जीवन तो एक बागीचा है
बाग बान हर दिन बागीचे में पौधे – वनस्पति को पानी देता है। लेकिन फल ऋतु पर ही आता है। जीवन का भी ऐसा है। धैर्य रखना चाहिए। समय पर फल मिलता है। अच्छे कर्म के फल मीठे होते हैं। बुरे कर्म के फल कड़ुआ होते हैं।
जीवन तो नदी के पानी की तरह बहता जाता है, कभी रूकता नहीं है, कोई रोक भी सकता नहीं है। जन्म हुआ, बचपन आया और गुज़र गया। युवानी आईं और वो भी चली गई। देखते देखते वृद्धत्व आ गया।
सोचते है की मैंने जीवन में क्या किया?
जीवन तो एक बागीचा है तो उस में कौनसे पौधे लगाए और कितना पानी दिया? क्या फ़ल पाया?
जीवन में फल आते है सुख और दु:ख के रूप में।
बुद्धिमान लोग चिंतन करते है कि मनुष्य जीवन का उद्देश्य क्या है?
खाना-पीना, संसार के सुख-दुख भोगना और मृत्यु के मुख में पड़ना? संसार में आए हैं तो दु:खों से मुक्ति पाना? सुख का अनुभव करना? चिंता मुक्त होना?
ऐसे चिंतन करने वाले जाग्रत व्यक्ति बराबर समझ लेता है कि जीवन में सुख शांति और समृद्धि के साथ सुरक्षा चाहिए। तब वह व्यक्ति सुख पाने के लिए सन्मार्ग पर चलने लगता है।
सन्मार्ग क्या है?
सन्मार्ग है सदाचार का पालन करना।
सदाचार क्या है?
सदाचार है- शील, समाधि और प्रज्ञा।
जो सदाचारी है वह इस लोक में, वर्तमान जीवन में सुख शांति समृद्धि और खुशहाली प्राप्त करता है।
जीवन एक बागीचा है। उस बागीचे में व्यक्ति अपने जीवन के लिए बागबान है। उसे चाहिए, अपने बागीचे में लगाना चाहिए सुगंध देने वाले पौधे। मीठे फल देने वाले वृक्ष और औषधीय गुणों वाले पौधे। उसे समय पर पानी देना चाहिए। अच्छी तरह से रखरखाव करना चाहिए। तब जीवन का बागीचा संगंधित पुष्प से खिल उठता है और मीठे फल खाने को मिलता।
शास्ता बुद्ध ने जीवन को सुखमय बनाने के लिए ही उपदेश दिया है। उनके बताए मार्ग- शील, समाधि और प्रज्ञा पर चलने वाले का जीवन रूपी बागीचा सुगंध से महक उठता है और मीठे फल यानी सुख मिलता है।
– डॉ नंद रतन थेरो , कुशीनगर
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