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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 30 Sep 2023 6:31 PM |   298 views

जे.ई./ए.ई.एस. रोग वाहक के रूप में चूहों तथा मच्छरों का नियंत्रण आवश्यक

देवरिया-जिला कृषि रक्षा अधिकारी इरम ने बताया है कि चूहे न सिर्फ हमारे घरो में रखे सामान, अनाज फसलें इत्यादि कुतर कर नष्ट करतें है वरन ये तमाम रोगों जैसे प्लेग, मस्तिक ज्वर(जेई) इत्यादि के वाहक का कार्य करते हैं।
 
स्तनपाइयों में रोडेंट ऑर्डर सर्वाधिक विविधता का है, जिसमें 2200 से अधिक प्रजातियां है। ये सामाजिक जीव है जिनकी सन्तानोत्पति की अत्यधिक क्षमता होती है। एक जोडी चूहे से वर्ष भर में 1000 से अधिक संख्या उत्पन्न होती है। चूहे का नियंत्रण सामूहिक रूप से 30-40 व्यक्तियों / कृषक समूहों द्वारा साप्ताहिक रूप से कार्यक्रम चलाकर ही संम्भव है।
 
सबसे पहले खेतों का निरीक्षणकर जिंदा बिलों की पहचान आवश्यक है जिन्हें चिन्हित कर एवं बन्द करते हुये झण्डे लगा दें। दूसरे दिन निरीक्षण में जो बिल बन्द हो वहां से झण्डे हटा दे तथा जहां बिल खुले पाये गये वहाँ झण्डा लगा रहने दे। खुले बिल में बिना जहर का चारा (एक भाग सरसों का तेल व 48 भाग चना / बेसन) रखें।
 
अगले दिन पुनः बिलों का निरीक्षण कर बिना जहर का चारा रखें। उसके अगले दिन जिंक फास्फाईड 80 प्रतिशत की एक ग्राम मात्रा एक ग्राम सरसों का तेल व 48 ग्राम भुना चना आदि से बने चारे को बिल में रखें। अगले दिन बिलों का निरीक्षण करें तथा मरे चूहो का एकत्र कर जमीन में दबा दे। अगले दिन बिलों को बन्द कर दें उसके अगले दिन यदि बिल खुले पाये जाये तो कार्यक्रम पुनः प्रारम्भ कर दें।
 
घरों में चूहा नियंत्रण हेतु जिंक फास्फाईड के अलावा ब्रोमोडाईलोन 0.005 प्रतिशत की टिकिया का प्रयोग किया जा सकता है जिसे चूहा 3-4 बार खाने के बाद मरता है। चूहों की संख्या नियंत्रित करने के लिये अन्न भण्डारण धातु की बखारियों, पक्के / कंक्रीट पात्रों करें जिससे उनको भोज्य पदार्थ सुगमता से उपलब्ध न हो। चूहों की बिलें झाडियों, मेडों, कूडों आदि मे स्थाई रूप से होती है जिनकी साफ-सफाई से ये नियंत्रित हो सकते है। चूहो के प्राकृतिक शत्रुओं-बिल्ली, उल्लू,बाज, चमगादड आदि का संरक्षण करें खेतों मे बर्ड पर्चर लगायें जिस पर पक्षी बैठ कर चूहों का शिकार कर सकें। चूहों के मलमूत्र, बाल, लार आदि में रोगों के कीटाणु होते है जिनसे प्लेग, लेपिडोस्पाईरोसिस आदि बीमारियां फैलती है।
 
स्क्रब टाइफस बिमारी एक विशेष प्रकार के माईट / चिगर्स द्वारा फैलती है जो झाड झंखाड में पाये जाते है एवं चूहों के शरीर पर चिपक कर घरों में आ जाते हैं जिनसे जीवाणु जनित टायफस बुखार होता है। इस प्रकार चूहा नियंत्रण जन – स्वास्थ, फसल सुरक्षा आदि में अत्यावश्यक है।
 
जे0ई0 रोग के तथा अन्य संक्रामक रोगों के विषाणु के वाहक मच्छरों को कुछ विशेष पौधों को लगाकर नियंत्रण किया जा सकता है जैसे गेंदा, गुलदाउदी, उसिट्रोनेला, रोजमैरी, तुलसी, लेवेंन्डर, जिरैनियम, मिन्ट / पिपरमिन्ट ये पौधे तीव्र गंन्ध वाले एसेन्शियल आयल अवमुक्त करतें है जिनसे मच्छर दूर भाग जातें है|
 
इस प्रकार इन फूल पौधों को आस पास लगानें से वातावरण तो सुगंन्धित होता ही है साथ ही खतरनाक मच्छरों से भी बचाब होता है। इनमें से कुछ पौधो की प्रजातियों द्वारा तो ऐसे रासायनिक तत्व मुक्त किये जातें है जो मच्छरों की घाण क्षमता ही समाप्त कर देते है।
 
इस प्रकार इन पौधों के रोपड द्वारा भी मच्छरों को दूर कर जे०ई० / ए०ई०एस० रोग से बचाव किया जा सकता है।
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