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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 24 Sep 2023 3:07 PM |   2507 views

देशी बीज संरक्षण

देशी बीज से तात्पर्य उन बीजों से हैँ जिनमे अगली पीढ़ी भी उसी तरह की क्वालिटी वाला उत्पाद प्रदान करने की जनन क्षमता विद्वामान रहे। आजकल चहूँओर पाई जा रही हाइब्रिड किस्मो के फेर में किसानों ने देशी बीज का ज्ञान, उसका विकास और बीज संरक्षण सँग प्रसार बिल्कुल नगण्य ही रख छोड़ा है जिससे इन्हे हरेक बार एक मोनोपोली होती कम्पनीयों आधारित हाइब्रिड बीज व्यवस्था पर ही अगली खेती को आश्रित रखना पड़ रहा है।
 
कारण हाइब्रिड की उपज ज्यादा हैँ, कुछेक किस्मो में अलग अलग या संयुक्त भी रोग-कीट प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा है अभी बची हुई देशी बीजों की अपेक्षा लेकिन यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि इतना ध्यान अगर देशी बीजों पर भी दिया जाये तो इनके हरेक फसलों में ऐसे बीज विद्वामान थे जिन्हे स्थापित किया जाना था भारतीय कृषि में लेकिन भुला दिया गया सिर्फ उत्पादन की भागती दौड़ में।
 
जबकि स्वाद, पोषण और पर्यावरणीय संरचना में खुद को ढलने की क्षमता  देशी किस्मों में आज भी हाइब्रिड से कहीं ज्यादा है। आज मौजूद करीब करीब हरेक हाइब्रिड देशी बीज से ही तो उत्पादित हुई है!
कई बार ये देशी बीज बेहद कम मात्रा में, विपरीत मौसम में, जलवायु विपरीत विशेष स्थान में प्राप्त या खोज निकाले जाते हैँ इन्हे कैसे बचायें और संवृद्धित करें?
 
 विशेष उपाय:-
 
1- कभी भी कम मात्रा में प्राप्त बीज को एक साथ सम्पूर्ण न लगायें। इन्हे 4भाग में बाँट लें। 2 भाग को अलग अलग समय अंतराल में इसी मौसम लगायें अगर ये उस फसल का मौसम चल रहा हो अगले बचे 2 भाग को अगले बचे 2 मौसम में अलग अलग लगायें जिससे इनका बीज संरक्षण और मौसम अनुरूपता पहचानी जा सके इसके अलावा सारे बीज एक ही साथ लगाने से किसी भी तरह की तकनीकी, मौसम आधारित या व्यावहारिक दिक्क़तो की वजह से किस्म ही खत्म न हो जाये।
 
2- इसके साथ ही साथ देशी बीज की खोज और पाये जा रहे दूसरे स्थान के बीज के लिए हमेशा छोटे स्तर पर एक प्लॉट लगा कर ट्रायल करना चाहिए जिससे दूसरे स्थान पर पाए या बताए जा रहे बीज हमारी जलवायु में कैसे रहेंगे ये सुनिश्चित हो जाने के बाद ही उनका विस्तार करना चाहिये। 
 
3- एक फसल में प्रजातियों का फूल आना फल/दाने/बीज बनना अलग अलग समय हो सकता है। कोशिश करें कि जब तक यह पूरी तरह पता न हो उन्हें पास न लगायें। जब इनकी फसल अवधि और फूल आने के समय पता हो तो दोनों किस्मो को इस तरह से लगायें कि एक की फूल आने की अवधि दूसरी की फूल आने की अवधि से न टकराती हो इस तरह से भी पृथककरण किया जा सकता है जिसे “समय पृथ्ककरण” कहा जाता है।
 
4- हर एक फसल की पृथक़्करण दूरी होती है जो इसके ही दूसरी प्रजाति के पौधे से अलग रखनी होती अन्यथा पास पास एक ही समय लगाने से 2 या ज्यादा किस्मो में मिलान हो जायेगा और लगी पहली किस्म शुद्ध न रह पायेगी।कुछ मुख्य फसलों में देशी बीजों की किस्मों में आपस की पृथक्करण दूरी इस प्रकार रखते हुए एक समय पर बुवाई करनी चाहिये, ध्यान रखें कि बीज उत्पादन व्यावसायिक रूप में करने वाले बड़े किसान इसकी आधार बीज की पृथक्करण दूरी प्रमाणित बीज वाली प्लॉट दूरी से दुगनी करके लगाये:–
 
5- कोशिश करें कि बीज बनाई जा रही फसल को रोज देखें, इनके पोषण, कीट  -रोग नियंत्रण पर कार्य किया जा रहा हो, इनके अंकुरण से लेकर कटाई और कटाई बाद भी अन्य आँकणे जैसे पहला फूल आने की दिन अवधि, पौधे की लम्बाई, पत्तों की संख्या, फल की संख्या, तने का रंग, फल की लम्बाई, पहली तुड़ाई, वजन,  फलों में बीज की संख्या, पौधे का नर फूल आने की अवधि (अगर नर और मादा फूल एक ही पौधे पर आता हो), रोग कीट ग्राहिता और प्रतिरोधकता जैसे आँकणे प्रति 10 पौधे, फल, फूल की एक औसत गणना करते हुए निकाली जाये जिससे एक शुद्ध जानकारी फसल बीज बचाने और लगाने वाले के बीच प्रसारित हो सके।
 
6- जब भी कोई फसल कटाइ बाद बीज बने उन्हें पर्याप्त नमी बचाये रखते हुए धूप में सूखा कर और फिर वायु अवरोधी उपाय सँग नीम कपूर जैसे देशी या अन्य बीज उपचार करके ही रखना चाहिये और हरेक 30-50दिन में इनको दुबारा निकाल कर निरीक्षण करना चाहिये कि भंडारण में कोई रोग या कीट न लग सके।
 
7-  देशी बीज संरक्षण उपायों के साथ ही इनके अलग अलग उत्पाद बनाने की तकनीक भी खोजते रहना चाहिये जिससे कम उत्पादन देने वाली किस्में भी अपने इस विशेष उत्पाद गुण की वजह से ज्यादा विस्तार ले सकें और सभी तरफ माँग बढ़े।
 
8- किसानों को उनके अपने जलवायु अनुसार देशी बीज पर कार्य करने की बहुत नितांत आवश्यकता है, सारे खेत नहीं लेकिन खेत का एक 10वाँ, 20वाँ -50वाँ हिस्सा ही सही ऐसे बीज को खोज कर उन्हें बचाये रखने के लिये जरूरी है।
 
भारत में कई ऐसे किसान है जो अपने आप में वैज्ञानिक है-संस्थान हैँ और कई ऐसे वैज्ञानिक हैँ जो पहले किसान हैँ बाद में वैज्ञानिक। इन सभी को मिलकर देशी बीज संरक्षण अभियान को बनाये रखना है वरना तो हम अगली खेतिहर पीढ़ी को सिर्फ गुलामी सौंप कर जा रहे हैँ।
 
डॉ. शुभम कुमार कुलश्रेष्ठ, विभागाध्यक्ष-उद्यान विज्ञान
केन्द्र समन्वयक-कृषि शोध केन्द्र
कृषि संकाय ,रविन्द्र नाथ टैगोर विश्वविद्यालय
रायसेन, मध्य प्रदेश
 
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