भोजपुरी कला की निर्मिति ज्यामिति के आधार पर होती है- वंदना श्रीवास्तव
नालंदा -दक्षिण बिहार केन्द्रीय विश्व विद्यालय, गया में प्रख्यात भोजपुरी चित्रकार वंदना श्रीवास्तव व जाने माने साहित्यकार व नव नालन्दा महाविहार सम विश्वविद्यालय, नालन्दा के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष प्रोफ़ेसर रवींद्र नाथ श्रीवास्तव ‘परिचय दास’ का व्याख्यान आयोजित किया गया।
आयोजन हिन्दी विभाग द्वारा था। प्रो. परिचय दास को केंद्रीय विश्वविद्यालय , गया के कुलपति प्रो. कामेश्वर नाथ सिंह द्वारा विश्वविद्यालय की हिन्दी व भारतीय भाषाओं की समिति का सदस्य नामित किया गया है।
अपने व्याख्यान में वन्दना श्रीवास्तव ने कहा कि भोजपुरी कला की निर्मिति ज्यामिति के आधार पर होती है। अनगढ़ से सुगढ़ होती प्रक्रिया कला को नया आयाम देती है। भोजपुरी कला अब बिहार, उत्तर प्रदेश व अन्य स्थलों पर नये रंग बोध के रूप में आ रही है। कोहबर की भित्ति कला, चौका पूरने की कला आदि रूपों से होती हुई आज यह एक ओर लोक को छूती है, दूसरी ओर समकालीनता को। मिथिला कला से अलग इसने नयी ज़मीन पर नयी रंगत प्राप्त कर ली है जिसमें रोज़गार की भारी संभावनाएँ हैं।
ललित निबंधकार प्रो. रवींद्र नाथ श्रीवास्तव ‘परिचय दास’ ने कहा कि ‘ललित निबंध’ निबंध का सौष्ठव रूप है तथा गद्य की रमणीयता। ललित निबंध एक नयी क़िस्म की भाषा रचता है। गद्य के श्रेष्ठतम रूपों में एक है- ललित निबंध। काका कालेलकर, दुर्गा भागवत, नवनीता देवसेन, श्रीकांत जोशी , हज़ारी प्रसाद द्विवेदी , कुबेर नाथ राय, विद्यानिवास मिश्र, विवेकी राय आदि ललित निबंधकारों के शिल्प प्रकृति की परिचय दास ने व्याख्या की। अपने ललित निबंधों के बारे में उन्होंने कहा – ‘ मेरे ललित निबंध परम्परा के साथ समकाल के प्रश्नों व बिम्बों को भी स्थापन व गति देते हैं ‘।
द. बि. केंद्रीय विश्वविद्यालय, गया के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर सुरेश चंद्र ने कहा कि साहित्य व संस्कृति के विविध विषयों पर विद्वान हिन्दी विभाग में अपने विचार रखें, ऐसा वातावरण निर्मित किया गया है। इससे छात्रों व आचार्यों : दोनों की ज्ञानवृद्धि होती है।
कार्यक्रम में डॉ. राम चंद्र रजक , डॉ. शान्ति भूषण, डॉ. कफ़ील अहमद आदि आचार्य व परास्नातक तथा शोधछात्र उपस्थित थे।
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