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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 21 Nov 2023 4:38 PM |   182 views

रबी की सब्जियों में जैविक/ बिना रसायन के कीट प्रबंधन

रबी की सब्जियों में मुख्य रूप से  गोभी वर्गीय सब्जियों- फूलगोभी, पत्ता गोभी, गांठ गोभी ,            सोलेनेसी वर्गीय- टमाटर, बैगन, मिर्च, आलू, पत्ता वर्गीय- धनिया, मेथी, सोया, पालक 
जड़ वर्गीय- मूली, गाजर, शलजम, चुकंदर एवं मसाला में  लहसुन, प्याज की खेती की जाती है।
 
इन सब्जियों में हानिकारक कीटों का प्रकोप ध्यान न देने से होने की सम्भावना  रहती है। इसके लिए कीटों के प्रकोप की पहचान, प्रबंधन का ज्ञान होना आवश्यक है।  जिसकी जानकारी दी जा रही है। बिना कीटनाशकों के भी  कीटों का प्रबंधन किया जा सकता है।
 
गोभी वर्गीय सब्जियों के कीट  प्रबंधन-
माहूँ- पहचान- यह गोभी के पत्तों पर हजारों की संख्या में चिपके रहते हैं। यह कीट हल्के पीले रंग के होते हैं , व्यस्क कीट पंखदार एवं पंखरहित दोनों प्रकार के पाए जाते हैं। यह हमेशा चूर्णीमोंम से ढके रहते हैं जो इनके हरे रंग को छुपाये रखती है। इस कीट के शिशु व प्रौढ दोनों ही रस चुसकर  पौधों को नुकसान पहुंचाते हैं। माहूँ अपने शरीर से श्राव  करते हैं जिससे फफूंद का संक्रमण होता है। जिससे गोभी खाने व बिकने योग्य नहीं रहता है। इस कीट का प्रवेश नवंबर माह से होकर अप्रैल तक सक्रिय रहता है।
 
 प्रबंध-
1 -नीम की गिरी 40 ग्राम महीन करके  प्रति लीटर पानी में घोलकर चिपकने वाला पदार्थ के साथ मिलाकर छिड़काव करें।
2 लेडी बर्ड भृग  परभक्षी कीट  के 30 भृग प्रति वर्ग मीटर के प्रयोग से इस कीट का नियंत्रण सफलता पूर्वक किया जा सकता है। 
3 -पीला स्टिक ट्रैप प्रति एकड़ में 10 लगाये ।
 
हीरक पृष्ठ कीट – कीट का रंग धूसर होता है। जब बैठता है तो इसकी पीठ पर तीन हीरे की तरह चमकीले चिन्ह दिखाई देते हैं। इसलिए इसकों हीरक पृष्ठ कीट के नाम से जाना जाता है। सूड़ी का रंग पीलापन लिए हुए होता है इस कीट का प्रकोप सबसे ज्यादा पत्ता गोभी की फसल पर होता है। सूड़ियां पत्तियों की निचली सातह को खाती है। और छोटे-छोटे छिद्र बना देते हैं। ज्यादा प्रकोप की दशा में पत्तियां बिल्कुल समाप्त हो जाती हैं।
 
