बचपन की यादें
” ये हैं बचपन की सुनहरी यादें
जो अब स्वप्न बन कर रह गया
हम तो आज भी वही हैं , पर
ये बचपन ना जाने कहां खो गया ।
वो भी क्या जमाना था , जब
पराए भी अपने लगते थे , और
एक आज का जमाना है , जहां
अपनो से भी डर लगता है ।
कितनी मधुर मुस्कान थी तब
ना कोई भय , चिन्ता ना थी
आज भय में जी रहे हैं
मुस्कान कहीं पे खो गई ।
आज चिन्ता ना किसी को
और ना कोई परवाह है
था समय कितना वो प्यारा
फिक्र मेरी सबको थी ।
आज जब तस्वीर देखी
यादें ताजा हो गई
याद आई मां – पिता की
और ये अंखियां रो पड़ी ।
आज देखा आईना जब
वो भी फिर हंसने लगी
उसकी हंसी में भी छुपी थी
बातें कुछ यूं अनकही ।
वक्त कितना वो हंसी था
सबके साथ हंसती रही
आज तो मुद्दत भी बीते
पर , आती ना हमको हंसी ।
कितना निराला था वो बचपन
ना किसी की फिक्र थी
आज तो बस फिक्र ही में
जी रहे हैं हम सभी ।
संजुला सिंह ” संजू ”
जमशेदपुर