्ट कर मिट्टी में दबा देना चाहिए।
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