 प्रबंधन-
1-जहां पर हीरक कीट के प्रकोप की संभावना ज्यादा होती है, वहां अगैती  व पछैती  रोपण से बचना चाहिए। 2- हर 25 लाइन गोभी के दोनों तरफ दो लाइन सरसों की बुवाई करना चाहिए। इसमें पहली लाइन गोभी के रोपाई  के 15 दिन पहले तथा दूसरी लाइन रोपाई के 15 दिन बाद करें। जिससे इसका मादा कीट आकर्षित होकर सरसों पर अंडा देते हैं। तथा नीम गिरी का निचोड़ 40 ग्राम प्रति लीटर में घोलकर छिड़काव करने से कीट का प्रकोप कम हो जाता है। 
3- जैव कीटनाशी बी.टी.(बेसिलस थुरिजिन्सिस) 500 ग्राम प्रति 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर में छिड़काव करें। आवश्यकता होने पर 10 दिन के अंतराल पर पुनः छिड़काव करें।
तंबाकू की सूड़ी- व्यस्क मादा कीट पत्तियों की निचली सतह पर झुंड में अंडे देती है, चार से पांच दिनों के बाद अंडों से सूड़ी निकलती है और पत्तियों को खाती है। सितंबर से नवंबर तक इसका प्रकोप अधिक होता है।
प्रबंधन –
1- पत्तियों के निचले हिस्से को  झुंड में दिए गए अंडों को पत्तियों सहित तोड़कर नष्ट कर दें।
2 फेरोमेन ट्रैप 30 प्रति हेक्टेयर के दर से 30-30 मीटर की दूरी पर लगाये। 
3- एस.एन. पी .वी. 250 एल.ई. गुड़ 1 किलो ग्राम ,टीपोल 800 ग्राम ,500 लीटर में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से सायंकाल छिड़काव करें।
 
बैगन के कीट–
तन एवं फल बेधक कीट –
इस कीट की सुड़ियां कोमल तने में छेद कर डेड हार्ट के लक्षण उत्पन्न कर इन्हें सुखा देती हैं। इस कीट का प्रकोप पुष्पावस्था से लेकर फलों में तक  अधिक हानि  होता है। क्षति ग्रस्त फल खाने योग्य नहीं रहते है।
प्रबंधन-
1 -आवश्यकता से अधिक नत्रजन व फास्फोरस ना दें।
2- बैगन के अवशेषों को नष्ट कर दें। 
3- सदैव कीट ग्रसित तना एवं फलों को तोड़कर नष्ट कर दें। 
4- नीम गिरी का प्रयोग करें।
5- फेरोमेन्स ट्रैप 100  प्रति 10 मीटर की दूरी पर लगाये।
 
हरा फुदका कीट-
इसके शिशु एवं प्रौढ़ दोनों ही बैगन की पत्तियों की निचली सतह से रस चूसते हैं, साथ-साथ अपना जहरीला लार उसमें छोड़ते हैं। जिससे प्रभावित भाग पीला हो जाता है  तथा पट्टी किनारे से अंदर की ओर मुड़ने लगती है जिससे पत्तियां कप की आकार की हो जाती हैं धीरे-धीरे पूरी पत्तियां पीले धब्बों से भर जाती है तथा सुख कर गिर जाती है।
प्रबंधन –
1- नीम गिरी का छिड़काव करें।
 
टमाटर के कीट-
सफेद मक्खी
यह कीट टमाटर के साथ-साथ बैगन, भिंडी, लोबिया, मिर्च, कद्दू आदि के फसलों को नुकसान पहुंचता है। यह कीट सफेद एवं छोटे आकार का होता है। शरीर मोम से ढका रहता है। इसलिए इसे सफेद मक्खी के नाम से जाना जाता है। इसकी मादा पत्तियों की सातह पर  125 से 150 तक अंडे देती है। इसके शिशु एवं प्रौढ़ पौधों की पत्तियों से रस चूसते हैं। और विषाणु जनित रोग फैलाते  हैं। जिससे पत्तियों में गुड़चपन लगता है। इसके बाद पौधों में  फूल व फल नहीं लगते हैं।
 
प्रबंधन-
1- पौधों को नायलॉन जाली 40 मेश साइज के अंदर तैयार करना चाहिए। जिससे सफेद मक्खी उसके अंदर ना जा सके।
2- खेत के चारों तरफ मक्का ज्वार और बाजरा लगाना चाहिए जिससे सफेद मक्खी का प्रकोप फसल में न हो सके। 
3- नीम का तेल दो-तीन मिली  के साथ स्टीकर आधा मिली प्रतिलीटर पानी में मिलकर सायंकाल में छिड़काव करना चाहिए।
 
फल बेधक कीट-
 यह कीट टमाटर, पत्ता गोभी ,फूलगोभी, भिंडी, लोबिया, मटर एवं सेम को क्षति पहुंचात है। इस कीट का प्रकोप फसल की पुष्पन एवं फली अवस्था में दिखाई देता हैं। इसकीट से क्षतिग्रस्त फलों में सूड़ियों का सिर फल के अंदर धंसा एवं शेष भाग बाहर होता है। क्षतिग्रस्त फलों में सूक्ष्मजीवों  के संक्रमण के कारण फल सड़ने लगता है। जो खाने योग्य नहीं रहता है। सूड़ी कच्चे टमाटर के फल में  छेद करके खाती है। सूड़ी हरे रंग की होती है जिसके शरीर पर तीन धारियां पाई जाती हैं।
 
प्रबंधन-
1- गर्मी में खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए।
2- टमाटर की 25 दिनों वाली पौध की रोपाई के 16 लाइन के बाद, एक लाइन गेंदे की जो 45 दिन वाली पौध हो लगाये। दोनों में फूल करीब – करीब एक ही समय में आते हैं गेंदे का फूल मादा व्यस्क कीट  को अंडा देने के लिए ज्यादा आकर्षित करता है। 
3- इसके अलावा गेंदे की पत्तियां पत्ती सुरंगक एवं प्राकृतिक शत्रुओं को भी आकर्षित करते हैं।
4 – सेक्स फेरोमोन ट्रैप 5 प्रति हेक्टेयर की दर से पौध से 6 इंच की ऊंचाई पर लगाकर निगरानी करें।
5- ट्राइकोग्रामा  अंडा परजीवी 50000 अंडा प्रति हेक्टेयर की दर से फसल में छोड़ दें।
6 -फूल लगते समय एच.एन.पी.वी. 300 एल.ई. + 1 किग्रा गुड़+ 500 मिली  इंडोट्रान  चिपकने वाला पदार्थ को 500 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से सायं काल छिड़काव करें। आवश्यकता अनुसार 10 दिन बाद पुनः छिड़काव करें।
 
मिर्च के कीट-
थ्रिप्स कीट- प्रौढ़ कीट  लगभग एक मिलीमीटर लंबा एवं हल्के पीले भूरे रंग का होता है। इसका पंख कटा फटा होता है। इस कीट के शिशु एवं प्रौढ़ दोनों कोमल पत्तियों से रस चूस कर नुकसान पहुंचाते हैं। जिससे पत्तियां सिकुड़ कर ऊपर की ओर मुड़ जाती है। पौधों की बढ़वार रुक जाती है।
प्रबंधन-
1- पीला स्टीकी ट्रैप 30 प्रत हेक्टेयर की दर से खेत में लगाये।
 
पीली माइट-
यह अष्ट पदी माइट है जिसके शिशु एवं प्रौढ़ दोनों मिर्च के पत्ती  के निचले सात से रस को चूस कर क्षति पहुंचाते हैं। जिसमें पत्तियां नीचे की ओर मुड़कर नाव का आकार बना लेती है। पौधा का विकास रुक जाता है तथा फूलने फैलने की क्षमता प्रातः समाप्त हो जाती है।
 
प्रबंधन- डायकोफाल 18.5 ई.सी. 3 मिलीलीटर या सल्फर 80 डब्ल्यू.पी. 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
 
प्याज लहसुन के कीट-
थ्रिप्स कीट- यह कीट प्याज एवं लहसुन के पत्तियों के बीच रहकर रस चूसते हैं जिसके कारण पत्तियां पर सफेद या सिल्वर धब्बे बन जाते हैं। तथा पत्तियां सूखने लगती हैं। यह कीट गर्म मौसम में ज्यादा सक्रिय रहता है।
 
प्रबंधन-
1- जेट नाजिल से पानी का बौछार करने से थ्रिप्स तेजी से नहीं बढ़ते हैं। 
2- नीम बिनौला का छिड़काव करें। 
3- पीला स्टिकी ट्रैप 30 की संख्या में प्रति हेक्टेयर में प्रयोग करें।
 
-डा.रवि प्रकाश मौर्य (सेवानिवृत्त प्रोफेसर (कीट विज्ञान)
 
 
 
 
 
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